पाण्डवों और कौरवों ने अपनी सेना के क्रमशः 7 और 11 विभाग अक्षौहिणी में किये ! एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 सवार और 1,09,350 पैदल सैनिक होते हैं ! यह प्राचीन भारत में सेना का माप हुआ करता था ! हर रथ में चार घोड़े और उनका सारथि होता है ! हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है ! कुर्सी में उसका मालिक धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं, जो भाले फेंकते हैं !
तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या 2, 84, 323 होती है ! एक अक्षौहिणी सेना में समस्त जीवधारियों – हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों-की कुल संख्या 6, 34, 243 होती है ! अठारह अक्षौहिणियों के लिए यही संख्या 1, 14, 16, 374 हो जाती है अर्थात 3, 93, 660 हाथी, 27, 55, 620 घोड़े, 82, 67, 094 मनुष्य ! कुल पैदल सैनिक – 19, 68, 300, कुल रथ सेना – 3, 93, 660, कुल हाथी सेना – 3, 93, 660 कुल घुड़सवार सेना -11, 80, 980 कुल सेना सेवक – 39,06,600 कुल अधिकतम सेना -1, 14, 16, 374 ! यह सेना उस समय के अनुसार देखने में बहुत बड़ी लगती है !
परन्तु जब 323 ईसा पूर्व यूनानी राजदूत मेगस्थनीज भारत आया था तो उसने चन्द्रगुप्त जो कि उस समय भारत का सम्राट् था, के पास 30,000 रथों, 9,000 हाथियों तथा 6,00,000 पैदल सैनिकों से युक्त सेना देखी ! अतः चन्द्रगुप्त की कुल सेना उस समय 6, 39, 000 के आस पास थी ! जिसके कारण सिकंदर ने भारत पर आक्रमण करने का विचार छोड़ दिया था और पुनः अपने देश लौट गया था !
यह सेना प्रामाणिक तौर पर प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे विशाल सेना मानी जाती है ! यह तो सिर्फ एक राज्य मगध की सेना थी, अगर समस्त भारतीय राज्यों की सेनाएँ देखें तो संख्या में एक बहुत विशाल सेना बन जायेगी !
अतः महाभारत काल में जब भारत बहुत समृद्ध देश था, इतनी विशाल सेना का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं, जिसमें की सम्पूर्ण भारत देश के साथ साथ अनेक अन्य विदेशी जनपदों ने भी भाग लिया था !
कौरवों की ओर थे सहयोगी जनपद:- गांधार, मद्र, सिन्ध, काम्बोज, कलिंग, सिंहल, दरद, अभीषह, मागध, पिशाच, कोसल, प्रतीच्य, बाह्लिक, उदीच्य, अंश, पल्लव, सौराष्ट्र, अवन्ति, निषाद, शूरसेन, शिबि, वसति, पौरव, तुषार, चूचुपदेश, अशवक, पाण्डय, पुलिन्द, पारद, क्षुद्रक, प्राग्ज्योतिषपुर, मेकल, कुरुविन्द, त्रिपुरा, शल, अम्बष्ठ, कैतव, यवन, त्रिगर्त, सौविर और प्राच्य।
पांडवों की ओर थे ये जनपद : पांचाल, चेदि, काशी, करुष, मत्स्य, केकय, सृंजय, दक्षार्ण, सोमक, कुन्ति, आनप्त, दाशेरक, प्रभद्रक, अनूपक, किरात, पटच्चर, तित्तिर, चोल, पाण्ड्य, अग्निवेश्य, हुण्ड, दानभारि, शबर, उद्भस, वत्स, पौण्ड्र, पिशाच, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत, धेनुक, तगंण और परतगंण।
तटस्थ जनपद : विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।
कहने को तो यह युद्ध मात्र कुरुक्षेत्र क्षेत्र में हुआ था ! किंतु इतना बड़ा महायुद्ध कुरुक्षेत्र से लेकर राजस्थान तक हुआ था ! तभी दृष्टांत है कि जब कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की अर्जुन युद्ध में लड़ते लड़ते इतनी दूर चले गए थे कि वहां से उन्हें वापस बुलाया जाना असंभव था !
अतः अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को उस चक्रव्यूह भेदन के लिये भीम के साथ भेजा गया था ! जहां अंततः अभिमन्यु मृत्यु हो गई थी ! सूत्रों के अनुसार अर्जुन का 5 घोड़ों से जुता हुआ रथ 40 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चलता था ! इसका मतलब चक्रव्यूह स्थल से अर्जुन के रथ की दूरी कम से कम 600 किलोमीटर जरूर रही होगी तभी उन्हें 12 घंटे के अंदर बुलाया जाना असंभव था !
भविष्य पुराण के अनुसार इस युद्ध के बाद भारत के कमजोर पड़ जाने के कारण भारत पर निरन्तर शदियों तक विदेशियों (मलेच्छों) के आक्रमण होते रहे ! कुरुवंश के अंतिम राजा क्षेमक भी मलेच्छों से युद्ध करते हुए मारे गये थे !
जिसके बाद तो यह आर्यावर्त देश सब प्रकार से क्षीण हो गया ! कलियुग के बढ़ते प्रभाव को देखकर तथा सरस्वती नदी के लुप्त हो जाने पर लगभग 88,000 वैदिक ऋषि-मुनि हिमालय चले गये ! यह वैदिक ऋषियों का भारतीय समाज से सबसे बड़ा पलायन था और इस प्रकार भारतवर्ष ऋषि-मुनियों के ज्ञान एवं विज्ञान से भी हीन हो गया !
समस्त ऋषि-मुनियों के चले जाने पर भारत में धर्म का नेतृत्व ब्राह्मण करने लगे, जो पहले केवल यज्ञ करते थे एवं वेदों का अध्ययन करते थे ! ब्राह्मणों ने वैदिक धर्म को लम्बे समय तक बचाये रखा, परन्तु पौराणिक ग्रंथों में दिये वर्णन के अनुसार कलियुग के प्रभाव से ब्राह्मण वर्ग भी नहीं बच पाया और उनमें से कुछ दूषित एवं भ्रष्ट हो गये, मंत्रों का सही तरीके से उच्चारण करने की विधि भूल जाने के कारण वैदिक मंत्रों का दिव्य प्रभाव भी सीमित रह गया !
कुछ भ्रष्ट ब्राह्मणों ने बाद के समाज में कई कुरीतियाँ एवं प्रथाएँ चला दी, जिसके कारण समाज का शोषण होने लगा ! वर्णसंकर सन्तानें पैदा होने लगी एवं सतीप्रथा, छुआछूत जैसी प्रथाओं ने जन्म लिया !
परन्तु कई ब्राह्मणों ने कठोर तप एवं नियमों का पालन करते हुए कलियुग के प्रभाव के बावजूद वैदिक सभ्यता को किसी न किसी अंश में जीवित रखा, जिसके कारण आज भी ऋग्वेद एवं अन्य वैदिक ग्रंथ सहस्रों वर्षों बाद लगभग उसी रूप में उपलब्ध हैं !