वैष्णव मत दर्शन के अनुसार मनुष्य को 14 इंद्रियां प्राप्त हैं ! पांच ज्ञानेंद्रियां आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा; पांच कर्मेंद्रियां हाथ, पैर, मुंह, गुदा और लिंग और चार अंतःकरण मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार !
मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार व्यक्ति को अपराध के लिये उकसाती हैं ! तब व्यक्ति की ज्ञानेंद्रियां, कर्मेंद्रियां अपराध में लिप्त होती हैं !
शैव मत दर्शन के अनुसार मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक एक ग्रंथी है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं ! वहीं से सुषुन्मा नाड़ी रीढ़ के अन्दर से होती हुई मूलाधार तक गई है ! यह सुषुन्मा नाड़ी सहस्त्रार चक्र से जुड़ी है ! जो समस्त सफलता का केंद्र है !
इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है ! सुषुम्ना इन दोनों के मध्य में स्थित है ! अतः जब हमारे दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है ! इसी की सक्रियता से छठी इन्द्री जाग्रत होती है !
इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं ! उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है ! शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है ! जो व्यक्ति के सांसारिक सफलता में सहायक है !
यह ब्रह्मरंध्र ग्रंथी, आज्ञा चक्र अर्थात रूद्र ग्रंथी के नियंत्रण में कार्य करती है ! साथ ही ब्रह्मरंध्र ग्रंथी व्यक्ति का ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से सम्पर्क स्थापित करवाती है !
जो ब्रह्माण्डीय ऊर्जा व्यक्ति को अंदर और बाहर दोनों केंद्रों पर अपराध रहित का निर्मल बनाती है ! जिससे व्यक्ति में बहुत सारी आश्चर्यचकित कर देने वाली प्रतिभायें पैदा होती है !
शैव मत दर्शन के अनुसार यदि व्यक्ति का संबंध ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं से नहीं जुड़ा है ! तो उस व्यक्ति की कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेंद्रियां सदैव अनियंत्रित रसास्वादन के लिये संसार में लालायित रहती हैं ! जिस वजह से व्यक्ति संसार में अनेक तरह के अपराधों में लिप्त हो जाता है !
इसीलिए यदि इंद्रियां आपके नियंत्रण में नहीं हैं तो आपको साधना के क्षेत्र में अधिक समय देना चाहिये क्योंकि अनियंत्रित इंद्रियां ही सभी तरह के अपराधों का कारण हैं ! इसके लिए ब्रह्मास्मि क्रिया योग की साधना सर्वश्रेष्ठ साधना है !!