हमारा सनातन ज्ञान ही सबसे प्राचीन और श्रेष्ठ है ! : Yogesh Mishra

पृथ्वी से सूर्य की दूरी की सटीक गणना दर्शाती श्री हनुमान चालीसा की जिस पंक्ति का उल्लेख मैंने किया है, उस पर मैंने भी कभी ध्यान नहीं दिया था ! कल रात ट्विटर पर इस सम्बंध में एक सज्जन का ट्वीट देखा तो जिज्ञासावश इसकी जांच करने लगा ! उसी क्रम में लल्लनटॉपिया समेत उस जैसी ही कुछ अन्य वामपंथी वेबसाईटो पर इस तथ्य को झुठलाने के कुत्सित प्रयासो को भी देखा ! यद्यपि उनके उन प्रयासों को गहनता से देखा तो उनके प्रयास किसी ठोस तर्क या तथ्य पर आधारित नहीं थे ! इसके बजाय गणना में मील और किलोमीटर के घालमेल की जालसाजी से उपरोक्त तथ्य/सत्य को नकारने का थोथा प्रयास किया गया था !

अतः पूर्णतः संतुष्टि के पश्चात पिछली पोस्ट मैंने इसलिए लिखी क्योंकि मुझे लगा कि हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति सभ्यता की अमूल्य अतुल्य धरोहरों के विशिष्ट विलक्षण विपुल ज्ञानकोष के इतिहास को नकारने झुठलाने मिटाने के कुत्सित प्रयास आज भी जारी हैं और उनका प्रचंड प्रतिकार अत्यावश्यक है ! अतः इसी क्रम में एक अन्य तथ्य से आपको परिचित करा रहा हूं !

एक बहुत छोटे और सामान्य उदाहरण से बात प्रारम्भ करता हूं। हम सभी मित्रों का पंचांग से परिचय होगा। पंचांग के द्वारा ग्रहों नक्षत्रों की गति स्थिति एवं स्थान परिवर्तन की समयावधि की सूक्ष्मतम गणना कुछ ही क्षणों में कर ली जाती है !

इसका सर्वाधिक उल्लेखनीय पक्ष यह है कि पंचांग के द्वारा उपरोक्त सूचनाएं ज्ञात प्राप्त करने की विधि इतनी सरल सहज है कि दूर दराज के गांव में बैठा कोई समान्य शिक्षित या अल्प शिक्षित पंडित भी पंचांग देखकर आप को उपरोक्त सूचनाएं बता देता है ! यह पद्धति इतनी विस्तृत है कि आप इसके माध्यम से यह भी जान सकते हैं कि 100 वर्ष बाद सूर्य या चंद्र ग्रहण किस दिन कितने बजे पड़ेगा ! या 100 वर्ष पूर्व कब पड़ा था ! वर्षों पूर्व की तथा वर्षों बाद की किसी भी तिथि को होने वाले सूर्योदय और सूर्यास्त का समय भी हम पंचांग के द्वारा जान सकते हैं !

पंचांग के अनुसार ही शुभ अशुभ तिथियों ग्रहों के योग संयोग के आधार पर ही प्रत्येक हिन्दू धर्मावलंबी अपने अनेक महत्वपूर्ण कार्यों की तिथियों का निर्धारण करता है ! लेकिन किसी ने कभी सोचा कि करोड़ों मील दूर आकाश गंगा स्थित तारामंडल के ग्रहों नक्षत्रों की गति प्रकृति स्थिति और स्थान की शत प्रतिशत सटीक गणना की पंचांग पद्धति हजारों वर्ष पूर्व किस आधार पर कैसे और किसने विकसित की !

ज्ञात रहे कि हिंदू पंचांग की उत्पत्ति वैदिक काल में ही हो चुकी थी। सूर्य को जगत की आत्मा मानकर उक्त काल में सूर्य व नक्षत्र सिद्धांत पर आधारित पंचांग होता था। वैदिक काल के पश्चात् आर्यभट, वराहमिहिर, भास्कर आदि जैसे खगोलशास्त्रियों ने पंचांग को विकसित कर उसमें चंद्र की कलाओं का भी वर्णन किया।

वेदों और अन्य ग्रंथों में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी और नक्षत्र सभी की स्थिति, दूरी और गति का वर्णन किया गया है। स्थिति, दूरी और गति के मान से ही पृथ्वी पर होने वाले दिन-रात और अन्य संधिकाल को विभाजित कर एक पूर्ण सटीक पंचांग बनाया गया है।

पंचांग प्रमाण हैं इस तथ्य का कि हजारों वर्ष पूर्व जब शेष विश्व का सभ्यता संस्कृति शिक्षा से कोई सम्बंध नहीं था उस समय भारतीय मेधा और मनीषी अंतरिक्ष के रहस्यों को खंगाल रहे थे ! इस श्रेष्ठतम परंपरा का क्रम 11 वीं शताब्दी तक चलता रहा !

लेकिन नालंदा तक्षशिला विक्रमशिला सरीखे विद्या, ज्ञान विज्ञान के महानतम केन्द्रों को जला कर राख कर देने, ध्वस्त कर देने की राक्षसी सभ्यता संस्कृति से साष्टांग संक्रमित राक्षसों सरीखे आक्रमणकारी अनपढ़ गँवार मुगलों के आगमन के साथ ही प्रारम्भ हुई शिक्षा और ज्ञान के संहार की राक्षसी परंपरा लगातार 6-7 सौ वर्षों तक चलती रही ! यहां मैं कोई अतिशयोक्ति का उपयोग नहीं कर रहा !

उन्हीं मुगल शासकों द्वारा नियुक्त उनके इतिहासकारो ने ही उनके अनपढ़ होने और उनके गँवारपन की कलई अपनी लिखी किताबों में खोली है ! उन 6-7 सौ वर्षों के दौरान ज्ञान के केन्द्र ध्वस्त किए जाते रहे और एक भी ऐसे केंद्र का निर्माण नहीं किया गया ! परिणामस्वरुप हमारी भारतीय ज्ञानयात्रा सैकड़ों वर्ष पीछे रह गई ! यदि इस अनपढ़ गंवार राक्षसी संस्कृति का आगमन और वर्चस्व भारत में नहीं हुआ होता तो यह निश्चित है कि नासा सरीखा विश्व का सर्वश्रेष्ट अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र आज अमेरिका में नहीं भारत में होता और सम्भवतः नासा से भी श्रेष्ठ होता !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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