अवतारवाद की अवधारणा धूर्त वैष्णव लेखकों की देन है : Yogesh Mishra

जब पूरी पृथ्वी पर मात्र एक शैव धर्म ही था और वैष्णव लोगों ने पूरी दुनिया पर आक्रमण करके युद्ध के द्वारा अपनी नगरीय वैष्णव संस्कृति को बढ़ावा देना शुरू किया था ! तब उस समय बहुत बड़े पैमाने पर पूरी दुनिया में वैष्णव विचारधारा के शासकों का विरोध शुरू हो गया था !

तब दुनियां का शासक वर्ग दो हिस्से में बंट गया था ! पहला वह जो शैव जीवन शैली का अनुयायी था और दूसरा वह जो वैष्णव आक्रांताओं के साथ मिलकर अपनी जनता पर अत्याचार करके उन्हें वैष्णव जीवनशैली अपनाने के लिये बाध्य कर रहा था !

उस काल में सभी ब्राह्मण शासक परंपरागत भगवान शिव की आराधना और उपासना किया करते थे और स्वयं तो भगवान शिव के भक्त थे ही तथा अपने राज्य की प्रजा को भी शिव की आराधना करने के लिये प्रेरित किया करते थे ! सहज, सयामित तथा उदार जीवन जीने की इच्छा इन शैव शासकों का मुख्य उद्देश्य हुआ करता था !

दूसरी तरफ विष्णु और इन्द्र के प्रभाव में वैष्णव शासकों में भोग विलास का जीवन जीने वाले कुछ क्षत्रिय शासक स्वयं अपने वासनाओं और कामनाओं की पूर्ति के लिये वह जनता का “कर” के रूप में शोषण किया करते थे और उस कर का कुछ हिस्सा विष्णु को अपने संरक्षण के लिये दिया करते थे ! उसके बदले में विष्णु और इन्द्र उन्हें हथियारों की तकनीक, हथियार एवं आवश्यकता पड़ने पर विशेष संरक्षित सेना का सहयोग प्रदान किया करते थे ! जिस जीवन शैली का शिव भक्त शासक और ऋषि गण सदैव विरोध करते थे !

यह सब पूरी दुनिया में बहुत लंबे समय तक चलता रहा ! जिसको नियंत्रित करने के लिये परशुराम जैसे ब्राह्मण योद्धा को समय-समय पर हथियार उठाना पड़ा और जो विलासी क्षत्रिय शासक जो विष्णु और इन्द्र के सहयोग से अपनी जनता के साथ अत्याचार कर रहे थे ! उनका वध करने के लिये इन्हें भीषण युद्ध करना पड़ा ! जिन युद्धों की संख्या शास्त्रों में 21 बार बतलाई जाती है !

परशुराम जी के संन्यास ले लेने के उपरांत समाज के सबसे प्रभावशाली शासक ब्राह्मण पुत्र रावण ने इन वैष्णव शासकों को नियंत्रित करने का दायित्व उठाया और पूरी दुनिया से वैष्णव शासकों को खदेड़ कर कर्क रेखा के ऊपर भेज दिया और पूरी दुनिया में युद्ध विहीन अमन-चैन कायम कर दिया !

जिससे इंद्र घबड़ा गया और उसने रावण की कुल वंश सहित हत्या करवाने का निर्णय लिया ! जिसके लिये उसने हाल ही में बने क्षत्रिय महर्षि विश्वामित्र का सहयोग लिया और क्षत्रिय राजा के पुत्र राम के सहयोग से 300 से अधिक क्षत्रिय राजाओं की सेना की मदद से राम के नेतृत्व में रावण की कुल वंश सहित हत्या करवा दी !

इससे पूर्व इन वैष्णव शासकों ने शैव उपासक हिरण्याक्ष की हत्या उन्हीं के साम्राज्य के बागी डाकुओं का गिरोह जो वराह पालन का कार्य करते थे ! उनको भड़का कर करावा दी थी और उसके बड़े भाई हिरण्यकश्यप जो कि हिरण्यकरण वन का राजा था ! उसकी हत्या संध्या काल में उसी के सैनिकों को भड़का कर षड्यंत्र द्वारा करवाई थी !

