जानिए म्लेच्छता का विज्ञान : Yogesh Mishra

“म्लेच्छ” शब्द का अर्थ है वह व्यक्ति जिसकी इच्छा मल की तरह दूषित हो अर्थात सामाजिक व्यवस्था के विपरीत मल के समान दूषित इच्छा प्रगट करने वाला व्यक्ति “म्लेच्छ” है ! जैसे परस्त्री या कन्या के भोग की इच्छा या किसी अन्य की संपत्ति के हरण की इच्छा या फिर किसी निर्दोष व्यक्ति के हत्या की इच्छा आदि रखने वाला व्यक्ति “म्लेच्छ” है ! अर्थात धर्म विरुद्ध इच्छा रखने वाला व्यक्ति !

संस्कृत व्याकरण के अनुसार इसका मूल अर्थ है “शास्त्र विरुद्ध अशुद्ध उच्चारण करने वाला व्यक्ति” ! अर्थात संस्कृत में जिन समुदायों की भाषा ही अशुद्ध हो गयी हो उन्हें “म्लेच्छ” कहा गया ! आधुनिक म्लेच्छ “भाषावैज्ञानिकों” ने असत्य कुतर्कों द्वारा आर्यों को म्लेच्छ बतलाते हैं ! उनका तर्क है कि आर्यों का मूलप्रदेश भारत से बाहर योरोप है ! किन्तु इस तथ्य से वह भी इन्कार नहीं करते कि आयरर्लैंड से बंगाल-असम तक के सारे योरोपीय समुदायों के समस्त आदिम देवता वैदिक ही थे ! अतः वैदिक धर्म ही सबका मूल धर्म है ! फलस्वरूप वैदिक धर्म, वैदिक संस्कारों और वैदिक भाषा की अशुद्धि जिस समुदाय में हो वह ही म्लेच्छ है ! एक छोटा सा उदाहरण लें !

“म्लेच्छ” समुदायों में जल एवं मिट्टी द्वारा शौच-क्रिया की परम्परा नहीं है ! हमें झूठ-मूठ पढ़ाया जाता है कि यूरोप में कागज़ से मल पोंछते थे ! कागज़ की खोज तो कुछ ही सौ वर्ष पहले चीन में हुई थी ! यूरोप में जब कागज पँहुचा भी तो बहुत मँहगा था ! सस्ता कागज़ तो आधुनिक युग में जनसुलभ हुआ है ! अतः यूरोप में मलत्याग करते ही बिना पोंछे ही टहल जाने की परिपाटी थी ! घास मिट्टी आदि से भी नहीं पोंछते थे ! ठण्ड के कारण पानी तो सुलभ था ही नहीं और बर्फीले देशों में तो घास भी सुलभ नहीं थी ! अत: उनके शरीर में चौबीसों घण्टे मल-मूत्र लगा रहता था ! इसलिये उन्हें हमारे पूर्वजों ने म्लेच्छ कहा था ? ऐसे लोगों को कौन मन्दिर या घरों आदि में घुसने देगा ?

क्योंकि आधुनिक भारत के संविधान के अनुसार शिक्षा व्यवस्था में हिन्दुत्व के मूल ग्रन्थों की पढ़ाई वर्जित है ! दर्शनशास्त्र या धर्मशास्त्र की जहाँ पढ़ाई होती भी है ! वहाँ पर भी म्लेच्छों द्वारा लिखित अथवा मान्यताप्राप्त असत्य ग्रन्थ ही पढ़ाये जाते हैं ! इसीलिये सारा भ्रम व्याप्त है !

“मन्दिर” शब्द की उत्पत्ति “मन” से सम्बंधित है ! जो शरीर भी शुद्ध नहीं रख सकते वह मन क्या शुद्ध रखेंगे ? हिन्दुओं के धर्मशास्त्र में मात्र शरीर ही नहीं मन की शुद्धि पर भी अत्यधिक बल दिया गया है ! योगदर्शन के अनुसार मन की शुद्धि का सर्वोत्कृष्ट उपाय है “प्राणायाम” है ! जिस पर गीता में भी सबसे अधिक बल दिया है !

किन्तु व्रत-तप करने में बड़ा कष्ट होता है ! अतः भूखे नंगे घूमने वाले समाज ने एलान कर दिया कि पाप करके पादरी के कान में धीरे से फुसफुसा दो तो बेचारा मसीहा तुम्हारे पाप अपने कन्धों पर ले लेगा ! कितना आसान उपाय है स्वर्ग जाने का ! मोह और मद से ग्रस्त दूसरे समुदाय ने पाप को ही पुण्य घोषित कर दिया ! अतः कलियुग में ऐसे ही सम्प्रदाय अधिक लोकप्रियता बढ़ी क्योंकि यहाँ कोई त्याग या तप की आवश्यकता नहीं है !

इसीलिये क्योंकि यह लोग पहले से ही अति गन्दगी में रहते आये हैं तो इनके यहाँ “अस्पृश्यता” का महत्व नहीं है ! जिस व्यक्ति ने देवत्व का साक्षात और प्रत्यक्ष अनुभव किया है वह जानता है कि शरीर-मन-वचन की पूर्ण शुद्धि का क्या महत्व है ! यह अवसर किसी-किसी भाग्यवान को ही पूर्वजन्म के पुण्य संयोग से प्राप्त होता है ! वरना इस शुद्धता के स्तर को प्राप्त करने के लिये बहुत ही कष्ट सहने पड़ते हैं ! इतना कष्ट सहकर कौन चाहेगा !

अशुद्ध शरीर-मन-वचन वालों से सम्पर्क करने मात्र से अपका संचित पुण्यों का क्षय हो जाता है ! यह मेरा निजी अनुभव है ! किन्तु यह निष्कर्ष निकलता है कि कोई जन्म से “म्लेच्छ” नहीं होता है ! बल्कि अशुद्धता को अपना लेने से व्यक्ति “म्लेच्छ” घोषित किया जाता है ! कलियुग में सारी जातियाँ अशुद्ध हैं ! इन्हें सयंम और तप से शुद्ध किया जा सकता है ! तभी ईश्वर द्वारा स्वीकार होंगे !

लगे हाथ यह भी बतला दूँ कि “वर्ण” का मूल अर्थ सूक्ष्म-शरीर के रंग से सम्बद्ध है ! जो समस्त सक्रिय कर्मों द्वारा निर्मित क्रियमाण संस्कारों का द्योतक है ! सूक्ष्म-शरीर का यह वर्ण केवल दिव्यदृष्टि वाले योगी ही देख सकते हैं ! जाति से वर्ण का सम्बन्ध नहीं है ! वर्ण का रंग आपके शुभ अशुभ कर्मों के अनुसार बदलता रहता है !

इसी को शुक्रनीति सार में शुक्राचार्य ने कहा है !

त्यक्तस्वधर्माचरणा निर्घृणा: परपीडका: ।
चण्डाश्चहिंसका नित्यं म्लेच्छास्ते ह्यविवेकिन: ॥ 44 ॥

अर्थात जो अपने धर्म का आचरण करना छोड़ दिया हो, निर्घृण हैं, दूसरों को कष्त पहुँचाते हैं, क्रोध करते हैं, नित्य हिंसा करते हैं, अविवेकी हैं, वह ही “म्लेच्छ” हैं !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter