भक्ति काल के दौर में व्यक्ति स्वप्रेरणा से ईश्वर की भक्ति करता था ! इसके लिए सबसे पहले वह अपने आराध्य को समझने की चेष्टा करता था !
जिसके लिए या तो वह शास्त्रों का अध्ययन करता था या फिर किसी योगी गुरु के सानिध्य में रहकर अपने आराध्य के विषय में अधिक से अधिक जानकारी इकट्ठा करता था !
फिर उस जानकारियों के आधार पर वह अपना मन मस्तिष्क आराधना के लिए तैयार करता था और फिर अनंत काल तक अपना संपूर्ण जीवन उस आराध्य की आराधना में लगा देता था !
किंतु अब दौर बदल रहा है, अब तथाकथित भक्त उसी इष्ट की आराधना करेंगे ! इसका निर्धारण करने से भक्त को अधिक से अधिक धन प्राप्त होने की संभावना हो !चाहे फिर वह भले ही साईं बाबा ही क्यों न हों !
और जिस भगवान के बदले समाज से दान कम मिलता है, उस भगवान की चर्चा करना आज का कथावाचक पसंद नहीं करता है ! क्योंकि अब कथा वाचन भक्ति का हिस्सा नहीं बल्कि धंधे का हिस्सा हो गया है !
और स्वाभाविक है कि जब कथा वाचन धंधा होगा तो उस धंधे को चमकाने के लिए हजारों तरह के झूठ भी समाज में बोलने पड़ेंगे ! जो आये दिन कथावाचक बोलते रहते हैं !
इसके अलावा रोचक प्रसंगों को उठाने के लिए शास्त्र विरोधी घटनाओं का भी सहारा लिया जा रहा है, इसीलिये आये दिन शास्त्रों से अलग हटकर कहानियां सुनाई जा रही हैं !
और उससे भी बड़ा चमत्कार तो यह है कि जो व्यक्ति हजारों बार एक ही भगवान की कहानी सुन चुका है, पर जब उस कहानी में कुछ भी नया डाल दिया जाता है, तो वह व्यक्ति उस कपोल कल्पित नये ज्ञान को अपना ज्ञान वर्धन मान लेता है !
जबकि होना यह चाहिए कि जब हजारों बार सुनी हुई कहानी में कोई नये घटना का समावेश किया जाये तो श्रोता को तत्काल उस कथावाचक से यह प्रश्न करना चाहिए कि यह नया तथ्य आपने कब और कहां से निकाल कर इस कथा में समाहित किया है ?
लेकिन ऐसा नहीं होता है और कथा वाचकों को सुरक्षित रखने के लिए भीड़ से बहुत दूर एक ऊंचाई पर मंच की व्यवस्था की जाती है !
जहां पर कथावाचक चोरी से चुपचाप पीछे से आता है और समाज को गुमराह करके उसी चोर गली से निकल जाता है ! इसलिए भक्ति में भी सावधानी की जरूरत है !
जब तक कथावाचक का कोई भी प्रसंग किसी भी प्रमाणित शास्त्र का हिस्सा न हो तब तक उसे स्वीकार करके आप समाज को गुमराह करने में उस कथावाचक का सहयोग कर रहे हैं ! जोकि निकृष्ट श्रेणी का पाप है !!