जो अभीष्ट को प्राप्त करावा दे, वही इष्ट है ! हमारे इष्ट भगवान शिव हैं ! उन्होंने ही सामान्य मनुष्यों को देवता बना दिया ! इस प्रकृति के क्रोध से सदैव हमारी रक्षा की है ! चाहे हलाहल विष पीना हो या स्वर्ग की देवी गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करना हो !
वैष्णव साधकों की भी सिद्धि और सफलता का आधार शिव ही हैं ! भगवान शिव जो कि स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं, विश्व चेतना हैं, सृष्ठि के उत्पन्न करता और रक्षक हैं तथा वह ही ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं !
शिव पुराण में शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है ! यह संस्कृत भाषा में लिखी गई है ! इसमें इन्हें पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के स्वरूप में स्वीकार किया गया है !
‘शिवपुराण’ के अनुसार परात्मा, परब्रह्म, परमेश्वर, का भौतिक स्वरूप ‘शिव’ ही हैं ! जो कल्याणकारी होने के साथ साथ तात्त्विक विवेचक, रहस्य उद्घोषक, तंत्र, आयुर्वेद, ज्योतिष के अधिष्ठाता देवता भी हैं ! भगवान शिव मात्र पौराणिक देवता ही नहीं, अपितु वह पंचदेवों में प्रधान, अनादि, सिद्ध दाता परमेश्वर भी हैं !
यह आगम, निगम, निर्वाण आदि आदि विद्या के स्वामी हैं ! सभी शैव ही नहीं वैष्णव शास्त्रों में इनके गुणों का बखान किया गया है ! भगवान राम, कृष्ण, पाण्डव, सुर, असुर, यक्ष, किन्नर, देव, दानव, दैत्य आदि सभी ने आवश्यकता अनुसार इनकी आराधना की है !
वेदों ने तो इस परमतत्त्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, विश्वपंच का स्रष्टा, पालक एवं संहारक कहकर उनका गुणगान किया है ! श्रुतियों ने सदा शिव को स्वयम्भू, शान्त, प्रपंचातीत, परात्पर, परमतत्त्व, ईश्वरों के भी परम महेश्वर कहकर स्तुति की है !
‘शिव’ का अर्थ ही है लोक ‘कल्याणस्वरूप’ लोक ‘कल्याणदाता’ ! परमब्रह्म के इस कल्याण रूप की उपासना उच्च कोटि के सिद्धों, आत्मकल्याणकामी साधकों एवं सर्वसाधारण आस्तिक जनों आदि सभी के लिये परम मंगलमय, परम कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक और सर्वश्रेयस्कर है !
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व ही नहीं, अपितु ब्रह्मा-विष्णु तक इन महादेव की उपासना करते हैं !
वर्तमान में शैव साहित्यों को वैष्णव लेखकों और शासकों द्वारा विलुप्त कर दिये जाने के बाद इस कलयुग में “शिव पुराण” को ही इस भूतल पर भगवान शिव का वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये ! सब प्रकार से इसका अध्ययन, मनन, अनुपालन और सेवन करना चाहिये ! इसका पठन और श्रवण दोनों ही सर्वसाधनरूप है ! इससे “शिव भक्ति” की सिध्दि प्राप्त होती है और मनुष्य शीघ्र ही “शिवपद” को प्राप्त कर लेता है !
इसलिये सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार शिव पुराण को पढ़ने की इच्छा जरुर रखनी चाहिये ! इसके अध्ययन को अभीष्ट साधन सिध्द होती है ! इसका श्रृद्धा पूर्वक श्रवण करने से भी सम्पूर्ण मनोवंछित फलों की प्राप्ति होती है !
भगवान शिव के पुराण को सुनने से मनुष्य अपने अनेक जन्मों के सभी पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट सांसारिक भोगों का उपभोग करके अन्त में “शिवलोक” को प्राप्त करते हुये पृथ्ची पर आवागमन से मुक्त हो मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ! यह इस कलयुग में मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल उपाये है !
“शिवपुराण” सात संहिताओं से युक्त वह दिव्य ग्रन्थ है जो जीव को इस लोक में उत्कृष्ट गति तो प्रदान करता ही है साथ में व्यक्ति को दिव्य ऊर्जाओं से परिपूर्ण भी करता है ! इतिहास में इसके हजारों उदहारण मौजूद हैं !!