जन्म के सही समय निर्धारण का विज्ञान
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सामान्यतयः लग्न लगभग दो घंटे तक एक ही रहती है फिर भी जिस तरह दो व्यक्तियों के अंगूठे का निशान , आँखोँ के रैटीना की डिजायन या हृदय की धड़कन एक जैसी नहीं हो सकती ठीक उसी तरह कभी भी दो व्यक्तियों की जन्मकुंडली एक जैसी नहीं हो सकती है l
यहाँ तक कि एक ही स्थान पर एक ही माँ से जन्म लेने वाले दो जुड़वाँ बच्चो की जन्मकुंडली भी एक जैसी नहीं हो सकती है क्योकि स्थूल रूप से देखने पर लग्न कुण्डली, चन्द्र कुण्डली, नवमांश कुण्डली, चलित कुण्डली तो एक जैसी ही दिखती है किन्तु जब कुण्डली के विस्तृत विश्लेषण की बात आती है तो विद्या के लिये चतुर्विशांश, बलाबल के लिये सप्तविशांश, अरिष्ट गणना के लिये त्रिविशांश, सुख कि गणना के लिये षोडशांश आदि कुंडलियाँ बनानी पड़ती है, जो कि एक ही लग्न में लगभग हर 2 मिनट बाद बदलती रहती है I
अन्य अधिक बारीक़ गणना की स्थिती में प्रत्येक 3 सेकेंड के अन्तराल पर कुंडलियों का सूक्ष्म विश्लेषण बदलता रहता है I ऐसी स्थिती में यह आवश्यक हो जाता है कि जन्म के सही समय की गणना सटीकता से की जाये अब प्रश्न यह है कि जन्म का सही समय किसे माना जाये I
जन्म के सही समय के निर्धारण पर सनातन ज्ञान पीठ द्वारा गंभीर शोध कार्य आरम्भ किया गया तो यह पाया गया कि कुछ विद्वान जन्म का सही समय वह समय मानते है जब शुक्राणु डिम्ब के साथ निषेचन क्रिया करके गर्भ स्थापित करता है किन्तु इस समय निर्धारण की समस्या यह है कि निषेचन के सही समय पता नहीं लगाया जा सकता है I
अतः कुछ विद्वानों ने जन्म का सही समय वह मान है जब माँ के गर्भ में जीव आत्मा का प्रवेश होता है और गर्भ पिण्ड पहली बार हरकत करता है किन्तु इस पर भी अनेक विद्वान विभिन्न कारणों से सहमत नहीं हुए I कुछ विद्वानों ने यह मत दिया कि जब बच्चा माँ के गर्भ से निकलने का पहली बार प्रयास शुरू करता है तो वह प्रसव पीडा कि प्रथम वेदना जन्म का सही समय है किन्तु इस पर भी विद्वान एक मत नहीं है अतः कुछ विद्वानों ने यह माना कि जब बच्चे के माँ के शरीर से बाहर निकलते समय प्रथम दर्शन हो वह जन्म का सही समय है I
लेकिन इस पर भी विद्वान एक मत नहीं है इसलिए विद्वानों ने यह निर्णय लिया कि जब बच्चा पूरी तरह माँ के शरीर से बाहर आ जाये वही समय जन्म का सही समय है I इस पर भी कुछ विद्वानों का मत है कि जब तक बच्चे कि नाल माँ से जुड़ी है तब तक बच्चा माँ के शरीर का अंश है अतः नाल काटने का समय ही बच्चे के जन्म का सही समय माना जाना चाहिये I
शोध के दौरान व्यवहारिक अनुभव में यह समय भी जन्म का सही समय नहीं पाया गया अतः इस पर सनातन ज्ञान पीठ के संस्थापक योगेश कुमार मिश्र ने 10,000 से अधिक कुण्डलियों का विश्लेषण करके यह निर्णय निकला कि हमारा शरीर एक जलीय रासायनिक पिण्ड है जिसमे सर्वाधिक मात्र 72% जल की ही होती है और यदि इसे मृत्यु उपरांत स्वतंत्र अवस्था में छोड़ दिया जाये तो यह सड़ गल कर जल रूप में ही समाप्त होता है I
