आध्यात्मिक ऊर्जा के आवागमन के सिद्धांत बड़ी सहजता से समझा जा सकता है ! इसके दो स्वरूप में होता हैं ! एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक ! आध्यात्मिक ऊर्जा के स्थानान्तरण के समय उच्च केंद्र में स्थित व्यक्ति से निम्न केंद्र में स्थित व्यक्ति को इसे सहजता से स्थान्तरित कर सकता है ! यह क्रिया ज्ञात अवस्था और अज्ञात दोनों ही अवस्था में की जा सकती है !
इसमें महत्वपूर्ण विषय यह है कि आध्यात्मिक ऊर्जा देने वाले व्यक्ति की क्षमता के अनुरूप इसे ग्रहण करने की भी क्षमता होनी चाहिये ! अन्यथा आध्यात्मिक ऊर्जा के स्थानान्तरण से इसे ग्रहण करने वाले व्यक्ति को क्षति हो सकती है ! उसका मानसिक संतुलन गड़बड़ हो सकता है ! उसे अपार कष्ट या उसकी मृत्यु भी हो सकती है !
आध्यात्मिक ऊर्जा को हस्तांतरित करने के लिये व्यक्ति के कर्म और उसका विश्वास भी सहायक होते हैं ! इस ऊर्जा के हस्तान्तरण के लिये ज्ञान और ईश्वर की कृपा का होना भी आवश्यक है ! बिना सही प्रक्रिया को जाने आध्यात्मिक शक्तियों का संचय, उपयोग और हस्तानांतरण व्यक्ति को हानि पहुंचा सकता है !
यह हानि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक किसी भी रूप में हो सकती है ! किस प्रकार की और कितनी मात्रा में हानि हो सकती है ! यह उपयोग में आ रही ऊर्जा के प्रकार, मात्रा और कार्य के उद्देश्य पर निर्भर करता है ! यदि उद्देश्य सकारात्मक और आध्यात्मिक हो तो नुकसान थोड़ा कम हो सकता है ! अन्यथा अधिक नुकसान होगा !
सकारात्मक आध्यात्मिक ऊर्जा का हस्तानान्तरण किसी समस्या के समाधान के लिये जैसे रोग निवारण, ग्रह शान्ति या अन्य सांसारिक सफलता के लिये या आध्यात्मिक उन्नति के लिये गुरु द्वारा शिष्य के लिये किया जाता है ! जबकि नकारात्मक ऊर्जा का हस्तानान्तरण अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये किया जाता है ! जैसे संपत्ति की प्राप्ति के लिये ! किसी के दिमाग को बंद कर देना या किसी को अपनी नकारात्मक सोच के अनुसार चलाने के लिये या किसी की बुद्धि को भ्रमित कर देना आदि आदि !
आध्यात्मिक ऊर्जा चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक इसका हस्तानान्तरण अवश्य होता है ! तभी यह परिणाम देती है ! कभी कभी लोगों को अधिक साधना के कारण ऊर्जा का हस्तानान्तरण किये बिना ही इसका अनुभव के स्वतः होता रहता है !
वाणी, विचार, स्पर्श, श्रवण, गंध इत्यादि के माध्यम से निरंतर इस ऊर्जा का प्रभाव एक तेजस्वी व्यक्ति से दूसरे सामान्य व्यक्ति के ऊपर पड़ता रहता है ! जब सामान्य व्यक्ति में प्रभावित होने वाली ऊर्जा की मात्रा अधिक हो जाती है तो इसका अनुभव उस सामान्य व्यक्ति को होने लगता है ! जैसे किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व में आंतरिक नकारात्मकता अधिक है ऐसे व्यक्ति को हर समय बेचैनी या चिड़चिड़ाहट का अनुभव होता है ! परन्तु जब वह साधु संतो अथवा सत्संग आदि में जायेगा तो सकारात्मक ऊर्जा के कारण उसे शांति का अनुभव होगा !
प्राय: ज्ञात अवस्था में आध्यात्मिक ऊर्जा का हस्तानान्तरण प्राणियों के कल्याण के लिये परम चेतना से जुड़ कर अत्यंत शुभ परिणाम हेतु किया जाता है ! ईश्वर की अनंत ऊर्जा इस ब्रह्माण्ड में विशाल मात्रा में उपस्थित है ! जो हमें सही पध्यति से साधना द्वारा या तो स्वयं मिल जाती है या फिर किसी योग्य गुरु की कृपा से प्राप्त होती है !
यदि जागृत अवस्था में मन को संयमित और संतुलित कर लिया जाये और सही तरह से आहार, विहार, विचार शुद्ध रख कर सही इष्ट देव की साधना की जाये तो सत्व गुण की प्रधान होने पर मन की क्षमता असीम हो जाती है और एकाग्रतावश आकाशीय आध्यात्मिक ऊर्जा का हमारे शरीर में संचार होने लगता है ! यही आत्म उत्थान की ईश्वरीय व्यवस्था है ! इन्ही कारणों से जागृत अवस्था में सात्विक साधना से ग्रहण की गयी ऊर्जा हमारे लिये अधिक उपयोगी होती है ! लेकिन इसके लिये भी गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है !!