क्या कोई मनुस्मृति विरोधी यह बतला सकता है कि मनुस्मृति के आधार पर कब-कब, किन-किन राजाओं ने शासन चलाया है ! जिन के शासनकाल में दंड व्यवस्था मनुस्मृति के आधार पर निर्धारित की जाती रही हो और मनुस्मृति का सहारा लेकर ब्राह्मणों ने शूद्रों का शोषण किया हो !
यह एक कपोल कल्पित राजनीतिक अवधारणा है ! जिसका सत्य से कोई लेना देना नहीं है किंतु फिर भी राजनीतिक लाभ के लिए इस अवधारणा को बहुत बल दिया जा रहा है !
दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि भारत के विनाश की इच्छा रखने वाले लोग इस समय मनु स्मृति के ओट में ब्राह्मणों का विरोध करने के लिए विदेशों से बहुत बड़ी मात्रा में धन और सुविधाएं आदि ले रहे हैं ! क्योंकि विदेशी शक्तियां यह जानती हैं कि जब तक भारत में ब्राह्मण सशक्त और प्रभावी रहेगा, तब तक भारत के प्राक्रतिक संसाधनों पर उनका कब्जा नहीं हो सकेगा !
अतः भारत के सभी संसाधनों को अपने नियंत्रण में करने के लिए भारतीय समाज में ब्राह्मणों का विरोध कर उन्हें निष्प्रभावी करना अत्यंत आवश्यक है इसी योजना के तहत विदेशी षड्यंत्रकारी भारत के अंदर अपने पाले हुए कुछ गद्दारों को धन और संसाधन देकर मनुस्मृति के नाम पर वर्ग संघर्ष करवाने की तैयारी कर रहे हैं !
भारतीय राजनीति सत्तावादी हो गयी ! वह परिवर्तनकामी नहीं रही ! कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, भूख और रोजगार, समता और सम्पन्नता के लक्ष्य राजनीति की कार्यसूची से बाहर है ! इस राजनीति का गुरुत्वाकर्षण राष्ट्र का परमवैभव नहीं है ! राष्ट्रविमुख यह राजनीति भारत की प्रकृति, संस्कृति, ज्ञान, गरिमा और परम्परा के पुरातन प्रतीकों को गाली देती है !
इस्लामी, ईसाई और मार्क्सवादी आदि सभी विदेशी मतो पंथों को प्रगतिशील और पंथनिरपेक्ष बताती है ! भारत माता-हिन्दुता को साम्प्रदायिकता बताती हैं ! भारतीय परम्परा की निंदा के लिए नई गालियाँ ईजाद करती है ! मनुवाद भी इसी तरह की एक गाली है ! दुनिया की राजनीतिक विचारधाराओं के इतिहास में बेशक तरह-तरह के विचार-वाद हैं ! साम्यवाद, समाजवादी, पूंजीवाद, फासीवाद, नाजीवाद आदि राजनैतिक उपधारणाएँ विदेशी हैं ! राष्ट्रवाद, गांधीवाद और भौतिकवाद (चार्वाक), आदि धारा भारतीय हैं !
मनुवाद अवसरवादी राजनीति की नई खोज है ! भारत सहित सारी दुनिया में इसका अस्तित्व ही नहीं है ! लेकिन इसके विरोधी काल्पनिक इस मनुवाद पर आक्रामक हैं ! उनकी नजर में भाजपा, कांग्रेस, सी०बी०आई० और अखबार वाले मनुवादी हैं ! वे जिससे खफा हैं वही मनुवादी ! मनुवाद एक काल्पनिक मगर मजेदार शत्रु है ! हालही में बनी जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष ने ‘मनुवाद’ की शोधकर्ता और विरोधी को ही मनुवादी बता डाला है !
माँ को वर्ण जाति व्यवस्था का जनक कहा जाता है ! लेकिन असलियत दूसरी है ! डॉ० अम्बेडकर मेहनती शोधकर्ता थे ! उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय न्यूयार्क में एक गोष्ठी (6 मई 1616) में ‘जाति की उत्पत्ति, संस्थापना और विस्तार पर अपना शोध पत्र पढ़ा, “मैं आपको एक बात बतलाना चाहता हूँ कि जाति धर्म का नियम मनु द्वारा प्रदत्त नहीं है और न वह ऐसा कर ही सकता था !
