हम नकली “गीता” तो नहीं पढ़ रहे हैं ! 700 नहीं 745 शलोक है असली गीता में | Yogesh Mishra

यदि महाभारत का युद्ध धर्म युद्ध था तो युद्ध समाप्त होने के बाद सतयुग अर्थात सत्य का युग आना चाहिये कलयुग अर्थात कलुषित युग क्यों आ गया !

इससे सिद्ध होता है कि महाभारत युद्ध धर्म की स्थापना के लिये लड़ा गया युद्ध नहीं था ! बल्कि इस युद्ध के बाद भारत बिल्कुल तबाह हो गया था !

श्रीमद्भागवत गीता में व्यास जी ने लिखा है कि भगवान श्री कृष्ण ने कहा है :-
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥“

यह लाईन वेद व्यास ने अद्भुत रामायण से लिया है ! वहां महर्षि बाल्मीकि ने लिखा है कि
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति सुव्रता । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदा प्रक्रुति संभवा ॥“

यह द्रष्टान्त माता सीता व रावण के मध्य संवाद से लिया गया है ! जहाँ माता सीता रावण को यह समझाते कहती है कि “ (मैं) सुव्रता (यह बतलाती हूँ कि) जब जब धर्म की हानि होती है तब तब प्रकृति के प्रभाव से बार बार धर्म की स्थापना होती है !

अर्थात निश्चित रूप से वेद व्यास द्वारा महाभारत युद्ध के समाप्त होने के वर्ष बाद महाभारत ग्रन्थ के बीज रूप को लिखा था ! जिस ग्रन्थ का नाम “भारत” था ! यह महाकाव्य ‘जय संहिता’, ‘भारत’ और ‘महभारत’ इन तीनों नामों से प्रसिद्ध है !

वास्तव में वेद व्यास जी ने सबसे पहले 1,00,000 श्लोकों के परिमाण के ‘भारत’ नामक ग्रंथ की रचना की थी, इसमें उन्होने भारतवंशियों के चरित्रों के साथ-साथ अन्य कई महान ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों सहित कई अन्य धार्मिक उपाख्यान लिखे थे ।

इसके बाद व्यास जी ने 24,000 श्लोकों का बिना किसी अन्य ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों का केवल भारतवंशियों को केन्द्रित करके ‘भारत’ काव्य लिखा । इन दोनों रचनाओं में धर्म की अधर्म पर विजय होने के कारण इन्हें ‘जय’ भी कहा जाने लगा ।

महाभारत में एक किवदंती कथा आती है कि जब देवताओं ने तराजू के एक पडले में चारों “वेदों” को रखा और दूसरे पर ‘भारत ग्रंथ’ को रखा, तो ‘भारत ग्रंथ’ सभी वेदों की तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ । अतः ‘भारत’ ग्रंथ की इस महत्ता (महानता) को देखकर देवताओं और ऋषियों ने इसे ‘महाभारत’ नाम दिया और इस कथा के कारण मनुष्यों में भी यह काव्य ‘महाभारत’ के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ ।

सर्व प्रथम ‘महाभारत’ जनमेजय के सर्प यज्ञ समारोह पर “वैशम्पायन जी” ने ऋषि मुनियों को महाभारत सुनाया था ! उस समय यह 100 पर्वों के रूप में एक लाख श्लोकों का रचित भारत महाकाव्य था !

दूसरी बार फिर से ‍वैशम्पायन और ऋषि-मुनियो की इस वार्ता के रूप में कही गयी “महाभारत” को सूत जी द्वारा पुनः 18 पर्वों के रूप में सुव्यवस्थित करके समस्त ऋषि-मुनियों को सुनाना गया था । लेकिन तब यह श्रुति और स्मृति पर प्रचारित ग्रन्थ था !

सूत जी और ऋषि-मुनियों की इस वार्ता के रूप में कही गयी “महाभारत” का लेखन बहुत बाद में लेखन कला के विकसित होने पर सर्वप्रथम् ब्राह्मी और फिर संस्कृत भाषा में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के रूप में लिपी बद्ध किया गया ।

पूरे दक्षिण एशिया में उपलब्ध महाभारत की सभी पाण्डुलिपियों को जो लगभग 10,000 हैं ! उनका शोध और अनुसंधान करके लगभग 75,000 श्लोकों को खोज जा सका है ! जिसमें श्रीमद्भागवत गीता उस रूप में नहीं है जैसाकि वर्तमान में प्रचालन में है !

उसमें श्रीमद्भागवत गीता का लेखन इस रूप में नहीं किया गया था ! क्योंकि महाभारत ग्रन्थ में श्रीमद्भागवत गीता समाप्त होने के बाद भीष्म पर्व के 43 अध्याय के श्लोक 4-5 में श्रीमद्भागवत गीता में किसके द्वारा कितने श्लोक कहे गये हैं उसकी संख्या बतलाई गई है !

भीष्मपर्व के अनुसार
षट्शतानि सविंशानि श्लोकानां प्राह केशवः ।
अर्जुन: सप्तपञ्चाशत् सप्तषष्टिं तु संजयः
धृतराष्ट्रः श्लोकमेकं गीताया मानमुच्यते ॥ (भीष्म॰ `४३ ।४-५)

अर्थात गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने छः सौ बीस श्लोक कहे हैं ! अर्जुनने सत्तावन श्लोक कहे हैं ! संजय ने सड़सठ श्लोक कहे हैं और धृतराष्ट्र ने एक श्लोक कहा है ! इस प्रकार श्रीमद्भागवत गीता में कुल श्लोकों की संख्या 745 होनी चाहिये !

लेकिन वर्तमान में गीता की प्रचलित प्रति के अनुसार अठारह अध्यायों में पाँच सौ चौहत्तर श्लोक भगवान् श्रीकृष्ण के, चौरासी श्लोक अर्जुन के इकतालीस श्लोक संजय के और एक श्लोक धृतराष्ट्र का है ! जिनका कुल योग सात सौ होता हैं तथा वर्तमान गीता में वह संख्या भी मेल नहीं खाती है जो मूल महाभारत में वर्णित है ।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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