पुराण वेदों का व्याख्यातिक स्वरूप है ! : Yogesh Mishra

वैसे आर्य समाजी पुराणों की बहुत आलोचना करते हैं ! दयानंद सरस्वती ने तो पुराणों के विषय में यहां तक कहा था कि “पुराणों की रचना लोगों ने भांग के नशे में की थी !” इसलिये आर्य समाजी यह मानते हैं कि हिंदू धर्म में पुराणों का कोई औचित्य नहीं है ! लेकिन यह सोच गलत है !

अभी तक मेरी जानकारी में हिंदू धर्म में कोई भी ऐसा ग्रंथ मुझे नहीं मिला ! जिसका हिंदू धर्म के निर्माण और विकास में कोई भूमिका नहीं रही हो ! अब यह बात अलग है कि ज्ञान के अभाव में या अपने किसी निजी हित के कारण लोग सत्य को स्वीकारने से इंकार कर देते हैं ! लेकिन इसका तात्पर्य नहीं कि किसी भी धर्म ग्रंथ को हिंदू धर्म से अलग कर दिया जाये ! खास तौर पर पुराणों को !

‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है ! पुरातन कथा अथवा प्राचीन आख्यान या ‘पुरानी कथा’ ! ‘पुरा’ शब्द का अर्थ ही है अनागत अर्थात अतीत ! ‘अण’ शब्द का अर्थ होता है ! कहना या बतलाने वाला अर्थात रघुवंश में पुराण शब्द का अर्थ है “पुराण पत्रापग मागन्नतरम्” एवं वैदिक वाङ्मय में “प्राचीन: वृत्तान्त:” दिया गया है !

सांस्कृतिक अर्थ से हिन्दू संस्कृति का वह विशिष्ट धर्म ग्रंथ जिनमें सृष्टि के आदि से लेकर प्रलय तक के इतिहास का वर्णन शब्दों से किया गया हो ! उसे पुराण कहे जाते है ! “पुराण” शब्द का उल्लेख वैदिक युग के वेद सहित सभी आदितम साहित्य में भी पाया जाता है ! अत: यह सबसे पुरातन (पुराण) माने जा सकते हैं !

अथर्ववेद के अनुसार “ऋच: सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह 11.7.2 अर्थात् पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था ! शतपथ ब्राह्मण (14.3.3.13) में तो “पुराणवाग्ङमय” को वेद ही कहा गया है ! छान्दोग्य उपनिषद् (इतिहास पुराणं पञ्चम वेदानांवेदम् 7.1.2 ) ने भी पुराण को वेद कहा गया है !

बृहदारण्यकोपनिषद् तथा महाभारत में कहा गया है कि “इतिहास पुराणाभ्यां वेदार्थ मुपबर्हयेत्” अर्थात् वेद का अर्थ विस्तार पूर्वक पुराण के द्वारा ही करना चाहिये ! इनसे यह स्पष्ट है कि वैदिक काल में पुराण तथा प्राचीन इतिहास को समान स्तर पर रखा गया था !

अमरकोष आदि प्राचीन कोशों में पुराण के पांच लक्षण माने गये हैं !

सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वंतराणि च !
वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम् ॥

अर्थात सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म), वंश (देवता व ऋषि सूचियां), मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित) !

(1) सर्ग – पंचमहाभूत, इंद्रियगण, बुद्धि आदि तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन,
(2) प्रतिसर्ग – ब्रह्मादिस्थावरांत संपूर्ण चराचर जगत् के निर्माण का वर्णन,
(3) वंश – सूर्यचंद्रादि वंशों का वर्णन,
(4) मन्वन्तर – मनु, मनुपुत्र, देव, सप्तर्षि, इंद्र और भगवान् के अवतारों का वर्णन,
(5) वंशानुचरित – प्रति वंश के प्रसिद्ध पुरुषों का वर्णन !

अत: यह माना जाता है कि सृष्टि के रचना कर्ता ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की थी ! उसे पुराण के नाम से जाना जाता है !

मार्कण्डेयपुराण के अनुसार प्राचीनकाल से पुराण ने देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों आदि सभी का मार्गदर्शन करते रहे हैं ! पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं ! पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकता भी है !

पुराण वस्तुतः वेदों का ही कथा रूप में विस्तार हैं ! वेद बहुत ही जटिल तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखे गये हैं ! अत: हर किसी को समझ में नहीं आते हैं ! इसलिये वेदव्यास जी ने पुराणों का संग्रह और पुनर्रचना की थी !

कहा जाता है कि ‘‘पूर्णात् वेदं पुराण: ’’ जिसका अर्थ है ! जो वेदों का पूरक हो अर्थात् पुराण जो वेदों की टीका हैं ! अर्थात वेदों की जटिल भाषा में कही गई बातों को पुराणों में सरल भाषा में कथा रूप में समझाया गया हैं ! पुराण-साहित्य में अवतारवाद को प्रतिष्ठित किया गया है ! निर्गुण निराकार की सत्ता को मानते हुये भी सगुण साकार की उपासना करने का आधार ही इन ग्रंथों का विषय है !

पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र में रखकर पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म और कर्म-अकर्म की कथा रूप में व्याख्या है ! प्रेम, भक्ति, त्याग, सेवा, सहनशीलता ऐसे मानवीय गुण हैं ! जिनके अभाव में उन्नत समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है !

पुराणों में देवी-देवताओं के अनेक स्वरूपों को लेकर एक विस्तृत विवरण मिलता है ! पुराणों में सत्य को प्रतिष्ठित करने में दुष्कर्म का विस्तृत चित्रण भी पुराणकारों ने किया है ! पुराणकारों ने देवताओं की दुष्प्रवृत्तियों का व्यापक विवरण भी दिया है लेकिन फिर भी इन सभी कथाओं का मूल उद्देश्य सद्भावना का विकास करना और सत्य की प्रतिष्ठा करना ही है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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