मात्र ब्राहमण ही राष्ट्र का रक्षक और मार्गदर्शक हो सकता है | Yogesh Mishra

वैदिककाल से आज तक ब्राह्मणों ने हर दौर में अपनी योग्यता सिद्ध की है। वैदिककाल में “जमदग्नि”, “भरद्वाज”, “गौतम” आदि ऋषि तो मंत्रों के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान की चरमसीमा तक पहुँच गए थे। उस समय कला, शिल्प, चिकित्सा, शिक्षा आदि के क्षेत्र में उन्नत तकनीकों को देने वाले ऋषिगण ब्राह्मण समाज के ही थे। यही क्रम बाद में भी जारी रहा।

गणित के क्षेत्र में ब्राह्मण पुत्र “आर्यभट्‍ट” तथा परमाणुशास्त्र के जनक “महर्षि कणाद” द्वारा दिए गए सूत्रों पर आज भी देश-विदेश में अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं। इसी प्रकार का उल्लेखनीय योगदान राजनीति के क्षेत्र में भी कई दिग्गजों ने किया। वशि‍ष्ठ ऋषि के मार्गदर्शन में भगवान राम ने तो वर्षों तक अयोध्या पर शासन किया।
पुराणों में भी अनेक शासकों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने अपने आचार्यों के आदेश को शिरोधार्य कर राजधर्म निभाया। कई बार तो आवश्यकता पड़ने पर ब्राह्मणों ने स्वयं ही शासन किया। मैत्रायणीय शाखा के मातृ विष्णु और धान्य विष्णु को एरण का शासक बनाया गया था। इतिहास में कई ऐसे ब्राह्मण हुए हैं, जिन्होंने दुराचारी शासकों से प्रजा को मुक्त कराते हुए राजकाज संभाला और धर्म की रक्षा की । श्री शुंग, परमार, सातवाहन, मंडौर के प्रतिहार ब्राह्मण, कदम्ब, चालुक्य तथा पल्लव शासक ब्राह्मण थे |

मदमस्त-तानाशाह राजाओं को भी सबक सिखाने में ब्राह्मण कभी पीछे नहीं रहा है। उसने त्रस्त जनता को आजादी दिलाने के लिए हर चुनौती का सामना किया है | यही नहीं मौका आने पर आम लोगों को साथ में लेकर तानाशाहों का तख्ता भी पलट दिया। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की इस महाव्याधि को पहचानकर ही आचार्य चाणक्य ने मगध के कर्तव्यविमुख शासक महापद्मानन्द और उसके वंश का समूल नाश कर दिया था । साथ ही पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधकर उसकी बागडोर पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य को सौंप दी थी। चाणक्य की कूटनीति का परिणाम था कि सिकन्दर की मृत्यु के बाद यूनानी सेनापति सेल्यूकस भारत की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं कर पाया और आचार्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र राजनीति के क्षेत्र में अपनी अलग ही पहचान रखता है। यदि आज भी उसमें दिए नियमों और सिद्धांतों का पालन अक्षरश: किया जाए तो देश से भ्रष्‍टाचार जैसी समस्याओं को जड़ से समाप्त किया जा सकती है और गिरती हुई अर्थव्यवस्था को भी लाइन पर लाया जा सकता है।

इस देश का कण-कण गवाह है कि जब-जब यहाँ के शासकों ने अनाचार किए तथा बाहरी आक्रमणकारियों का प्रतिरोध नहीं किया, तब-तब ब्राह्मणों ने ही जनता की भलाई के लिए त्याग और बलिदान की मिसाल बनाई। मुगलकाल में अकबर द्वारा दिए जाने वाले सुशासन के पीछे भी बीरबल जैसे प्रकाण्‍ड विद्वान ब्राह्मण का भी हाथ था। देश को गुलाम बनाने वाले फिरंगियों से लड़ाई की शुरूआत करने वाले शहीद मंगल पाण्डेय, झाँसी की रानी से लेकर आजाद भारत का सपना हर एक के जेहन में जगाने वाले मदनमोहन मालवीय, बालगंगाधर तिलक, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद जैसे कई नाम हमारी जुबान पर हैं, जो व्यक्तिगत सुख को छोड़कर देश के लिए न्यौछावर हो गए। जो अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुके हैं | ये सभी देशभक्त शूरवीर जातिगत रूप से ब्राह्मण ही थे।

आजादी के बाद के देश के निर्माण में भी ब्राह्मण समाज मुख्य किरदार में रहे । पं गुरु गोलवलकर आदि ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नेतृत्व करते हुए देशहित के कई मुद्दों पर राजनीतिज्ञों का ध्यानाकर्षण कराया। भारतीय लोकतंत्र के प्रथम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने उतरी रामराज्य पार्टी के संस्थापक करपात्रीजी महाराज भी संन्यास से पूर्व ब्राह्मण ही थे। इसी प्रकार भारत के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जनसंघ के संस्थापक पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटलबिहारी वाजपेयी आदि ब्राह्मणकुल गौरव भारतीय राजनीति की धूरी बने रहे। यही नहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछले 70 साल तक ब्राह्मणों का दबदबा कायम रहा । यहाँ अब तक 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण जाति से ही आए हैं और जो शासक ब्राह्मण नहीं थे | उन्होंने ने भी सत्ता ब्राहमणों के सलाह से ही चलायी है | उनके सलाहकार जनेश्वर मिश्र, सतीश चन्द्र मिश्र, अभिषेकं मिश्र, नृपेन्द्र कुमार मिश्र, राजीव दीक्षित आदि सब ब्राह्मण ही थे ।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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