बौद्ध धर्म आखिर सनातन धर्म विरोधी क्यों थे ! : Yogesh Mishra

बौद्ध धर्म हिंदु धर्म की ही एक विकृत शाखा है और दोनों ही भारत भूमि से उपजे हैं ! हिन्दू धर्म के वैष्णव संप्रदाय में गौतम बुद्ध को दसंवा अवतार माना गया है ! हालाँकि बौद्ध धर्म इस मत को स्वीकार नहीं करता है !

बुद्ध से ठीक पहले महाभारत युद्ध के बाद सनातन दार्शनिक चिंतन निरंकुश सा हो गया था ! सिद्धांतों पर होने वाला यह दार्शनिक चिंतन वाद-विवाद और अराजकता का पोषक बन रहा था ! चार्वाक जैसे भोगवादी दार्शनिक लोकप्रिय हो रहे थे ! बुद्ध के उपदेश सनातन धर्म विरोधी थे ! वह माध्यम मार्ग की ओट में सनातन धर्म को विकृत कर रहे थे ! उन्होंने वेदों और ईश्वर के अस्तित्व को नकार दिया था ! भुरिदत्त जातक कथा में ईश्वर और वेद सिद्धांतों की आलोचना मिलती है !

भारतीय दर्शन सनातन धर्म विचारधारा के सर्वाधिक विकसित रूपों में से एक है और हिन्दुमत सनातन धर्म से साम्यता रखता है ! हिन्दुमत के दस लक्षणों जैसे दया, क्षमा अपरिग्रह आदि बौद्धमत से मिलते-जुलते हैं ! हिन्दुमत में मूर्ति पुजा प्रचलन की शुरुआत बौद्ध मन्दिर की नक़ल से ही शुरू हुई थी !

गौतम बुद्ध क्योंकि निराशावादी दृष्टिकोण एक गुरुकुल शिक्षा विहीन व्यक्तित्व के व्यक्ति थे ! जिन्होंने कभी कोई स्वाध्याय भी नहीं किया था ! आत: अध्ययन के अभाव में वह सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों को नहीं जानते थे इसलिये वह सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों का विरोध करते थे !

गौतम बुद्ध ने ब्रह्मा को कभी ईश्वर नहीं माना है ! ब्रह्मा की आलोचना खुद्दुका निकाय के भुरिदत्त जातक कथा में की गई है ! उसमें कहा गया है कि “यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का “ईश्वर” है और सब प्राणियों का स्वामी हैं ! तो उसने इस लोक में यह माया, झूठ, दोष और मद क्यों पैदा किये हैं ? यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का “ईश्वर” है और सब प्राणियों का स्वामी है, तो हे अरिट्ठ ! वह स्वयं अधार्मिक है, क्योंकि उसने ‘धर्म’ के रहते अधर्म उत्पन्न किया !”

इसी तरह महाबोधि जातक में बुद्ध स्वयं कुछ इस तरह कहते है कि “यदि ईश्वर ही सारे लोक की जीविका की व्यवस्था करता है ! यदि उसी की इच्छा के अनुसार मनुष्य को ऐश्वर्य मिलता है ! उस पर विपत्ति आती है ! वह भला-बुरा करता हैं ! यदि आदमी केवल ईश्वर की आज्ञा मानने वाला है ! तो इस संसार में सभी अपराधों के लिये ईश्वर ही दोषी है ! तो मनुष्य को दण्ड क्यों ?”

बुद्ध ने आत्मा के अस्तित्व को भी नकार दिया है और कहा है कि एक जीव पांच स्कन्धो (तत्वों) से मिल कर बना है ! जिसमें आत्मा नाम की कोई चीज़ नहीं होती है !

इसी तरह बुद्ध ने वेदों को भी साफ़ तौर से नकार दिया है ! इसका उल्ल्लेख हमें तेविज्ज सुक्त और भुरिदत्त जातक कथा में मिलता है ! जिसमें बुद्ध अरिट्ठ को सम्भोधित करते हुये कहते हैं कि

“हे अरिट्ठ ! वेदाध्ययन धैयेवान् पुरुषों का दुर्भाग्य है और मूर्खो का सौभाग्य है ! यह (वेदत्रय) मृगमरीचिका के संमान हैं ! सत्यासत्य का विवेक न करने से मूर्ख इन्हें सत्य मान लेते हैं ! यह मायावी (वेद) प्रज्ञावान को धोखा नहीं दे सकते हैं ! यह मित्र-द्रोही और जीवनाशक (भ्रूण-हत्यारे) को वेद नहीं बचा सकते हैं ! द्वेषी, अनार्यकर्मी आदमी को अग्नि-परिचर्या भी नहीं बचा सकती ! पर यह सब विनाश का कारण हैं ! अत: इनसे बचो !”

सनातन हिन्दू धर्म समाज को चार वर्ण में भेद बताता है ! वही बुद्ध ने सभी वर्णों को समान माना है ! जिसकी पुष्ठि “अस्सलायान सुक्त” से होती है ! बुद्ध का वर्ण व्यवस्था के खिलाफ एक प्रसिद्ध वचन हमें वसल सुक्त में कुछ इस प्रकार कहा है कि “कोई जन्म से नीच नहीं होता और न ही कोई जन्म से ब्राह्मण होता है ! कर्म से ही कोई नीच होता है और कर्म से ही कोई ब्राह्मण होता है !”

इसी तरह कर्मकाण्ड का विरोध करते हुये बौद्ध धर्म में बीजमंत्रों का बिना वैज्ञानिकता परखे निर्माण किया गया इसीलिये बौद्ध धर्म में अधिकांशतः बीजमंत्रों पर ध्यान किया जाता है ! जबकि हिंदू धर्म में मात्र कुण्डलिनी जागरण की साधना के समय ही बीजमंत्र एकाक्षरी होते हैं ! जैसे लं, वं, हं आदि ! क्योंकि कुंडलिनी एक मानसिक ऊर्जा प्रवाह का केन्द्र होता है ! जो बीज मन्त्रों से ही संचालित होता है ! यह पूर्ववर्णित मन्त्र से अपेक्षाकृत आसान होता है !

इसलिये कुंडली जागरण में बीज मंत्र का महत्व है लेकिन शेष कर्मकांड में संपूर्ण मंत्र ही प्रभावशाली परिणाम देते हैं ! गौतम बुद्ध को संस्कृत नहीं आती थी ! अत: उन्होंने पाली भाषा में पूजा उपासना पद्धति विकसित की थी ! इसलिये वह संस्कृत भाषा आधारित कर्मकांड पध्यति और मन्त्रों का विरोध करते थे ! जिस पाली भाषा उपासना पध्यति को आज उनके अनुयाई ही नहीं जानते हैं !

 

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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