मित्रता का तात्पर्य किसी से मात्र भावनात्मक या पारस्परिक लगाव नहीं है ! बल्कि मित्र उसे कहा जा सकता है जो आपके बौद्धिक और चेतना के स्तर को विकसित करने में सहायक हो ! आर्थिक मदद के लिये की गई मित्रता स्वार्थ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है !
इसीलिए मित्र अपने से अधिक परिपक्व बुद्धि का होना चाहिए ! जिनकी मित्रता अपरिपक्व बुद्धि के व्यक्तियों से होती है, वह व्यक्ति जीवन भर सही परामर्श के अभाव में भटकता रहता है !
मित्रता में आयु या धन बाधा का कारण नहीं है ! यदि कोई व्यक्ति आयु या धन के कारण मित्रता में चुनाव का निर्णय करता है, तो वह व्यक्ति कभी भी अच्छा मित्र नहीं हो सकता है ! अर्थात कोई भी व्यक्ति किसी का भी मित्र हो सकता है बशर्ते वह व्यक्ति उस मित्रता में अपना कोई स्वार्थ न देख रहा हो !
प्राय: स्वार्थ पूर्ण हम उम्र मित्र या तो एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखते हैं, या फिर दोनों ही व्यक्ति अनुभव के अभाव में गलत निर्णय लेते रहते हैं ! जिसके परिणाम सदैव घातक होते हैं !
मेरे कहने का तात्पर्य है कि व्यक्ति को सदैव अपनी चेतना से उच्च स्तर से उच्च स्तर की चेतना और संवेदनशीलता वाले व्यक्ति से मित्रता करनी चाहिये ! जिससे किसी अन्य को क्षति पहुंचाये बिना आपका उत्तरोत्तर विकास हो सके !
विवेक पूर्ण मित्रता करने के पहले सदैव अपनी जीवन के लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए और व्यक्ति को उसके जीवन के लक्ष्य के अनुरूप मित्र का चयन करना चाहिए ! अर्थात जो भी व्यक्ति आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायक हो ! उसके साथ मित्रता करनी चाहिये !
क्योंकि यह प्रकृति का सामान्य नियम है कि कोई भी व्यक्ति अपने मित्र की सोच से अधिक विकसित नहीं हो सकता है !
अत: आपने लक्ष्य से अतिरिक्त यदि अन्य व्यक्ति के साथ आप मित्रता में समय और ऊर्जा लगा रहे हैं, तो वह व्यक्ति आपके लिए कुछ मनोरंजन का कारण तो बन सकता है ! किंतु आपके सांसारिक बौद्धिक या आध्यात्मिक विकास में वह आपका सहायक नहीं हो सकता है !
यह जीवन बहुत छोटा है ! जिनके पास बड़े लक्ष्य होते हैं, वह अपने समय और ऊर्जा को यूं ही व्यर्थ में व्यय नहीं करते हैं !
इसलिए अपने लक्ष्य को निर्धारित करने के उपरांत अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक व्यक्ति के साथ यदि आप मित्रता करते हैं तो वह व्यक्ति आप के विकास में सहायक होता है ! यही विवेक पूर्ण मित्रता का मनोविज्ञान है !!