गाँधी न तो कभी राष्ट्रपिता थे और न ही महात्मा गांधी थे ! Yogesh Mishra

भारत में संविधान का शासन है ! अभिव्यक्ति की आजादी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है ! जब तक यह संविधान है तब तक भारत के किसी भी नागरिक को अपनी विचारों की अभिव्यक्ति से नहीं रोका जा सकता है और रही भारतीय दंड संहिता की धारा 292 की बात तो वह समाज में अश्लीलता फैलाने को संगीन गुनाह की श्रेणी में रखता है ! इसका किसी व्यक्ति विशेष के विषय में किसी सम्बोधन से कोई लेने देना नहीं है !

यदि यह धारा किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी के विपरीत है होती भी तो इस संविधान के लागू होने के उपरांत भारतीय दंड संहिता की धारा 292 का वह अंश भी उस प्रभाव तक निष्प्रभावी माना जायेगा ! जहां तक किसी नागरिक को यह संविधान अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है !

अभिनेता कमल हासन द्वारा नाथूराम गोडसे को “भारत का पहला हिन्दू आतंकवादी” कहने पर एक रोड शो के दौरान अभिनेता कमल हासन के हिंदू आतंकवादी संबंधी बयान पर पत्रकारों ने साध्वी से प्रतिक्रिया मांगी ! इस पर उन्होंने कहा कि नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, हैं और रहेंगे !

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर दिए गए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बयान पर बवाल जारी है ! इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर बड़ी टिप्पणी की है ! पीएम मोदी ने कहा कि भले ही साध्वी प्रज्ञा ने माफी मांग ली हो लेकिन मैं अपने मन से उन्हें कभी माफ नहीं कर पाउंगा !

जिस पर बवाल मचने के बाद साध्वी ने कुछ नरमी दिखाई ! उन्होंने कहा कि “अपने संगठन भारतीय जनता पार्टी के प्रति निष्ठा रखती हूं, उसकी कार्यकर्ता हूं पार्टी की लाइन ही उनकी लाइन है !” लेकिन यह किसी व्यक्ति के अभिव्यक्ति की आजादी पर सीधा-सीधा हमला है !

कोई आवश्यक नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस द्रष्टिकोण से मोहन दास करम चन्द्र गांधी के विषय में विचार रखते हैं, उसी दृष्टिकोण से भारत का प्रत्येक नागरिक भी गांधी के विषय में विचार रखे ! गांधी के प्रति सम्मान यह नरेंद्र मोदी की एक अपनी व्यक्तिगत अवधारणा हो सकती है लेकिन नरेंद्र मोदी की इस अवधारणा के कारण कोई दूसरा व्यक्ति गांधी के विषय में नरेंद्र मोदी की भावनाओं के विपरीत अपनी अभिव्यक्ति नहीं रख सकता यह दृष्टि को संविधान सम्मत नहीं है !

निसंदेह महात्मा गांधी राष्ट्रपिता थे किंतु यह भावनाओं और सम्मान का विषय है ! सरकारी रिकॉर्ड में कहीं भी राष्ट्रपति का नाम का न तो कोई पद है और न ही कोई राजकीय सम्मान और कभी भी न ही मोहन दास करम चन्द्र गांधी ने अपना नाम परिवर्तित करके “महात्मा गांधी” रखा ! क्योंकि नाम परिवर्तन एक विधिक प्रक्रिया है ! और किसी भी वयस्क व्यक्ति के नाम को बदलने का अधिकार विधि में किसी भी अन्य व्यक्ति को नहीं है, न ही किसी के मृत्यु उपरांत ही उसका नाम बदला जा सकता है !

महात्मा गांधी को 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था ! अतः मोहन दास करम चन्द्र गांधी को “महात्मा गांधी” या राष्ट्रपिता मानना यह व्यक्ति की निजी अभिव्यक्ति, विचार या दृष्टिकोण हो सकता है किन्तु विधिक अनिवार्यता नहीं हो सकती है और न ही यह अवश्यक है कि किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति के निजी विचार या दृष्टिकोण के अनुरूप ही भारत का प्रत्येक नागरिक किसी विशेष व्यक्ति के विषय में चिंतन करने के लिए बाध्य हो !

जबकि अदालत में गोडसे ने स्वीकार किया था कि उन्होंने ही गांधी को मारा है ! अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा था कि “गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूँ ! उन पर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिये उन्हें नतमस्तक हुआ था किंतु जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी भी बड़े से बड़े महात्मा को नहीं है ! गाँधी जी ने देश को छल कर किया और उसके देश के टुकड़े कर दिये ! क्योंकि भारत में ऐसा कोई भी न्यायालय और कानून नहीं था जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गाँधी को गोली मारी !” अर्थात यदि इस विषय पर गोडसे के पास न्यायलय जाने का विकल्प होता तो वह न्यायलय जाता गोली न मरता !!

अभिव्यक्ति की आजादी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और इस मौलिक अधिकार का प्रयोग करते हुये भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी भी विषय, व्यक्ति या इतिहास पर अपना निजी दृष्टिकोण रखने का पूर्ण अधिकार है ! जो अधिकार उसे इस संविधान के अधीन प्राप्त है !

यह बात अलग है की राजनैतिक कारणों से साध्वी प्रज्ञा ने नरेंद्र मोदी का सम्मान करते हुए नाथूराम गोडसे के संबंध में अपने विचार वापस ले लिये लेकिन इस तरह किसी व्यक्ति को अपने विचार वापस लेने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है !

रही भारतीय दंड संहिता के धारा 292 के अंतर्गत अपराध होने की बात तो यहां मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि भारतीय दंड संहिता की धारा 292 में यह लिखा हुआ है जिसके अनुसार नाथूराम गोडसे के संबंध में सम्मान सूचक शब्दों का प्रयोग करना कोई अपराध नहीं है !

क्यों कि भारतीय दंड संहिता की धारा 292 में समाज में अश्लीलता फैलाना संगीन गुनाह की श्रेणी में आता है ! इसमें अश्लील साहित्य, अश्लील चित्र या अश्लील फिल्मों को दिखाना,वितरित करना और इससे किसी प्रकार का लाभ कमाना या लाभ में किसी प्रकार की कोई भागीदारी कानून की नजर में अपराध है इसके दायरे में मात्र वह लोग भी आते हैं जो अश्लील सामग्री को बेचते हैं या जिन लोगों के पास से अश्लील सामग्री बरामद होती है ! न कि किसी मरे हुये व्यक्ति को सम्मान देना या न देना !!

बल्कि उल्टा अभिनेता कमल हासन द्वारा नाथूराम गोडसे को “भारत का पहला हिन्दू आतंकवादी” कहना हिन्दुओं का अपमान है ! क्यों कि किसी व्यक्ति विशेष की किसी घटना के कारण किसी सम्पूर्ण धर्म को मानाने वाले को अपमानित नहीं किया जा सकता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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