कभी विश्व अराध्य रहे हैं भगवान शिव : Yogesh Mishra

भगवान शिव की पूजा या आराधना एक गोलाकार खड़े पत्थर के रूप में की जाती है ! जिसे पूजा स्थल के गर्भगृह में रखा जाता है ! सिर्फ भारत और श्रीलंका में ही नहीं, भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में शिव की पूजा की जाती रही है !

अनादि काल से दुनिया भर में शिव की पूजा का प्रचलन था, इस बात के हजारों सबूत पूरी दुनियां में बिखरे पड़े हैं ! हाल ही में इस्लामिक स्टेट द्वारा नेस्तनाबूद कर दिये गये प्राचीन शहर पलमायरा, नीमरूद आदि नगरों में भी शिव की पूजा के प्रचलन के अवशेष मिलते हैं ! रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्म गुरु, रोम के बिशप एवं वैटिकन के राज्याध्यक्ष का नगर वैटिकन तो पूरा ही “शिवाकार” है !

भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं !

शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं ! महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक ! शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं ! 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए !

शैव धर्म से जुड़ी महत्‍वपूर्ण जानकारी और तथ्‍य:

(1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है !

(2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है !

(3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है !

(4) अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है !

(5) लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है !

(6) महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है !

(7) वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है: (i) पाशुपत (ii) काल्पलिक (iii) कालमुख (iv) लिंगायत

(7) पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है ! इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्‍हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है !

(8) पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है !

(9) कापलिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र शैल नामक स्थान था !

(10) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है ! इस संप्रदाय के लोग नर-पकाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे !

(11) लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था ! इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे !

(12) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था !

(13) दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ !

(14) दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा !

(15) नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है ! जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है !

(16) पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया !

(17) ऐलेरा के कैलाश मदिंर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया !

(18) चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था !

(19) कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिंव और नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है !

(20) शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है ! ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं: (i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल

(21) शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं: (i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव

(22) शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं: (i) श्‍वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई

(23) शैव तीर्थ इस प्रकार हैं: (i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर

(24) शैव सम्‍प्रदाय के संस्‍कार इस प्रकार हैं: (i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं ! (ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं ! (iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते ! (iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं ! (v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं ! (vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं ! (vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं ! (viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है ! (ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है ! (x) यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं !

(25) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा,औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है !

शिवलिंग का प्रकार अलग अलग सभ्यता में अलग अलग स्वरूप में पूजे जाते रहे हैं ! शिवलिंग ब्रह्मांड के समग्रता की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है ! ब्रह्मांड अंडाकार ही है, जो एक अंडाकार शिवलिंग की तरह नजर आता है ! शिवलिंग ‘ब्रह्मांड’ या ब्रह्मांडीय अंडे के आकार का प्रतिनिधित्व करता है !

प्रमुख रूप से शिवलिंग 2 प्रकार के होते हैं- पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग !

पहला उल्कापिंड की तरह काला अंडाकार लिये हुये शिवलिंग ! इस तरह का एक शिवलिंग मक्का के काबा में स्थापित है, जो आसमान से गिरा था ! ऐसे शिवलिंग को ही भारत में ज्योतिर्लिंग भी कहते हैं ! दूसरा मानव द्वारा निर्मित पारे से बना शिवलिंग होता है ! इसे ‘पारद शिवलिंग’ कहा जाता है ! पारद विज्ञान प्राचीन वैदिक विज्ञान है ! इसके अलावा पुराणों के अनुसार शिवलिंग के प्रमुख 6 अन्य प्रकार होते हैं !

1. देव लिंग : जिस शिवलिंग को देवताओं या अन्य प्राणियों द्वारा स्थापित किया गया हो, उसे देवलिंग कहते हैं ! वर्तमान समय में धरती पर मूल पारंपरिक रूप से यह देवताओं के लिये पूजित हैं !

2. असुर लिंग : असुरों द्वारा जिसकी पूजा की जाए, वह असुर लिंग ! रावण ने एक शिवलिंग स्थापित किया था, जो असुर लिंग था ! देवताओं से द्वेष रखने वाले रावण की तरह शिव के असुर या दैत्य भी परम भक्त रहे हैं !

3. अर्श लिंग : प्राचीनकाल में अगस्त्य मुनि जैसे महर्षियों, संतों द्वारा स्थापित इस तरह के लिंग की पूजा की जाती रही है !

4. पुराण लिंग : पौराणिक काल के अलग अलग व्यक्तियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है ! इस लिंग की पूजा पुराणिकों द्वारा की जाती रही है !

5. मनुष्य लिंग : प्राचीनकाल या मध्यकाल में ऐतिहासिक महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किये गये लिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है !

6. स्वयंभू लिंग : भगवान शिव किसी कारणवश स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं ! इस तरह के शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं ! भारत में स्वयंभू शिवलिंग कई जगहों पर हैं ! वरदान स्वरूप जहां शिव स्वयं प्रकट हुये थे !

शिवलिंग पूजा के नियम :
* शिवलिंग को पंचामृत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से 3 आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएं !
* शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है !
* शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र चढ़ाएं !
* केवड़ा तथा चम्पा के फूल न चढ़ाएं ! गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएं !
* कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं !
* शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं !
* शिवलिंग नहीं, शिव मंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है !
* शिवलिंग के पूजन से पहले पार्वतीजी का पूजन करना जरूरी है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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