तथा इसके पुत्र प्रह्लाद जो नारद के बहकावे में आकर पहले से ही विष्णु से मिला हुआ था ! उसे विष्णु ने शासक हिरण्यकश्यप के स्थान पर हिरण्यकरण वन का राजा घोषित कर दिया था किन्तु बाद में जब प्रह्लाद ने पुनः शैव धर्म अपना लिया तब विष्णु के निर्देश पर प्रह्लाद पर आक्रमण कर दिया और उसे हरा दिया जिस कारण प्रह्लाद को पाताल लोक अर्थात दक्षिण अमेरिका जाना पड़ा !

प्रह्लाद का पुत्र विरोचन दक्षिण अमेरिका का राजा बना जो शिव भक्त था ! फिर उसका पुत्र दैत्यराज बलि राजा बना ! जो परम शिव भक्त होने के साथ साथ युद्ध कौशल में भी निपुण था ! उसने सभी वैष्णव शासकों को हराकर पूरी दुनिया में पुनः शैव जीवन शैली की स्थापना की और अपने गुरु शुक्राचार्य के नेतृत्व में महायज्ञ किया !

जिसमें विष्णु ने पुनः राजा बलि को छल कर अपने वैष्णव शासकों के लिये इस पृथ्वी पर स्थान मांग लिया ! जो बाद में राजा बलि के लिये समस्या बन गये और जब राजा बलि को विष्णु की इस धूर्तता का पता चाला तो विष्णु से परेशान होकर राजा बलि ने विष्णु का अपराहन कर लिया और उसे लेकर दक्षिण अमेरिका चला गया !

जहां पर 4 महीने तक उसने विष्णु को अपना गुलाम बना कर रखा ! बाद में परम शैव भक्त राजा सागर की पुत्री और विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के आग्रह पर राजा बलि ने विष्णु को इस शर्त के साथ छोड़ा की प्रतिवर्ष विष्णु 4 महीने के लिये राजा बलि के यहां गुलामी करने आयेंगे ! जो आज भी चौमासे के रूप में देवशयनी एकादशी से लेकर देव उठानी एकादशी तक वैष्णव परंपरा में मनाया जाता है और समाज को गुमराह करने के लिये बतलाया जाता है कि इस दौरान विष्णु गहरी निंद्रा में सोने के लिये चले गये हैं !

बाद में इस बंधन से मुक्त होने के लिये विष्णु ने राजा बलि की हत्या अपने ससुर राजा सागर के साथ मिल कर एक षडयंत्र रच कर किष्किन्धा के दुंदुभि के करावा दी ! जो विष्णु के ससुर राजा सागर का परम मित्र था ! बलि का पुत्र बाणासुर हुआ जो परम शैव भक्त था ! जिसकी हत्या कृष्ण, बलराम और कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने की थी ! तथा कृष्ण ने बाणासुर वंश को वैष्णव बनाने के लिये बाणासुर की बेटी उषा का विवाह अपने पोते अनिरुद्ध से करावा दिया था और बाणासुर का समस्त राज्य अपने राज्य में मिला कर हड़प लिया !

इस तरह के शैव शासकों के साथ हुये षड्यंत्र, हत्या, लूट को करने वालों को सदैव ही वैष्णव लेखकों ने विष्णु का अवतार बतला कर समाज को यह बतलाने की चेष्टा की है कि उनका शैव शासक दुराचारी, व्यभिचारी, कामुक और अत्याचारी था ! जिसे भगवान विष्णु के अवतार ने आप लोगों की रक्षा के लिये समाप्त कर दिया है !

किंतु इस अवतारवाद की अवधारणा के पीछे मूल कारण यह था कि आम जनमानस को यह विश्वास दिलवाया जाये कि विष्णु ही वास्तव में पृथ्वी के पालनहार हैं और जो व्यक्ति विष्णु की आराधना उपासना नहीं करेगा ! उसकी भी इसी तरह निर्मम हत्या करवा दी जायेगी ! इसलिये विष्णु के अस्तित्व को स्वीकारो और सर्व सहज प्राकृतिक शैव जीवन शैली से अलग भोगी विलासी नगरीय वैष्णव जीवन शैली को अपनाओ !

इस तरह यह अवतारवाद की अवधारणा मात्र उद्द्योग आश्रित नगरीय वैष्णव जीवन शैली को स्थापित करने के लिये वैष्णव लेखकों द्वारा रचा गया कपोल कल्पित दर्शन है ! इसका प्रकृति की सामान्य व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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