पुलिस की लाठी मौलिक अधिकार नहीं छीन सकती है ! : Yogesh Mishra

भारतीय संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों की श्रेणी में अनुच्छेद 21 में हर भारतीय को जन्म से ही जीवन या फिर व्यक्तिगत स्‍वतंत्रता का अधिकार दिया गया है ! यह व्यवस्था जापान के संविधान से लिया गया है ! जिसके अंतर्गत देश का कोई भी नागरिक अपने जीवन या व्यक्तिगत स्‍वतंत्रता से वंचित नहीं रहेगा !

जिसमें किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति के भोजन करने का अधिकार शामिल है अर्थात यदि कोई व्यक्ति अपने भोजन करने के लिए कोई खाद्य सामग्री लेने घर के बाहर निकलता है तो पुलिस को ऐसा कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह उसे लाठियां मारे !

जब शासन प्रशासन किसी भी व्यक्ति के लिए भोजन की समुचित व्यवस्था कर ले इसके उपरांत भी व्यक्ति अनावश्यक रूप से घर से बाहर निकले तो उस स्थिति में व्यक्ति की जीवन रक्षा एवं समाज के हित में पुलिस यदि सकती करती है तो वह विधि के अनुसार मान्य है !

लेकिन जब शासन प्रशासन भारत के आम आवाम को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने में अक्षम है और एक तत्कालिक आदेश के द्वारा व्यक्तियों को बिना किसी तैयारी के घरों में कैद होने का निर्देश दे दिया गया है तो उस स्थिति में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक भारत के नागरिक का यह मौलिक अधिकार है कि वह अपने लिए खाद्य सामग्री प्राप्त करने हेतु घर से बाहर निकल कर उसकी व्यवस्था कर सकता है !

ऐसी स्थिति में यदि पुलिस उस व्यक्ति को घर से निकलने का कारण पूछे बिना लाठी मारती है तो लाठी मारने वाले पुलिस अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध मौलिक अधिकार हनन का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिये !

क्योंकि पुलिस को लाठी चलने का अधिकार मात्र विशेष स्थिती में ही है ! मनचाहे ठंग से लाठी नहीं चला सकती है ! व्यवस्था के तहत दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 144 एक ‌‌डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, सब-‌डी‌विजनल मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार की ओर से किसी विशेष स्‍थान या क्षेत्र में एक व्यक्ति या आम जनता को “विशेष गतिविधि से दूर रहने” या “अपने कब्जे या प्रबंधन की किसी संपत्ति के संबंध में कोई आदेश लेने के लिए” आदेश जारी करने की शक्ति देती है।

धारा 144 लगाने का आदेश “मजिस्ट्रेट” निम्न ‌स्थितियों पर रोक लगाने के लिए दे सकता है-

1- किसी भी व्यक्ति को कानूनी रूप से नियोजित करने में बाधा हो, परेशानी हो या चोट आने की आशंका हो !

2- मानव जीवन को, स्वास्‍थ्य और सुरक्षा पर संकट हो !

3-अशांति, दंगा या उत्पीड़न की आशंका हो !

यह आदेश एक विशेष व्यक्ति, व्यक्ति के समूह या आम जनता के खिलाफ पारित किया जा सकता है।

किंतु इसका तात्पर्य यह नहीं के एक मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति के “जीने का अधिकार” ही छीन ले ! यदि व्यक्ति के घर पर पर्याप्त भोजन नहीं है ! तो उस स्थिति में सर्वप्रथम तो शासन प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि उस व्यक्ति द्वारा सूचना दिये जाने पर शासन-प्रशासन तत्काल उसके भोजन की व्यवस्था करें !

और यदि शासन-प्रशासन उस व्यक्ति के भोजन की व्यवस्था करने में अक्षम है या लापरवाहीवश भोजन की व्यवस्था नहीं कर रही है ! तो अपनी जीवन रक्षा के लिये उस व्यक्ति को यह मौलिक अधिकार प्राप्त है कि वह घर के बाहर निकले और अपने लिये पर्याप्त भोजन की व्यवस्था करें !

ऐसी स्थिति में किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के आदेश के तहत यदि कोई पुलिस वाला बिना कारण पूछे अनावश्यक रूप से लाठी मारता है तो यह विधि विरुद्ध है !

जीवन के अधिकार पर एक ऐतिहासिक फैसले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य बातों के साथ यह भी कहा कि, ” जीवन जीने के अधिकार में मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है ! जिसमें पर्याप्त पोषण युक्त भोजन, कपड़े, आश्रय और आत्म अभिव्यक्ति की सुविधायें, पढ़ना लिखना और व्यक्त करना, आदि शामिल है !”

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …