ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को है,जानिये: कोई व्यक्ति कैसे ब्राह्मणत्व को उपलब्ध हो सकता है !

ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को है चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो। अगर साहस है तो ब्राह्मण बन कर दिखाओ | अपने राजनीतिक लाभ के लिए ब्राह्मणों को गाली देना तो बहुत आसान है लेकिन ब्राह्मण के जो सामाजिक,राजनैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक कर्तव्य हैं, उनका निर्वहन करना आम व्यक्तियों के बस की बात नहीं है जिन लोगों ने इतिहास में ब्राह्मण के कर्तव्यों का निर्वहन किया है वह आज इतिहास की मुख्यधारा में नायक के रूप में गिने जाते हैंजैसे कि

1. मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |

2. वाल्मीकि चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने।

3. रैदास शुद्रकुल में जन्म लेकर ब्राह्मणत्व प्राप्त किया।

4. सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |

5. क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने अपने कर्मों से ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१)

6. ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे| परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की | ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है|

ब्राह्मण के गुण एवं कर्म -अंतरंग में ब्राह्मण वृत्ति जागते ही बहिरंग में साधु प्रवृत्ति का उभरना, स्वाभाविक है। ब्राह्मण अर्थात लिप्सा से जूझ सकने योग्य मनोबल का धनी। प्रलोभनों और दबावों का सामना करने में समर्थ। औसत भारतीय स्तर के निर्वाह में काम चलाने से संतुष्ट।स्मृति ग्रन्थों में ब्राह्मणों के मुख्य छ: कर्तव्य (षट्कर्म) बताये गये हैं-

1.पठन 2.पाठन 3यजन 4.याजन5. दान 6. प्रतिग्रह

शतपथ ब्राह्मण में ब्राह्मण के कर्तव्यों की चर्चा करते हुए उसके अधिकार इस प्रकार कहे गये हैं-

1.अर्चा 2.दान 3. अजेयता 4.अवध्यता।

ब्राह्मण के कर्तव्य इस प्रकार हैं-

1.’ब्राह्मण्य’ (वंश की पवित्रता) 2.’प्रतिरूपचर्या’ (कर्तव्यपालन) 3. ‘लोकपक्ति’ (लोक को प्रबुद्ध करना)
ब्राह्मण के नौ गुण -सम, दम, तप, शौच, क्षमा, सरलता, ज्ञान, विज्ञान, आस्तिकता
ब्राह्मण के सोलह संस्कार :1. ऋतु स्नान, 2. गर्भाधान, 3. सुती स्नान, 4. चंद्रबल, 5. स्तन पान, 6. नामकरण, 7. जात कर्म, 8. अन्नप्राशन, 9. तांबूल भक्षणम, 10. कर्ण भेद (कान छेदना), 11. चूड़ाकर्म, 12. मुंडन, 13. अक्षर आरंभ, 14. व्रत बंद (यज्ञोपवीत), 15. विद्यारंभ और 16 विवाह।

प्रश्न यह उठता है कि ब्राह्मण कौन है ? क्या वह जीव है अथवा कोई शरीर है अथवा जाति अथवा कर्म अथवा ज्ञान अथवा धार्मिकता है ?

1. क्या धार्मिक , ब्राह्मण हो सकता है? यह भी सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि क्षत्रिय आदि बहुत से लोग स्वर्ण आदि का दान-पुण्य करते रहते हैं ! अतः केवल धार्मिक भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है !!

2. क्या कर्म को ब्राह्मण माना जाये? नहीं ऐसा भी संभव नहीं है; क्योंकि समस्त प्राणियों के संचित, प्रारब्ध और आगामी कर्मों में साम्य प्रतीत होता है तथा कर्माभिप्रेरित होकर ही व्यक्ति क्रिया करते हैं ! अतः केवल कर्म को भी ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता है !!

3. क्या ज्ञान को ब्राह्मण माना जाये ? ऐसा भी नहीं हो सकता; क्योंकि बहुत से क्षत्रिय (राजा जनक) आदि भी परमार्थ दर्शन के ज्ञाता हुए हैं (होते हैं) !

4. क्या जाति ब्राह्मण है ( अर्थात ब्राह्मण कोई जाति है )? नहीं, यह भी नहीं हो सकता; क्योंकि विभिन्न जातियों एवं प्रजातियों में भी बहुत से ऋषियों की उत्पत्ति वर्णित है !

5. क्या शरीर ब्राह्मण (हो सकता) है? नहीं, यह भी नहीं हो सकता ! चांडाल से लेकर सभी मानवों के शरीर एक जैसे ही अर्थात पांचभौतिक होते हैं,उनमें जरा-मरण, धर्म-अधर्म आदि सभी सामान होते हैं ! ब्राह्मण- गौर वर्ण, क्षत्रिय- रक्त वर्ण , वैश्य- पीत वर्ण और शूद्र- कृष्ण वर्ण वाला ही हो,

6. जीव को ही ब्राह्मण मानें ( कि ब्राह्मण जीव है), तो यह संभव नहीं है; क्योंकि भूतकाल और भविष्यतकाल में अनेक जीव हुए होंगें !उन सबका स्वरुप भी एक जैसा ही होता है ! जीव एक होने पर भी स्व-स्व कर्मों के अनुसार उनका जन्म होता हैऔर समस्त शरीरों में, जीवों में एकत्व रहता है, इसलिए केवल जीव को ब्राह्मण नहीं कह सकते !

जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त ना हो; जाति गुण और क्रिया से भी युक्त न हो; षड उर्मियों और षड भावों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो; सत्य, ज्ञान, आनंद स्वरुप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला , अशेष कल्पों का आधार रूप , समस्त प्राणियों के अंतस में निवास करने वाला , अन्दर-बाहर आकाशवत संव्याप्त ; अखंड आनंद्वान , अप्रमेय, अनुभवगम्य , अप्रत्येक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल आमलकवत परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला; काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला ; शम-दम आदि से संपन्न ; मात्सर्य , तृष्णा , आशा,मोह आदि भावों से रहित; दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है; ऐसा श्रुति, स्मृति-पुराण और इतिहास का अभिप्राय है ! इस (अभिप्राय) के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार से ब्राह्मणत्व सिद्ध नहीं हो सकता ! आत्मा सत-चित और आनंद स्वरुप तथा अद्वितीय है ! इस प्रकार ब्रह्मभाव से संपन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है ! यही उपनिषद का मत है !जो समस्त दोषों से रहित, अद्वितीय, आत्मतत्व से संपृक्त है, वह ब्राह्मण है ! क्योंकि आत्मतत्व सत्, चित्त, आनंद रूप ब्रह्म भाव से युक्त होता है, इसलिए इस ब्रह्म भाव से संपन्न मनुष्य को ही (सच्चा) ब्राह्मण कहा जा सकता है !
मैं स्वागत करता हूं प्रत्येक उस व्यक्ति का जो समाज के उपरोक्त कर्तव्यों के निर्वहन के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करके राष्ट्र हित और समाज हित के लिए अपने को आत्म समर्पित कर देता है | धन्य है वह ब्राह्मण युगपुरुष जो जाति के किसी भी बंधन में न बंध कर मात्र अपने कर्मों से आज इतिहास में गौरान्वित हो रहे हैं |

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter