किसी विशेष धर्म का अनुपालन व्यक्ति को संसार में मात्र एक धार्मिक आइडेंटिटी दे सकता है बस ! पर व्यक्ति का वास्तव में धार्मिक होना तो इंसान के भीतर की प्रक्रिया है !
भारतीय समाज से बड़ा धार्मिक दुनियाँ का कोई समाज नहीं रहा है ! आज भारत में विभिन्न धर्माचार्यों द्वारा देश को संगठित धर्मों के आइडेंटिटी की जंग में धकेल कर भारतीय समाज की धार्मिकता को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है !
आप चाहे किसी भी धर्म को नहीं मानते हों मगर मात्र आपके नाम के आधार पर संगठित धार्मिक गिरोहों से जुड़े लोग अपने नाम को देखकर स्वत: समाज में आपकी पहचान स्थापित कर ही देंगे !
धार्मिक होने की शुरुआत इंसान के भीतर से होती है ! ओशो ने कहा था कि पहले धर्म को जानो, फिर मानो ! जानना खुद के भीतर से होता है और मानना ऊपर से थोपी हुई धार्मिक पहचान होती है ! धर्मों ने जानने के बजाय मानने पर अधिक जोर दिया है !
गंदगी हमारे भीतर भरी पड़ी है और हम जड़ चीजोंधर्म ग्रन्थ और जगहों मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा चर्च से उम्मीद करते है कि वह हमें धार्मिक बना देगी ! जब कि ऐसा संभव नहीं है ! मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर आदि जड़ जगह हैं ! इन जगहों पर पूजा, प्रार्थना, इबादत करने से पहचान मजबूत होती है ! मगर व्यक्ति में धार्मिकता नहीं आ सकती है ! धार्मिकता का मतलब खुद के भीतर के ईश्वरीय एहसास से होता है !
पांच हजार साल पहले कृष्ण को पता चल गया था कि भविष्य में धर्मों के संगठित गिरोह अधार्मिक काम करने में लग जायेंगे ! इसलिये उन्होंने बता दिया था कि धर्म को मानने से पहले जानना जरूरी है ! ढाई हजार साल पहले यही बात बुद्ध और महावीर ने भी दौहराया था ! कि शुभ की शुरुआत इंसान के भीतर से होती है ! इंसान भीतर से ही अशुभ भी शुरू होता है !
इसलिये दुनियाँ की कोई वस्तु शुभ अशुभ नहीं होती है ! शुभ अशुभ तो व्यक्ति का विचार होता है ! इसलिये यदि शुभ को पाना है तो विचारों में शुभता पैदा करो ! कृष्ण को पता था कि भविष्य में धर्म के पहचान की जंग को लेकर इंसानों का कत्ल इन्सान ही करेंगे !
इसी संघर्ष से मानवता को बचाने के लिये भगवान श्री कृष्ण ने आज से 5000 वर्ष पूर्व ही श्रीमद् भागवत गीता में कह दिया था कि
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज!
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः !!18.66!!
अर्थात तुम सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आ जाओ ! मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा ! तुम शोक मत करो !!
यही एकमात्र रास्ता है ! जिसके माध्यम से इस विश्व में शांति कायम हो सकती है ! अन्यथा धर्म की ओट में जिस तरह हम सदियों से करोड़ों लोगों का खून बहाते चले आ रहे हैं ! यह क्रम आगे भी इसी तरह चलता रहेगा और अंततः मानवता को हार कर भगवान श्री कृष्ण की शरण में आना ही होगा ! तो आज ही क्यों नहीं !!