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अंत मे इसका प्रमाण भी दिया गया है ।
जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू अधिक पढे लिखे व्यक्ति नहीं थे . कम उम्र में विवाह के बाद जीविका की खोज में वह इलाहबाद आ गये थे. उसके बसने का स्थान मीरगंज था,ये मीरगंज वही स्थान है जहां एक समय तुर्क और मुग़ल अपहृत हिन्दू महिलाओं को अपने मनोरंजन के लिए रखते थे. मोतीलाल नेहरू तीसरी पत्नी के साथ जीविका चलाने के लिए वेश्यालय में शाम को हुक्का पेशी का कार्य करने लगे
.वहीं इनका परिचय उच्च न्यायलय में एक प्रसिद्द वकील मुबारक अली से हुआ जिन्होंने दिन के समय मोतीलाल नेहरू से कचहरी में मुख्तार का काम लेना शुरू कर दिया | इसी बीच मोतीलाल नेहरू की तीसरी पत्नी ने भारत के प्रथम प्रधान मंत्री को मीरगंज के वेश्यालय में कोठा नम्बर 44 में जन्म दिया | जैसे ही जवाहर पी एम् बना वैसे ही तुरंत उसने मीरगंज का वह मकान तुडवा दिया ,और अफवाह फैला दी की वह आनद भवन (इशरत महल) में पैदा हुआ था जबकि उस समय आनंद भवन था ही नहीं।

अभी कुछ महीने पूर्व इलाहबाद हाईकोर्ट ने इस अपील पर अपना निर्णय दे दिया , हाईकोर्ट ने जिस्मफिरोशी का अड्डा बन चुके मीरगंज के क्षेत्र मे नेहरू की मूर्ति लगाने का आदेश दिया है इस निर्णय के बाद अब कोई संशय नहीं रह जाता कि पंडित नेहरू का जन्म इलाहबाद के वेश्यालय मे हुआ था ।