अतः इस जलीप रासायनिक पिण्ड के जन्म का सही समय निर्धारित करने के लिये यह देखना होगा कि बच्चा जब जन्म लेता है तो वह खेचरी मुद्रा में होता है अर्थात वह नासिका के आंतरिक छिद्रों को अपनी जिह्वा से बन्द कर लेता है इस का प्राकृतिक कारण यह है कि माँ के गर्भ का जल नाक के माध्यम से श्वास नलियों द्वारा फेफड़ों में न जा सके किन्तु जब बच्चा जन्म के बाद पहली बार रोता है तो उसकी जिह्वा सामान्य अवस्था में आती है और बच्चा पहली बार साँस लेता है उस साँस के साथ वातावरण में मौजूद विभिन्न ग्रहों कि ऊर्जा उसके शरीर में प्रवेश करती है जो शरीर एवं मस्तिष्क के विभिन्न ग्रन्थियों को क्रियाशील करती हैं I
परिणामतः कुछ ग्रंथियाँ प्राकृतिक रूप से अतिक्रियाशील हो जाती हैं कुछ ग्रंथियाँ सामान्य और कुछ ग्रंथियाँ निष्क्रीय ही रह जाती हैं I अतः इन शारीरिक व मानसिक ग्रंथियाँ से निकलने वाले रसायन व्यक्ति को जीवन भर प्रभावित करते हैं I जिसके परिणाम स्वरूप उस व्यक्ति की शारीरिक संरचना व मनः स्थिती का निर्माण होता है जिससे उसके भाव, क्रियाशीलता उद्यम, पुरुषार्थ, विचार, शारीरिक मानसिक सक्रीयता, महत्वकांक्षाँ, निर्णय लेने की क्षमता आदि प्रभावित होते हैं और इन्ही के आधार पर व्यक्ति जीवन में सफलता या असफलता प्राप्त करता है अतः जन्म लेने का सही समय वह समय होगा जब बच्चे के रोने कि पहली आवाज सुनाई देती है I
अब प्रश्न यह है कि किसी भी व्यक्ति के जन्म का समय जो बताया जा रहा है वह सही है या नहीं यह कैसे पता किया जाये इसका जवाब यह है कि हमारा शरीर ही सबसे प्रमाणित जन्म चक्र है क्योकि व्यक्ति के जन्म के समय के अनुसार हमारे शरीर के आकर-प्रकार, बनावट, शारीरिक चिन्ह, जैसे तिल, मस्सा, लक्षण आदि हमारे शरीर में अंकित होते हैं हमारे शरीर पर लग्न, चन्द्रमा कि स्थिती, नक्षत्र, नक्षत्र के चरण इसी प्रकार अन्य ग्रहों की राशिगत स्थिती, नक्षत्र व् नक्षत्रों के चरणानुसार प्रभाव अंकित होते हैं
अतः किसी भी व्यक्ति के जन्म का सही समय निर्धारित करने के लिये व्यक्ति के प्रश्नानुसार लग्न के अलावा अन्य कुंडलियों का भी निर्माण कर लेना चाहिए और यह देखना चाहिए कि निर्मित कुंडलियों के अनुसार लक्षण शरीर पर उपलब्ध हैं या नहीं यदि नहीं है तो समय में संशोधन तब तक करना चाहिए जब तक कि कुंडली के स्पष्ट लक्षण शरीर पर अंकित लक्षण से मेल न कर रहे हो I इसी के साथ पूर्व के जीवन में घटित घटनाओं की भी तिथि समयानुसार मिलान करना चाहिए I
नवजात शिशु के विषय में जन्म समय निर्धारण हेतु माँ के प्रसव काल की पोशाक, भोजन, प्रसव के समय, सेविकाओं की संख्या, प्रसव स्थल, प्रसव दिशा, माँ के प्रसव कालीन शारीरिक-मानसिक लक्षण, पिता की स्थिती, पूर्व के भाई-बहन कि संख्या आदि से जन्म के सही समय का निर्धारण करना चाहिए I