नृत्य चिकित्सा का विज्ञान : Yogesh Mishra

नृत्य मानव सभ्यता के साथ विकसित हुई अनादि चिकित्सा पद्धति का एक स्वाभाविक स्वरूप है ! अति प्राचीन काल में जब नृत्य विज्ञान विकसित नहीं था ! उस समय भी शैव जीवन शैली के लोग अपनी नकारात्मक ऊर्जा को निकालने के लिये बिना किसी सुर ताल के नृत्य किया करते थे ! जिसे आधुनिक विज्ञान ने लातिहान नृत्य कहा !

उस समय नृत्य मनोरंजन का विषय नहीं था बल्कि अपने जीवन की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकलने का विज्ञान था ! यह एक विशेष चिकित्सा पद्धति थी, जो आज भी आदिवासी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में व्यावहारिक रूप में देखी जाती है ! जो व्यक्ति अवसाद से बाहर निकलती है !

यदि कोई भी व्यक्ति यदि लातिहान नृत्य का अभ्यास करें, तो निश्चित रूप से वह अवसाद के बाहर आ जायेगा ! ऐसे मेरे सैकड़ों अनुभव हैं ! बहुत से व्यक्ति जो बहुत लंबे समय से अवसाद की दवा ले रहे थे, उन्होंने मेरे परामर्श पर लातिहान नृत्य आरंभ किया और बहुत ही कम समय में वह पूरी तरह स्वस्थ हो गये और उन्होंने अपने अवसाद की दवा भी बंद कर दी ! अब वह बिना किसी दवा के प्रसन्नता पूर्वक अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं !

आज हमारे शरीर की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पर समाज के इतने नियम लागू हो गये हैं कि मनुष्य के शरीर ने अपनी स्वाभाविक अभिव्यक्ति ही बंद कर दी है ! अब व्यक्ति न तो मुस्कुराता है, न रोता है और न ही खिलखिला कर हंसता है ! अन्य अभिव्यक्तियों की जो बात ही छोड़ दीजिये !

आज व्यक्ति सामाजिक बंधनों में इस तरह से बंधा है कि वह अपने क्रोध को भी प्रकट नहीं कर पाता है और यही सब कारण है कि विचारों की अभिव्यक्ति शरीर के अंदर नकारात्मक ऊर्जा के रूप में दबी रहती है ! जिससे व्यक्ति विभिन्न तरह के मानसिक व शाररिक रोगों से ग्रसित हो जाते हैं !

लातिहान नृत्य अपने आप में एक संपूर्ण चिकित्सा है जो भी व्यक्ति किसी भी तरह के मानसिक कष्ट से पीड़ित हैं वह यदि स्वाभाविक नृत्य करें तो निश्चित रूप से वह अपने मानसिक रुग्णता से बाहर आ जाएंगे !
इसका सबसे अधिक व्यवसायिक उपयोग ओशो ने किया था ! ओशो के ध्यान शिविरों में परंपरागत जमीन पर बैठकर ध्यान करने का विधान नहीं था बल्कि अपने शरीर की अभिव्यक्ति को प्रकट करने के लिए विभिन्न तरह के मानसिक संवेदना को अपने शरीर से लातिहान नृत्य के माध्यम से प्रकट करने का विधान था !

जो देखने में बड़ा अवस्थित और अव्यावहारिक लगता है लेकिन सच्चाई यह है कि जब कोई व्यक्ति नृत्य के नाम पर किसी अनुशासना में कोई अभिव्यक्ति को करता है तो वह वास्तव में नृत्य नहीं करता बल्कि अपने को नृत्य की अभिव्यक्ति के बंधन में बांध लेता है ! जो सामान्यतया: अत्यंत तनाव का कारण हो जाता है !

नृत्य अपने आनंद के लिए होता है ! नृत्य कभी भी देखने वालों के आनंद के लिए नहीं होता, जो व्यक्ति देखने वालों के आनंद के लिये नृत्य करते हैं ! वह नृत्य नहीं करते बल्कि अपनी शारीरिक अभिव्यक्ति का व्यवसाय करते हैं !

और एक व्यवसाय कभी वह आनंद नहीं दे सकता है जो व्यक्ति को स्वाभाविक अभिव्यक्ति की अवस्था में प्राप्त होता है ! इसलिए सभी तरह के मानसिक विकारों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए अपने को स्वाभाविक नृत्य में उतारिये ! यह स्वाभाविक नृत्य ही आपके लिये इस संसार में सबसे बड़ी औषधि है ! इसका कोई विकल्प नहीं है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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