प्राय: हर आध्यात्मिक व्यक्ति यह चाहता है कि उसे एक योग्य गुरु मिले और वह गुरु उस व्यक्ति के अंदर शक्तिपात द्वारा अपनी ऐसी आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवेश कर दे, जो उस गुरु ने बहुत लंबे समय के तपस्या के उपरांत प्राप्त किया है !
शायद इसके पीछे जल्दी चमत्कार को देखने की इच्छा भी हो सकती है या शिष्य का वह आलस्य भी हो सकता है, जिसके तहत वह गुरु जैसी लंबी साधना नहीं करना चाहता है !
खैर कोई बात नहीं गुरु का शोषण करना शिष्य का आध्यात्मिक अधिकार है ! लेकिन समस्या तक खड़ी होती है कि जब व्यक्ति बिना किसी तैयारी के शक्तिपात के लिए अपने गुरु से बार-बार आग्रह करना शुरू कर देता है !
आखिर शक्तिपात है क्या ? इसकी समझ शिष्यों में क्यों नहीं होती है ! शक्तिपात वह प्रक्रिया है जिसके तहत गुरु अपने ज्ञान रूपी वृक्ष का एक छोटा सा बीज शिष्य के प्राण ऊर्जा में रोपित कर देता है और वह छोटा सा बीज बहुत जल्द अनुकूल परिस्थितियों में विकसित होकर एक बड़े वट वृक्ष का रूप लेने लगता है !
अब समस्या यहीं आती है की नादानी के कारण एक शिष्य इस गुरु के द्वारा रोपित किये गये विशाल वटवृक्ष को एक छोटे से संस्कार के गमले में स्थापित करना चाहता है !
किंतु काल के प्रवाह में जब वह विशाल वटवृक्ष अपना आकार लेता है, तो संस्कारों का वह गमला दरकने लगता है और ऊर्जा के प्रवाह से वह अबोध जिद्दी शिष्य तड़पने लगता है !
शिष्य की समस्त आंतरिक और बाह्य व्यवस्था बिगड़ जाती है ! जीवनी ऊर्जा का प्रवाह तेज हो जाता है ! मस्तिष्क के अंदर न्यूरॉन्स की गति कई गुना तेज हो जाती है ! रक्त संचार बढ़ जाता है ! शरीर के विभिन्न अंग अनावश्यक ही बिना किसी तैयारी के सक्रिय होने लगते हैं ! शरीर में मस्तिष्क के निर्देश पर तरह-तरह के रसायनों का निर्माण होने लगता है और शिष्य के अंदर गुरु जैसे आध्यात्मिक लक्षण प्रकट होने लगते हैं !
लेकिन दिक्कत यह है कि शिष्य इस परिवर्तन के लिए तैयार हुए बिना ही शक्तिपात करवा लेता है ! जो साधना, उपासना या तप से तैयारी की जानी चाहिए, उस तैयारी के बिना ही जब एक शिष्य गुरु से हठ कर के अपने अंदर शक्तिपात के द्वारा ऊर्जा का संचार करवा लेता है तो इससे गुरु को तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन वह शिष्य बहुत से संकटों से घिर जाता है !
मैंने देखा है, ऐसे जिद्दी शिष्यों की ब्रेन हेमरेज में मृत्यु हो जाती है ! किडनी फेल हो जाती है ! पैंक्रियास फेल हो जाता है ! हार्ड बीड रुक जाती है ! आंतों का पेरालाईसेस हो जाता है और कभी-कभी तो व्यक्ति जीवित तो रहता है, लेकिन मानसिक स्थिती विक्षिप्त के स्तर तक पहुँच जाती है और व्यक्ति का जीवित रहना भी अभिशाप बन जाता है !
इसलिए बिना तैयारी के कभी भी शक्तिपात के लिए गुरु से जिद्द नहीं करनी चाहिए ! गुरु तो देने के लिए बना ही है ! आप में लेने की पात्रता तो विकसित करो और यदि संस्कारों के प्रभाव में आपके अंदर अभी पात्रता विकसित नहीं हुई है, तो गुरु के निर्देश पर साधना तप आदि के द्वारा अपने संस्कारों में परिवर्तन कर अपने अंदर पात्रता तो पैदा करो ! गुरु तो अपना काम क्षण भर में कर देगा लेकिन तुम्हें वह पात्रता पैदा करने में कभी-कभी संपूर्ण जीवन लग सकता है !
इसीलिए मेरा आपको यह सुझाव है कि गुरु से शक्तिपात का आग्रह करने के पहले गुरु से यह जान लो कि हम क्या शक्तिपात के लिए तैयार हैं और यदि नहीं तो हमें अपने अंदर क्या परिवर्तन करना चाहिये !
जब तक उस परिवर्तन की प्रक्रिया को पूरा न कर लो, तब तक शक्तिपात की क्रिया में प्रवेश मत करो, अन्यथा लाभ के स्थान पर सदैव हानि ही होगी !!