पूतना राक्षसी नहीं बल्कि चंद्रवंशीय क्षत्राणी थी ! उसके बचपन का नाम स्वाति था और वह कंस के बचपन की मित्र और कंस के सेनापति प्रद्युम्न की पत्नी थी ! जब कंस को पता चला कि उसके पिता उग्रसेन के महामंत्री यदुवंशी शूर के पुत्र वासुदेव जो कि देवकी के पति तथा कंस के जीजा थे ! वह अपनी चचेरी बहन कुन्ती के पति हस्तिनापुर के राजा पांडु के सहयोग से कंस की हत्या करवा कर स्वयं मथुरा का राजा बनना चाहता है ! तब कंस ने वैदिक उपचार हेतु अपने राज ज्योतिषी को बुलवाया ! तब उसे राज ज्योतिषी से ज्योतिष गणना द्वारा पता चला कि वासुदेव और देवकी के पुत्र द्वारा उसकी हत्या होगी ! न कि वासुदेव के चचेरी बहन कुन्ती के पति पांडू के द्वारा !
अतः कंस ने वासुदेव को देवकी और उसकी 11 पत्नी और 42 बच्चों सहित राजमहल में नजरबंद कर दिया ! दूसरी तरफ नन्द बाबा जो कि वासुदेव के चचेरे भाई थे ! उन्होंने वासुदेव के पुत्र कृष्ण को जन्म लेते ही द्वारपाल की मदद से चुपचाप मथुरा से वृंदावन मंगवा लिया था और उसी समय अपने यहाँ पैदा हुई नंद बाबा की कन्या को मथुरा भिजवा दिया था !
जब इस बात की जानकारी कंस को हुई तब कंस ने पता किया कि वह बालक वृंदावन में किसके यहां है पर कोई पक्की सूचना न मिलने पर उसने अपने सेनापति प्रद्युम्न को आदेशित किया कृष्ण पक्ष के भाद्रपद की अष्टमी के दिन जितने भी बालक वृंदावन में पैदा हुये हैं ! उन सब की हत्या करवा दी जाये ! तब कंस के सेनापति ने 6 बालकों की हत्या करवा दी ! इसके बाद जब कंस को पता चला कि वृंदावन की चौधरी नंद बाबा की संतान भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पैदा हुई थी ! तब कंस ने उसको भी मारने के लिये अपने सेनापति से कहा !
क्योंकि वृंदावन में पहले से ही छ: बच्चों की हत्या हो चुकी थी ! अतः वहां के नागरिक बहुत जागरूक हो गये थे ! उस स्थित में नंद बाबा के घर में घुसकर कृष्ण की हत्या किया जाना सैनिकों के द्वारा संभव नहीं था ! अतः सेनापति ने अपनी पत्नी स्वाति से कहा कि तुम ग्वालिन बन कर जहर की पुड़िया अपने आंचल में बांधकर नंद बाबा के घर मिलने जाओ और मौका देख कर कृष्ण को वह जहर खिला देना !
स्वाति ने वैसा ही किया स्वाती अपने आंचल में जहर की पुड़िया बांधकर नंद बाबा के घर गई ! किन्तु जागरूक नागरिकों ने उसके आंचल में बंधी हुयी पुड़िया देखकर उसे पकड़ लिया और सभी बच्चों के हत्या का कारण बतलाते हुये उसे पीटना शुरू किया ! उस मारपीट से घबड़ा कर स्वाति ने अपने आंचल में बंधी हुई उस जहर की पुड़िया को खा लिया और मौके पर ही मर गई !
इस घटना के बाद वृंदावन क्षेत्र में बच्चों को बाहरी स्त्रियों के साथ संपर्क संवाद करने के लिये कठोरता से मना किया गया ! वृंदावन में पुत्र को पूत कहते हैं ! तो यदि कोई बच्चा बाहरी किसी व्यक्ति से कोई बात करता था तो उसके परिवार वाले उस बच्चे को डाँटते हुये कहते थे “न पूत न” अर्थात बच्चे बाहरी व्यक्ति से बात मत करो ! इसी “न पूत न” शब्द के संयुक्त शब्द से “पूतना” बन गया और कथावाचकों की कृपा से पौराणिक कथाओं में चंद्रवंशीय क्षत्राणी स्वाति का नाम पूतना हो गया !
फिर कुछ समय बाद कंस के सेनापति प्रद्युम्न ने अपने बड़े भाई वर्ष्ण को कृष्ण की हत्या करने के लिये भेजा था ! जिसे कृष्ण को चुरा कर भागते समय बलराम तथा अन्य बालकों ने देख लिया था और पीट- पीट कर मार डाला था ! जिसे पुराणों में बकासुर कहा गया !!