आज अक्षय तृतीया है ! आज और कल में ही देव स्थल हिमालय पर्वत पर स्थापित शैव धर्म प्रतीक केदारनाथ और वैष्णव धर्म प्रतीक बद्रीनाथ धाम के कपाट आम भक्तजन के लिये ईश्वर के दर्शनार्थ खोल दिये जाते हैं ! यह वह अवसर है जब देव ऊर्जायें देव लोक से वापस पृथ्वी पर आगमन करती हैं !
हम सभी जानते हैं कि हमने अपने पूर्व के अशुभ कृतियों से देवताओं को पोषित न करके आसुरी ऊर्जाओं को पोषित किया है ! उसी का परिणाम है कि आज पृथ्वी अपने सर्वनाश की तरफ बढ़ चुकी है ! प्रकृति के इस सर्वनाश की लीला से अपने आपको सर्वशक्तिमान समझने वाला मनुष्य भी सुरक्षित नहीं है ! बहुत से प्रजाति के जीव-जंतु पशु-पक्षी, वनस्पति आदि जो मनुष्य के लिये बहु उपयोगी थे ! उनका विलोप मनुष्य ने स्वयं अपने कृतियों से कर लिया है !
रासायनिक भोजन और कीटनाशक के अंधाधुन प्रयोग से आज मनुष्य में तरह-तरह के रोगों की उत्पत्ति हो रही है ! जिसका उपचार तो दूर ! उसे आज का आधुनिक विज्ञान समझ भी नहीं पा रहा है ! मनुष्य के पशुता की पराकाष्ठा यह है कि आज मनुष्य मनुष्य को ही विषाणु युद्ध के माध्यम से समाप्त कर देना चाहता है ! पृथ्वी पर सर्वभक्षी राक्षस के रूप में स्थापित हो चुका मनुष्य अपने आधुनिक हथियार आदि की शक्तियों से इतना अहंकारी हो गया है कि उसे यह एहसास ही नहीं कि वह मानवता का कितना बड़ा दुश्मन बन गया है ! ऐसे विवेकहीन, मानवता विरोधी, व्यक्तियों को ही शास्त्रों में दैत्य, दानव, राक्षस, असुर आदि की संज्ञा दी गई है !
पृथ्वी पर जब भी सनातन जीवन शैली के विपरीत मनुष्य जीवन यापन करता है ! तभी प्रकृति का प्रचंड क्रोध जागृत होता है ! जलवायु में अप्रत्याशित परिवर्तन होने लगता है ! जल अपनी मर्यादाओं को तोड़ कर मानव निवास स्थलों में अनावश्यक प्रवेश कर उन्हें बहा ले जाता है ! जिसे जल प्रलव कहा जाता है ! वायु प्रचंड गति से बहने लगती है ! जिससे वायु प्रकोप कहा जाता है और ऋतुओं में इतना बड़ा परिवर्तन होता है कि कहीं अनावश्यक वर्षा होती है तो कहीं स्वत: ही प्रचंड अग्निकांड होने लगते हैं ! यह सभी कुछ प्रकृति का प्रकोप है ! आम जनमानस अपने आहार-विहार-विचार-संस्कार से दूषित हो जाता है और मानवता धीरे-धीरे अपने सर्वनाश की तरफ बढ़ने लगती है !
आज पृथ्वी पर कमोवेश यही स्थिति हो रही है ! ऋतुओं में बदलाव हो रहा है ! आपने देखा ऑस्ट्रेलिया में अभी-अभी बहुत बड़ा अग्निकांड हुआ था ! अब आप देखेगा इसी वर्ष भयंकर जल प्रलय होगा ! भूकंप आयेंगे और प्रचंड वायु वेग से न जाने कितनी क्षति होगी और इस सभी कुछ के लिये हम स्वयं ही जिम्मेदार होंगे !
ऐसी स्थिति में प्रकृति के आगे संपूर्ण समर्पण अर्थात नतमस्तक होने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है ! इसके लिये हमें सर्वप्रथम पृथ्वी पर देवताओं का आवाहन करना पड़ेगा और उन्हें पुष्ट और संतुष्ट करना पड़ेगा ! जिनके प्रभाव से आसुरी शक्तियां स्वत: पृथ्वी से पलायन कर जायेंगी !
इसके लिये आज अक्षय तृतीया का दिन सर्वश्रेष्ठ दिन है ! जो व्यक्ति इस पृथ्वी पर मानवता की रक्षा करना चाहता है या अपनी अगली पीढ़ियों को सुरक्षित देखना चाहता है ! वह प्रातः 07 बजे से 11:00 बजे के पूर्व अपने घर में कहीं भी या पूजा स्थल पर एक स्थाई रूप से “अखण्ड दीप” स्थापित करे ! उसके लिये जमीन में थोड़ी सी मिट्टी रख कर लगभग 2 इंच ऊंचा देवस्थल बनाये ! उस पर आटे का चौक पुरे कर देवताओं के आवाहन हेतु उचित सजावट करे और उस पर एक स्थाई दिया स्थापित करे !
जिस दिये के अंदर भारतीय नस्ल के गोवंश का घी हो ! यदि यह उपलब्धता नहीं है तो शुद्ध तिल का तेल हो ! यदि किसी कारण से शुद्ध तिल का तेल भी उपलब्ध नहीं है तो शुद्ध सरसों का तेल भी चल सकता है ! उस दिये को साक्षी मानकर अपने आहार-विहार-विचार-संस्कार की विकृतियों को त्यागने का संकल्प लें और देव शक्तियों से प्रायश्चित करें ! कि अभी तक मैं जिस मार्ग पर था ! उससे आसुरी शक्तियां पोषित हुई हैं ! हे ईश्वर अब मैं आपका आवाहन करता हूं ! आप आइये और पृथ्वी से आसुरी शक्तियों का पलायन कीजिये ! इस तरह के संकल्प के साथ इस अखंड दीप को तब तक जलाये रखिये ! जब तक अगले कुछ वर्षों में पृथ्वी पर वापस अमन-चैन कायम नहीं हो जाता है अन्यथा आने वाला समय बहुत ही विकट है !
प्रयास कीजिये कि न्याय के देवता शनि ग्रह के निवास दिवस के दिन अर्थात शनिवार की शाम एक अग्निहोत्र का आयोजन अवश्य कीजिये ! जिससे पूरे विश्व में निश्चित तौर से न्याय के देवता शनि अपने दंड के प्रभाव से आसुरी शक्तियों का इस पृथ्वी से पलायन करेंगे और देव ऊर्जाओं को पुनः पृथ्वी पर स्थाई रूप से चिरकाल के लिये स्थापित करेंगे ! यही इस पृथ्वी पर मानवता के लिये और आने वाली पीढ़ियों को बचाने के लिये शुद्ध सनातन सशक्त और सात्विक उपाय है !