ब्राह्मण अनेक गल्तियाँ करने के दोषी रहे हो, मैं कह सकता हूँ कि वे ऐसे थे लेकिन जाति व्यवस्था को गैर ब्राह्मणों पर लाद सकने की क्षमता उनमें नहीं थी ! (डॉ० अम्बेडकर लेख और भाषण, पृष्ठ 21-22, सूचना विभाग उ०प्र०) डॉ० अम्बेडकर ने ऋग्वेद और अन्य सूत्रों के हवाले वर्ण-जाति व्यवस्था के सामाजिक विकास का परिणाम बताया ! सामाजिक विकास की प्रारम्भिक व्यवस्था में कार्य विभाजन नहीं थे !
ऋग्वेद में हजारों वर्ष पहले की समाज व्यवस्था का दिलचस्प वर्णन है ! ऋषि कहता है, “हे मित्रों आनंद में रहकर स्तोत्र रचो ! दंड लगाने वाली नौका बनाओ ! हल जोतो ! खेतों में बीज बोओ ! पशु को पानी पिलाने का स्थान बनाओ ! रस्सियाँ जोड़ो !अक्षम कप से मैं सिंचाई करता हूँ ! (ऋ० 10. 101. 1-6 ) ऋषि स्वयं मंत्र है और सिंचाई करता है ! बाकी ऋषि मित्रों से नौका बनाने खेत जोतने, वोने गन, चीन और जानवरों के पानी की चिंता का आह्वान करता है ! नवे मण्डल का एक ऋषि कर है “मैं कवि हँ ! पिता वैद्य है ! माँ कूटने का काम करती हैं !’ उस काल के यति हल से जोतते हैं ! कर्म आधारित वर्ग विभाजन नहीं है !
ऋग्वेद 6 से 10 हजार वर्ष पुराना होना चाहिए ! यहाँ वर्णित समाज व्यव उससे भी पहले की ही होगी ! मैक्समूलर के अनुसार ऋग्वैदिक ऋषियों का तल ज्ञान सांसारिक बंधनो, व्यक्तिगत सीमाओं और लिंगभेद से परे था !” आफ इण्डियन फिलास्फी पेज 13 ) ऋग्वेद में भरत, तृत्सु, पुरू, तुर्वस, यदु, नहष परू मील आदि समूहों के साथ मनु का भी उल्लेख भी है ! ऋग्वेद के अन “अश्विनी देवो ने मनु की समृद्धि के लिए सर्वप्रथम हल चलाया ! फसल उगाई !
ऋग्वेद 2.6 के अनुसार हल जोतने की शुरूवात अश्विनी ने मनु के लिए की ! सामाजिक विकास के इतिहास की दृष्टि से यही कृषि कार्य की शुरुवात होगी ! ऋग्वेद के अनुसार मनु ने यज्ञ के लिए अग्नि उगाई ऋ 7.2.3.) और मनु ने ही औ धियों की खोज की (ऋ.33.13) मार्क्सवादी चिंतन डॉ० रामबिलास शर्मा इतिहास दर्शन’ (पृष्ठ 25) में लिखते हैं, “मनु अत्यन्त प्राचीन इतिहास पुरुष थे ! ऋग्वेद में मनु का उल्लेख बार-बार हुआ है लेकिन जल प्रलय-का उल्लेख नहीं है ! यह तथ्य ऋग्वेद के मनु को पुराण कथाओं के मनु से अलग करता है !” सिंक्लेयर हुड के अनुसार मिस्र के प्रथम राजा (3,000 ई० पूर्व) मेने कहलाए और क्रीट के प्राचीनतम राजा मिनास ! ‘मिनोअन सभ्यता’ इसी नाम पर चली ! मिस्र के मेनेस, क्रीट के मिनास और भारत के मनु एक जैसे हैं !
डॉ० शर्मा लिखते हैं, “सम्भव है भारत से मिस्र को मनु नाम के भाषिक–सांस्कृतिक तत्व का निर्यात 3,000 ई०पूर्व से बहुत पहले हुआ हो” भारतीय प्रतीति में धरती का प्रथम व्यक्ति मनु है ! मनु से ही मनुष्य हैं ! अंग्रेजी का मैन और जर्मनी का मैनुष भारतीय मनु के करीबी हैं ! मनु के नाम पर ढेर सारी कथाएं हैं ! पुराणों के अनुसार प्रथम स्वायम्भु मनु की उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई ! इनके दो पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद थे ! प्रियव्रत के तीन पुत्र थे, उत्तम, तामस और रैवत ! ये तीनों तीन मन्वन्तरों के प्रतीक बने ! समय वोधक एक मन्वन्तर में चार युग होते हैं ! मनु की पुत्री के पुत्र स्वारोचिष के नाम पर दूसरा मन्वन्तर चला !
