लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने के लिये वामपंथियों की मदद चाहिये थी ! समझौता हुआ कि आप प्रधानमंत्री बनी रहो पर हमें देश की शिक्षा व्यवस्था दे दो !
अत: कट्टर वामपंथी विचारधारा वाले डा. नूरूल हसन को केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री का पद सौंपा गया ! जिसने प्राचीन हिन्दू इतिहास तथा पाठ्य पुस्तकों के विकृतिकरण का बीड़ा उठाया ! 1972 में इन सैकुलरवादियों ने “भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद” का गठन कर इतिहास पुनर्लेखन की घोषणा की और सुविख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार, रमेश चंद्र मजूमदार तथा श्री जी.एस. सरदेसाई जैसे सुप्रतिष्ठित इतिहासकारों के लिखे ग्रंथों को नकार कर इन्होंने ने नये सिरे से इतिहास लेखन का कार्य शुरू करवाया !
घोषणा की गई कि इतिहास और पाठ्यपुस्तकों से वह अंश हटा दिये जाएँगे जो राष्ट्रीय एकता में बाधा डालने वाले और मुसलमानों की भावना को ठेस पहुँचाने वाले लगते हैं ! डा. नूरूल हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण करते हुये कहा कि महमूद गजनवी औरंगजेब आदि मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं के नरसंहार एवं मंदिरों को तोड़ने के प्रसंग राष्ट्रीय एकता में बाधक हैं ! अत: उन्हें नहीं पढ़ाया जाना चाहिये !
वामपंथियों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर अंग्रेजों से क्षमा माँगकर गौ भक्षण करके अण्डमान के काला पानी जेल से रिहा होने जैसे निराधार आरोप लगाये और उन्हें वीर की जगह ‘कायर’ बताने की बात लिखीं ! इस षडयंत्र की जानकारी प्रसिद्ध इतिहासकार डा. अमरीश प्रधान द्वारा एक संगोष्ठि में दी गयी थी !
देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ हो नहीं सकता है कि आज बच्चे वह सत्य इतिहास नहीं पढ़ पा रहे हैं कि औरंगजेब ने किस तरह से देश में हिन्दुओं का कत्लेआम करवाया था ! इन लेखकों ने यह तो लिख दिया कि गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी किन्तु यह नहीं बताया कि गुरू गोविन्द जी व उनके बच्चे कैसे शहीद हुये थे !
इसकी जाँच करने के लिये आज तक कोई भी बोर्ड नहीं है कि पाठ्यक्रम के नाम पर देश के बच्चों को क्या पढाया जा रहा है ! कोई लिखता है कि “राम नहीं थे ! तो कोई लिखता है कि महाभारत का युद्ध मात्र एक काल्पनिक कहानी है ! आखिरकार यह षडयंत्रकारी हैं कौन और इन्हें आश्रय कौन देता है ! यह जानना हम सभी के लिये जरुरी है !