जानिए भारत का उद्धार (विकास) कैसे होगा ! : Yogesh Mishra

भारत एक सनातनजयी राष्ट्र है ! जिस तरह हर व्यक्ति का स्वभाव और व्यक्तित्व अलग अलग होता है, ठीक उसी तरह हर राष्ट्र का अपना एक निजी व्यक्तित्व होता है ! भारत धर्मभीरु व्यक्तित्व का धनी है ! भारत का आम आवाम भविष्य से ज्यादा इतिहास में रुचि रखता है ! इसलिये भारत में विकास की चर्चा या किसी सुनहरे भविष्य के निर्माण की चर्चा भारतीयों को प्रभावित नहीं करती है क्योंकि भारत पूर्व में ज्ञान में विश्व गुरु और सम्पन्नता में सोने की चिड़िया रह चुका है !

जैसे कोई संपन्न व्यक्ति परिस्थिति वश यदि गरीब हो जाता है तो वह अन्य किसी संपन्न व्यक्ति के सुख से प्रभावित नहीं होता है ! क्योंकि पूर्व में वह संपन्नता की पराकाष्ठा को देख चुका है ! उस संपन्नता के गुण दोष वह जानता है इसलिये किसी अन्य की संपन्नता से वह प्रभावित नहीं होता है !

ठीक इसी तरह भारत संपन्नता में सोने की चिड़िया रहने के साथ-साथ ज्ञान में विश्व गुरु भी रह चुका है ! इसका लिखित प्रमाण विश्व की हर प्राचीन पुस्तक में मिलता है ! इसलिये भारत का आम आवाम अन्य पूर्व में रहे गरीब देशों की तरह किसी भी भौतिक विकास से प्रभावित नहीं होता है !

इसलिये सत्ता में बैठे हुए लोग भारत को भौतिक विकास का सपने दिखाकर राष्ट्र निर्माण के लिये प्रेरित नहीं कर सकते हैं ! कानून के भय से भारतीयों से कुछ विकास की दिशा में कार्य तो लिया जा सकता है ! लेकिन भारतीयों का जो मूल से स्वभाव है, उसमें किसी भी तरह के भौतिक विकास के लिये भारत का आम जनमानस अंतर्मन से तैयार नहीं है ! वह हर जगह अपने निजी लाभ या निजी उत्थान के अलावा किसी भी राष्ट्रीय कार्य में सहयोग या कोई त्याग नहीं करना चाहता है !

अब प्रश्न यह है कि जब आम जनमानस विकास के किसी भी क्षेत्र में अपने ही देश के राजनेताओं के भविष्य दर्शन की योजनाओं में सहयोग नहीं करना चाहता है तो देश का उद्धार कैसे होगा ?

इसका एकमात्र जवाब है कि भारत का उद्धार कभी भी भौतिक आकर्षण की योजना से नहीं हो सकता है और न ही किसी भी राजनेता का औरा इतना प्रभावशाली है जो भारत के आम आवाम के आतंरिक आध्यात्मिक अंतर्मन को बदल सके ! भारत का उद्धार तब ही होगा जब कोई न कोई आध्यात्मिक व्यक्तित्व भारत का मार्गदर्शन करे !
विचार कीजिये जहां पर नदी, पेड़, पौधे, जीव, जंतु, यहां तक कि पृथ्वी को भी मां की संज्ञा दी गई है ! उस देश में कोई भी व्यक्ति मात्र अपने आत्म विकास के लिये प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कैसे कर सकता है !

यह शासन सत्ता का एकतरफा प्रयास है ! कुछ अवसरवादी या व्यवसायी लोग अपने निजी लाभ के लिये शासन सत्ता के विकास की योजनाओं में सहयोग करते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह कभी नहीं है कि भारत का आम जनमानस भौतिक विकास के लिये मानसिक रूप से तैयार हो गया है !

भारत की मूल तासीर आध्यात्मिक है ! भारत ने कभी भी धर्म विरुद्ध चलने वाले अति संपन्न व्यक्तित्व को पसंद नहीं किया है ! इसका प्रमाण है कि प्रहलाद के पुत्र बाली ने जब पूरी दुनिया में अपना शासन स्थापित कर लिया ! तब बाली के पास भगवान विष्णु तीन पग जमीन मांगने के लिये आध्यात्मिक भिक्षु का रूप धारण करके गये थे ! लोगों ने विश्व विजेता बाली के व्यक्तित्व को स्वीकार नहीं किया और उस आध्यात्मिक भिक्षु के व्यक्तित्व को अपना आदर्श माना जो बाली जैसे विश्व सम्राट से तीन पग जमीन की भीख लेने गया था !

ठीक इसी तरह सोने की लंका में रहने वाले अत्यंत प्रभावशाली और ज्ञानी व्यक्तित्व रावण को भारत के आम जनमानस ने कभी भी अपने आदर्श के रूप में नहीं देखा बल्कि पिता के आदेश पर जंगल-जंगल भटकने वाले श्री राम को लोगों ने अपने आदर्श के रूप में पसंद किया है !

गौतम बुद्ध को भी भारत ने तब स्वीकार किया ! जब उन्होंने अपना समस्त राज्य पाठ त्याग कर अपने आत्मबोध के लिये एक वृक्ष के नीचे बैठकर तप आरंभ किया था ! उसके पूर्व राजकुमार के रूप में उनके व्यक्तित्व को कभी भी भारत के आम जनमानस में अपने आदर्श के रूप में स्वीकार नहीं किया है !

ठीक इसी तरह एक भिक्षु के रूप में सम्पूर्ण भारत में भटकने वाले आदि गुरु शंकराचार्य को व्यक्ति ने सर्वश्रेष्ठ धर्म सुधारक के रूप में स्वीकार किया है और उनके द्वारा स्थापित चारों धाम की यात्रा करना आज भी भारत का आम जनमानस अपने लिये सौभाग्य की बात समझता है !

देश के स्वतंत्रता की लड़ाई में बहुत ही संपन्न परिवार के बहुत से नेताओं को भारत के आम जनमानस ने अस्वीकार कर दिया लेकिन एक धोती पहनकर एक लाठी लेकर सन्यासी के रूप में संपूर्ण भारत में घूमने वाले राजनैतिक संत को भारत ने राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार किया है !

अकबर जैसे सक्षम शासक को भारत के आम जनमानस ने कभी स्वीकार नहीं किया किंतु बनारस के घाट पर एक कमरे के अंदर बैठकर रामचरितमानस लिखने वाले संत गोस्वामी तुलसीदास को भारत के आम जनमानस ने सदैव अपने आदर्श के रूप में स्वीकार किया है और जन चेतना के लिये उसके द्वारा चलाये गये रामलीला का प्रदर्शन आज हर गली-गली में हो रहा है !

ऐसे ही हजारों उदाहरण हमारे इतिहास में मौजूद हैं ! जहां पर भौतिकता और आध्यात्म के संघर्ष में सदैव भारतीयों ने आध्यात्मिक व्यक्ति का साथ दिया है ! भारत कभी भी भौतिक रूप से संपन्न व्यक्ति के साथ बहुत लंबे समय तक नहीं चला है !

क्योंकि यह भारत की मौलिक तासीर आध्यात्मिक है ! इसलिये यदि कोई राजनेता यह सोच है कि भारत का भविष्य बदल देगा और वह भारत में संपन्नता ला देगा या वह भारत को अमेरिका जापान बना देगा तो उस राजनेता की अवधारणा भारत के आम जनमानस को स्वीकार नहीं है !

भारत में जब भी कोई परिवर्तन या क्रांति होगी तो उसे भारत का आम संत ही करेगा ! इसलिये यदि भारत का उद्धार करना है तो भारत को किसी ऐसे संत व्यक्तित्व का निर्मिण करना होगा, जो हृदय से राष्ट्रवादी हो और व्यक्तित्व से पूरी तरह आध्यात्मिक हो ! वही व्यक्ति भारत का उद्धार कर सकता है ! अन्य किसी भी व्यक्तित्व के साथ भारत का आम जनमानस चलने को तैयार नहीं है !

अतः भारत को किसी भी राजनीतिक नीतिगत विकास की आवश्यकता नहीं है बल्कि एक आध्यात्मिक सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है जो भारत को पुनः विश्व गुरु बना सके !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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