वैसे तो कोरोना भागने के चक्कर में हमने देश भर में थालियाँ पीट डालीं ! कुछ उत्साही लोगों ने थालियों के साथ-साथ शंख भी बजाया ! जिसका विधर्मियों ने खूब जम के उपहास किया ! तब मेरे मन में एक विचार आया कि सनातन संस्कृति में शंख क्यों बजाया जाता है ! इससे भी लोगों को अवगत कराना चाहिये ! अतः मैं यह लेख प्रस्तुत कर रहा हूं !
1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है !
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, पूजा के समय शंख में जल भरकर देवस्थान में रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर के आस-पास छिड़कने से वातावरण शुद्ध रहता है ! क्योकि शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है ! साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हमारी हड्डियों, दांतों के लिए बहुत लाभदायक है ! शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं ! इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है ! इसलिये शास्त्रों में इसे महाऔषधि माना जाता है !
तानसेन जब बचपन में बोल नहीं पाते थे तब उन्होंने वैध के परामर्श पर अपने बचपन में शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी ! इसी तरह अथर्ववेद के चतुर्थ अध्याय में शंखमणि सूक्त में शंख की महत्ता वर्णित है ! इसी तरह यजुर्वेद में भी शंख बजाने का महत्व विस्तार से दिया गया है !
यदि इसे वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो पता चलता है कि शंख की ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक स्थित अनेक बीमारियों के कीटाणुओं के ह्दय दहल जाते हैं ! और वे मूर्छित हो-होकर नष्ट होने लगते हैं ! प्रख्यात वैद्य बृह्सपति देव त्रिगुणा के अनुसार प्रतिदिन शंख फूकने वाले को सांस से संबंधित बीमारियां जैसे-दमा आदि एवं फेफड़ों के रोग नहीं होते ! इसके अलावा कई अन्य बीमारियों जैसे -प्लीहा व यकृत से संबंधित रोगों तथा इन्फलूएंजा आदि में शंख-ध्वनि अत्यंत लाभप्रद है !
शंख की ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक स्तित अनेक वीमारियों के कीटाणुओं के ह्दय दहल जाते हैं व मूर्छित होकर नष्ट होने लगते हैं ! डॉ जगदीश चंद्र बसु जैसे भरतीय वैज्ञानिकों ने बी इसे सही माना है ! महाभारत में युद्ध के आरंभ, युद्ध के एक दिन समाप्त होने आदि मौकों पर संख-ध्वनि करने का जिक्र आया है ! इसके साथ ही पूजा आरती, कथा, धार्मिक अनुष्टानों आदि के आरंभ व अंत में भी संख-द्वनि करने का विधान है ! इसके पीछे धार्मिक आधार तो है ही, वैज्ञानिक रूप से भी इसकी प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है ! वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख-ध्वनि के प्रभाव में सूर्य की किरणें बाधक होती हैं !
अतः प्रातः व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख-ध्वनि करने का विधान है ! इससे आसपास का वातावरण तता पर्यावरण शुद्ध रहता है !
शंख का महत्त्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी है ! वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख-ध्वनि के प्रभाव में सूर्य की किरणें बाधक होती हैं ! अतः प्रातः व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख-ध्वनि करने का विधान है ! इससे आसपास का वातावरण तता पर्यावरण शुद्ध रहता है ! आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, प्लीहा यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं !
ऋषि श्रृंग की मान्यता है कि छोटे-छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी-दोष नहीं रहता है ! बच्चा स्वस्थ रहता है ! पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं !
आयुर्वेदाचार्य डॉ.विनोद वर्मा के अनुसार रूक-रूक कर बोलने व हकलाने वाले यदि नित्य शंख-जल का पान करें, तो उन्हें आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा ! दरअसल मूकता व हकलापन दूर करने के लिए शंख-जल एक महौषधि है !
हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है ! दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से `ॐ’ की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है ! यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है !
यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपिक्षित है ! गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है !
यजुर्वेद में ही कहा गया है कि यस्तु शंखध्वनिं कुर्यात्पूजाकाले विशेषतः, वियुक्तः सर्वपापेन विष्णुनां सह मोदते अर्थात पूजा के समय जो व्यक्ति शंख-ध्वनि करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु के साथ आनंद करता है !
अर्थवेद के अनुसार “शंखेन हत्वा रक्षांसि” अर्थात शंक से सभी राक्षसों का नाश होता है और यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का ह्दय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपिक्षित है ! यजुर्वेद में ही यह भी कहा गया है कि “यस्तु शंखध्वनिं कुर्यात्पूजाकाले विशेषतः, वियुक्तः सर्वपापेन विष्णुनां सह मोदते” अर्थात पूजा के समय जो व्यक्ति शंख-ध्वनि करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु के साथ आनंद करता है ! इसीलिये भगवान विष्णु ने इसको धारण कर रखा है !!
इसका प्रयोग हर युद्ध के पहले भगवान और योद्धा आदि करते थे ! महाभारत युद्ध में तो सैकड़ों तरह के शंख के प्रयोग का वर्णन मिलता है ! इसीलिये हर हिन्दू के पूजा घर में आपको शंख मिलेगा !!