विश्व के कई देशों ने आज यह सिद्ध कर दिया है कि अब मनुष्य को भगवान की जरूरत नहीं रह गई है ! क्योंकि जिन देशों ने भगवान को नकार दिया है ! वह सभी देश आज पहले से अधिक सुखी और संपन्न हैं !
वास्तव में भगवान की जरूरत मनुष्य को कभी थी ही नहीं ! भगवान की उत्पत्ति तो मनुष्य ने अपने अज्ञानता के कारण उत्पन्न अज्ञात भय से निपटने के लिये की थी !
और धर्म की दुकान चलाने वाले कथा वाचकों ने फिर इस भय से उत्पन्न भगवान के हजारों स्वरूपों का निर्माण कर दिया ! उसके लिए अनेक मंत्र बना दिये ! स्त्रोत, श्लोक, ऋचा, पूजन पद्धति, अनुष्ठान आदि का निर्माण कर दिया !
और मंदबुद्धि मनुष्य का यह दुर्भाग्य रहा कि उसने इसी अवैज्ञानिक पूजा पद्धति को ही जीवन की सफलता के आधार रूप में स्वीकार कर लिया !
जिसका परिणाम यह हुआ कि समाज के इसी चालाक वर्ग ने अपनी एक विशेष पोशाक बना ली और उस पोशाक को पहन कर वह कुछ रेटे रटाये श्लोक, स्त्रोत और विचारों की व्याख्या मंचों से करने लगा ! जो की पूरी तरह अवैज्ञानिक थे !
समाज ने उसे सम्माननीय दर्जा दे दिया और अब उसे भगवान के नाम पर दान और सहयोग करके उसके जीवन यापन की व्यवस्था कर दी ! धीरे धीरे यह इस वर्ग का धन्धा हो गया ! लेकिन अब तो यही लोग भगवा पहन कर राजनीति भी कर रहे हैं और व्यवसाय भी ! और यह दोनों ही वर्ग समाज के शोषण में लगे हैं !
इसलिए अब यह आवश्यकता है कि समाज के जागरूक और विवेकशील मनुष्य को इस भगवा के आकर्षण से मुक्त करना होगा !
इन्हीं भगवा धारियों के कारण आज 500 साल की गुलामी के बाद अभी भी भारत पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाया है जबकि भारत में वेद, वेदांत, दर्शन, उपनिषद आदि सभी कुछ भरे पड़े हैं ! पर हम दो राजकुमारों की कथा में उलझे हैं ! राम और कृष्ण !
और जिन देशों में इस तरह का कोई दिव्य ज्ञान नहीं है, वह आज विज्ञान की मदद से निरंतर प्रगतिशील हो रहे हैं इसलिए हमें साक्षात उदाहरणों को देखते हुए विज्ञान का सहारा लेकर अपने विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए !
अन्यथा कालांतर में एक समय वह भी आएगा जब हम भगवान के सहारे इतना पीछे छूट जाएंगे कि विज्ञान का अनुगमन करने वाले हमें समाज पर बोझ मानकर हमारी संस्कृति को ही नहीं बल्कि हमारे आने वाली पीढ़ियों का भी नामोनिशान मिटा देंगे !
जैसे आज विश्व में कई संस्कृतियों विलुप्त हो गयी ! ठीक उसी तरह यदि हमने विज्ञान की इस दौड़ में अपने को तेजी से शामिल नहीं किया तो हम भी विलुप्त हो जाएंगे और कोई भगवान हमारी मदद करने नहीं आएगा !
भगवान के उर्जा और अस्तित्व को स्वीकारने के साथ यह भी परम आवश्यक है कि हम वर्तमान विज्ञान को भी आत्मसात करें ! अन्यथा इस विज्ञान के बिना यह संसार हमें अनुपयोगी समझ कर बहुत जल्द ही नष्ट कर देगा ! इतिहास को पलट कर देखने पर भी ऐसे ही हजारों उदाहरण हमें मिलते हैं कि जब हमने विज्ञान को महत्व नहीं दिया है तो हम हजारों बार हारे हैं !!