मनु क दूसरे पुत्र उत्तानपाद से भक्त ध्रुव पैदा हुए ! इन्हीं ध्रुव की वंश परम्परा में चाक्षुष एक नए मन्वन्तर के प्रतीक बने ! पुराणों में इन्हें छठा मनु कहा जाता है ! इसी में राजा वेन के पुत्र पृथु यशस्वी राजा थे ! इसी वंश परम्परा में जन्में दक्ष का नाती वैवस्वत मनु हुआ ! इन्हीं मनु का मन्वन्तर जारी है ! स्वायम्भुव मनु के समय राज्य व्यवस्था नहीं थी ! समाज स्वचालित और आत्मनिर्भर था ! वैवस्वत मनु के समय अराजकता थी ! पुराण व महाभारत के अनुसार लोगों ने इन्हीं मनु को राजाबताया ! जनता ने राजकाज के लिए अपनी पैदावार का छठा हिस्सा देने का वादा किया ! हाब्स, लाक और रूसो जैसे विद्वानों ने राज–समाज के जन्म का “सामाजिक समझौते का सिद्धांत” आधुनिककाल में खोजा ! भारतीय राज्य व्यवस्था में हजारों वर्ष पहले यह सामाजिक समझौता जनता और मनु के साथ हुआ !
इन्हीं मनु के बडे पुत्र इक्ष्वाकु के वंशज थे दशरथ और राम ! मनु के एक पुत्र नाभा नेदिष्ट की वंश परम्परा में हुए वैशाल के नाम पर वैशाली नगर बसा ! मनु के आठो पुत्रों ने अपने-अपने राज्य बनाये ! मनु की पुत्री इला से ऐलवंश चला ! उ०प्र० में प्रयाग के सामने ‘प्रति ठान’ इसकी राजधानी थी ऐलवंश के नहुष ने वाराणसी मे राज्य बनाया ! नहुष के पुत्र ययाति चक्रवर्ती बने ! ययाति के पुत्र यदु, तुर्वसु, द्रयु, अनु और पुरु के वंश भी चले ! वैदिक काल में गण जन बने ! वर्ण-जाति विभेद बहुत बाद में आया लेकिन धरती के सारे मनुष्य मनु का ही परिवार हैं !
मनुस्मृति 200 ई० पूर्व से 200 ई० के मध्य लिखी गयी ! सृष्टि के प्रथम मनुष्य मनु, ऋग्वैदिक मनु, पौराणिक स्वायम्भव मनु या वैवस्वत मनु इसके रचयिता नहीं है ! कौटिल्य अर्थशास्त्र मनुस्मृति से लगभग डेढ़ सौ वर्ष प्राचीन है ! गौतम धर्मसूत्र, आपस्तम्ब, आश्वलायन आदि नीति शास्त्रीय रचनाएं मनुस्मृति की करीबी हैं ! मनुस्मृति बेशक विश्व का एक प्राचीन कानूनी विधान ग्रंथ है पर इसमें ढेर सारा क्षेपक है ! वर्ण विद्वेष हैं और मनुष्य की गरिमा का अवमान भी ! इस कालखण्ड में मनु नाम के किसी विद्वान का ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलता !
इतिहासकार मनुस्मृति का रचनाकाल अंदाजिया तौर पर 200 ई०पू० से 200 ई०पू० के बीच बताते हैं ! मनुस्मृति को कानूनी मान्यता नहीं मिली ! फिर प्रत्येक विधान व्यवस्था तात्कालिक समाज के लिए ही होती है ! भारत के संविधान का निर्माण 1949 में पूरा हुआ ! संविधान सभा ने राज्यपालों के चुनाव का प्राविधान पारित किया ! उसी संविधान सभा ने बाद में राज्यपालों के मनोनयन का प्रस्ताव बनाया ! मात्र 50 वर्ष में लगभग 100 संशोधन हो गये ! लेकिन संविधान को गाली नहीं दी जाती, मनु स्मृति गाली खाती है !
मनुस्मृति कालवाह्य स्मृति-शेष है ! लेकिन मनु वेद पुरुष है ! पुराण पुरुष और आद्यपूर्वज ! लेकिन राजनीतिक अवसरवाद मनु के नाम पर काल्पनिक मनुवाद का शत्रु गढ़कर पूर्वजों को गाली दे रहा है ! मनुवाद आखिर है क्या? जो सी०बी०आई० में है, जो अखबारों और अखबार वालों में है, जो भाजपा और कांग्रेस. में है और जो न होकर भी है, सिर्फ गाली के रूप में !