आजकल मनोविज्ञान पर विभिन्न तरह के बहुत गंभीर शोध हो रहे हैं ! उन्हीं शोधों में एक निष्कर्ष यह भी निकला है कि जब व्यक्ति अत्यधिक तनाव में रहे और उस तनाव के कारण यदि वह कोई आत्मघाती कदम उठाने जा रहा है ! जैसे जहर खाने, आत्महत्या करने या अपने को कोई गंभीर क्षति पहुंचाने जा रहा है ! तो उस स्थिति में यदि उस व्यक्ति की उसकी मां से वार्ता करवा दी जाये तो वह व्यक्ति अपना निर्णय बदल देता है !
पर ऐसा होता क्यों है ! इस पर विज्ञान ने बहुत गहन चिंतन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि बच्चे के जन्म के समय मां के शरीर में एक विशेष तरह के रसायन का निर्माण होता है ! जिसे ऑक्सीटॉसिन हार्मोन कहा जाता है इसी ऑक्सीटॉसिन हार्मोन के प्रभाव से ही मां को प्रसव पीड़ा पैदा होती है एवं उस प्रसव पीड़ा को बर्दाश्त करने की क्षमता प्राप्त होती है !
अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो व्यक्ति के जन्म के समय उसका जो सर्वप्रथम रसायन से वास्ता पड़ता है ! वह मां के शरीर से निकलने वाला ऑक्सीटोसिन हार्मोन होता है ! इसी ऑक्सीटोसिन हार्मोन के कारण मां अपने बच्चे को स्तनपान करा पाती है और उस स्तनपान के द्वारा बच्चा जब मां का दूध पीता है ! तो मां की दूध से उस बच्चे के शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का कुछ अंश प्रथम रसायन के रूप में उसे प्राप्त होता है ! जिससे वह बच्चा संसार में आने के बाद आवाज आदि के अज्ञात भय से मुक्त हो जाता है !
यह ऑक्सीटॉसिन हार्मोन को मां के स्तन से पीने का क्रम लगभग बच्चे के साथ 40 दिन तक चलता रहता है ! इसी से बच्चे के दिमाग का अज्ञात भय समाप्त होता है और बच्चा अपने मां के शरीर से पोषण तत्व लेकर अपने को सुरक्षित तथा शक्तिशाली महसूस करता है ! इसलिये नवजात शिशु को मां का स्तनपान जरूर करवाना चाहिये !
जब व्यक्ति किसी समस्या में होता है ! तब उसको पहले मानसिक तनाव से मानसिक क्षति का सामना करना पड़ता है और जब लंबे समय तक वह व्यक्ति मानसिक तनाव में रहता है ! तब उसे मानसिक क्षति के साथ-साथ शारीरिक क्षति का भी सामना करना पड़ता है !
ऐसी स्थिति में शारीरिक और मानसिक कष्ट के कारण व्यक्ति का आत्मबल कमजोर पड़ने लगता है और वह निराश, हताश, उदास होकर अवसाद की स्थिति को प्राप्त कर लेता है ! यही अवसाद जब बढ़ता चला जाता है तो व्यक्ति आत्मघाती निर्णय लेता है ! उसी समय यदि व्यक्ति को उसके मां की आवाज सुना दी जाये या मां से वार्ता करा दी जाये तो उस व्यक्ति के मस्तिष्क में ऑक्सीटॉसिन हार्मोन का निर्माण स्वत: होने लगता है ! जिससे वह अपनी उस शारीरिक और मानसिक पीड़ा को बर्दाश्त करने की क्षमता अपने अंदर विकसित कर लेता है और अपने आत्मघाती निर्णय को त्याग देता है !
इसलिये व्यक्ति जब भी किसी भी तरह के मानसिक शारीरिक कष्ट में रहे तब उसे सर्वाधिक प्रयास करना चाहिये कि वह अपनी मां से अधिक से अधिक वार्ता करे तथा मां को भी उस व्यथित व्यक्ति से उस समय सकारात्मक व भावनात्मक वार्ता अधिक से अधिक करनी चाहिये ! जिससे वह व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है !
ऐसी स्थिति में यदि माँ तनावपूर्ण वार्ता करेंगी तो वह व्यक्ति को सामान्य के मुकाबले अधिक तेजी से हताहत होता है ! जिसका कारण है कि पूर्व में ही वह व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से व्यथित होने के कारण नकारात्मक रसायनों से घिरा होता है ! उसी समय मां यदि नकारात्मक वार्ता करे तो उससे उस व्यक्ति के आत्महत्या करने की संभावनायें कई गुना बढ़ जाती हैं !
यह एक बहुत छोटा सा विज्ञान है ! इसीलिये माँ भगवान है ! उसका नित्य प्रात: स्मरण करने से नई ऊर्जा का संचार होता है ! यह मनुष्य के लिये अति संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय है ! इसलिये प्रकृति की इस वैज्ञानिक व्यवस्था का व्यक्ति को सदैव ध्यान रखना चाहिये !!

