बीसवीं सदी के सबसे बड़े दार्शनिक, विचारक, चिंतक, बुद्धत्व को प्राप्त, गहन मनोचिकित्सक चंद्र मोहन जैन उर्फ़ भगवान रजनीश उर्फ़ ओशो के पुणे स्थित रजनीशपुरम आश्रम एवं उनकी सभी बौद्धिक संपदा के ऊपर अधिकार जमाने हेतु एक बहुत बड़ा विवाद मुंबई उच्च न्यायालय में विचाराधीन है !
यह विवाद यह बतलाता है कि ओशो अपने अंतिम समय में अपने धूर्त, मक्कार, स्वार्थी और अवसरवादी तथाकथित शिष्यों से बुरी तरह घिर गये थे !
और ओशो के व्यक्तिगत डॉक्टर द्वारा जो एफिडेविट ओशो के मृत्यु के अंतिम क्षणों के संदर्भ में दिया गया, उसमें तो एकदम स्पष्ट कर दिया गया है कि ओशो की मृत्यु न तो किसी रोग से हुई थी और न ही अधिक आयु के कारण हुई थी बल्कि उनकी हत्या योजनाबद्ध तरीके से की गई थी !
अरबों की उनकी इस संपत्ति के पीछे के विवाद को अगर गहराई से देखा जाये तो पता चलता है कि ओशो की हत्या करने के लिए भक्तों रूप में कुछ लोग काफी लंबे समय से ओशो के साथ उनका विश्वास जीतने में लगे थे और अवसर पाते ही उन्होंने बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से ओशो की हत्या कर दी !
विषय समाज में न पहुंचे इसके लिए ओशो की मृत्यु के मात्र 1 घंटे के अंदर उनका अंत्येष्टि संस्कार भी कर दिया गया ! उनके किसी शिष्य के अंतिम दर्शन का इंतजार ही नहीं किया गया ! अंत्येष्टि संस्कार भी उन्हीं के आश्रम के अंदर ही कर दिया गया ! जिसकी तैयारी पहले से ही कर ली गई थी !
ताज्जुब तो तब हुआ जब ओशो की अपनी सगी मां जो कि उसी आश्रम में रहती थी, उन्हें भी ओशो की अंत्येष्टि के बाद ही ओशो के मृत्यु की सूचना दी गई और इस इतने महत्वपूर्ण हत्या कांड की कोई सूचना मिडिया ने भी उजागर नहीं की !
ओशो के व्यक्तिगत डॉक्टर ने अपने एफिडेविट में यह कहा है कि ओशो के तबीयत बिगड़ने की सूचना उन्हें दोपहर 1:00 बजे ही मिल गई थी ! वह तत्काल रजनीश पुरम आश्रम पहुंचे थे किंतु दोपहर 1:30 बजे से सायं 5:00 बजे तक उन्हें ओशो से नहीं मिलने दिया गया !
शायद षड्यंत्रकारी ओशो के मरने का इंतजार कर रहे थे ! ओशो की मृत्यु होते ही उनके कुछ खास विश्वसनीय लोगों ने उस डॉक्टर पर जल्द से जल्द उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने का दबाव डाला और डॉक्टर को कायदे से ओशो के शरीर के परीक्षण तक करने की इजाजत भी नहीं दी !
यह सभी तथ्य यह बतलाते हैं कि ओशो की अगाध संपत्ति को हड़पने के लिए समाज का शातिर वर्ग ओशो आश्रम में शिष्य के रूप में आया, बाद में व्यवस्था का हिस्सा बना और ओशो का विश्वास जीतकर ओशो के अति निकट चला गया और अवसर पाते ही इसी वर्ग के लोगों ने ओशो की संपत्ति हड़पने के लिए उसकी हत्या कर दी !
और हत्यारों ने अपने को बचाने के लिए ओशो के शरीर को जल्दी से जल्दी जला कर खत्म कर दिया ! कोई ताज्जुब नहीं है कि इस पूरे घटनाक्रम में राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय राजनीतिज्ञों का भी हाथ हो, जो आज भी मुंबई उच्च न्यायालय की निगाह से बचे हुये हैं ! तभी तो इस प्रकरण की आज तक कोई प्रमाणित और विधिक जाँच नहीं हुई !
फिलहाल मामला मुंबई उच्च न्यायालय में विचाराधीन है और हम सभी को अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा करनी होगी !जो शायद हम लोगों के जीवन काल में नहीं आयेगा ! यह है भारत में बुद्धिजीवियों की गति !!