प्रकृति ने तृतीय विश्व युद्ध के लिये मिडिल ईस्ट क्षेत्र को ही क्यों चुना है : Yogesh Mishra

यह प्रकृति की सामान्य व्यवस्था है कि जब-जब पृथ्वी पर सनातन धर्म की हानि होती है ! तब-तब प्रकृति एक महायुद्ध के उस सनातन धर्म विरोधी व्यवस्था को नष्ट करने के लिये उसी अधर्म क्षेत्र में आयोजित करती है जहाँ से अधर्म का उदय होता है ! इसके लिये सामान्यतया लगभग हर 2500 वर्ष में इस पृथ्वी पर सनातन धर्म की पुनः स्थापना के लिये एक महायुद्ध होता है !

आज से 10,000 साल पहले के ज्ञात इतिहास में यह महायुद्ध समुद्र मंथन के समय हुआ था ! इसके बाद दूसरा महायुद्ध लगभग 2500 वर्ष पश्चात अर्थात आज से 7,500 वर्ष पूर्व भगवान श्री राम और रावण के मध्य रक्ष संस्कृति की राजधानी लंका में हुआ था ! इसके लगभग 2500 वर्ष पश्चात आज से लगभग 5,200 वर्ष पूर्व ही महाभारत का युद्ध अधर्म के संस्थापक साम्राज्य कुरु के कुरुक्षेत्र में हुआ था और उसके 2500 वर्ष बाद आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य के आगमन के पश्चात सनातन धर्म की पुनः स्थापना के लिये बौद्ध धर्म, जैन धर्म, चार्वाक मतालंबियों के विरुद्ध समग्र भारत को ही एक साथ महायुद्ध के लिये चुना क्योंकि इन सभी मतों की उत्पत्ति यहीं से हुई थी !

आज पुनः अधर्म अपनी पराकाष्ठा पर है ! धर्मांतरण के छद्म युद्ध के तहत तरह-तरह के हथकंडे अपना कर लव जिहाद, आतंकवाद, कुलशित राजनीति द्वारा, चंगाई सभा आयोजित करके, भय, ख्वाब और पक्षपात के कारण आज पुनः सनातन धर्म का ह्रास हो रहा है ! अतः सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिये पुनः एक बड़े धर्मयुद्ध की आवश्यकता है !

जब समुद्र के अंदर छोटे-छोटे टापुओं में डाकुओं के रूप में दैत्य, दानव, असुर आदि ने कब्जा करके सनातन धर्म का समूल नाश करने का निर्णय लिया था ! तब प्रकृति ने समुद्र के अंदर इन छोटे-छोटे टापुओं में बसने वाले सनातन धर्म विरोधियों को नष्ट करने के लिये समुद्र में ही “समुद्र मंथन” महायुद्ध का आयोजन किया था और इन सभी सनातन धर्म विरोधी राक्षसों को वहीँ पर नष्ट करके सनातन धर्म की पुनः स्थापना की थी ! यही प्रकृति की व्यवस्था है !

ठीक इसी तरह जब रावण ने सनातन धर्म के विरुद्ध अपनी “रक्ष संस्कृति” को प्रभावशाली ढंग से लागू कर लिया था ! तब “रक्ष संस्कृति” के उदय स्थल लंका में में ही प्रकृति ने महायुद्ध आयोजित किया था ! इसके पश्चात जब कुरुवंश ने धर्म के मार्ग को त्याग कर अधर्म के रास्ते से पूरे विश्व में सभी राजाओं को अधर्म के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित किया था ! तो उन राजाओं ने सनातन धर्म के धर्म सिद्धांतों का परित्याग कर कुरुवंश द्वारा दिखाये गये अधर्म के मार्ग को अपना लिया था ! ऐसी स्थिति में प्रकृति ने उसी कुरु वंश के कुरुक्षेत्र में सनातन धर्म की पुनः स्थापना के लिये महाभारत युद्ध का आयोजन किया था !

ठीक इसी तरह जब संपूर्ण भारत में सनातन धर्म विरोधी शाखाओं ने अपना प्रभाव स्थापित कर लिया और तत्कालीन शासकों को त्याग और न्याय के स्थान पर बौद्ध धर्म, जैन धर्म और चार्वाक दर्शन के अंतर्गत भोग विलास का जीवन जीने के लिये प्रेरित किया जाने लगा ! तब प्रकृति की सनातन त्याग और धर्म की व्यवस्था के विपरीत राजा और प्रजा दोनों के द्वारा ही सनातन धर्म का परित्याग कर अन्य भोग विलास को ही धर्म मानते हुये नव उदित धार्मिक मान्यताओं को स्वीकार किया जाने लगा और भारत निहित स्वार्थों से खंड खंड होने लगा !

तब प्रकृति ने आदि गुरु शंकराचार्य के माध्यम से भारत में चार धर्म पीठ की स्थापना करवायी ! चार धार्मिक मठों में दक्षिण के शृंगेरी शंकराचार्यपीठ, पूर्व ओडिशा में जगन्नाथपुरी में गोवर्धनपीठ, पश्चिम द्वारिका में शारदामठ तथा बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ की स्थापना करवा के भारत को एकात्मकता का सन्देश दिया और दशनामी सम्प्रदाय की स्थापना कर दस अखाड़ों की स्थापना की !
1:- गिरि,
2:- पर्वत
3:- सागर ! इनके ऋषि भृगु हैं !
4:-पुरी,
5:- भारती
6:- सरस्वती ! इनके ऋषि शांडिल्य हैं !
7:- वन
8:- अरण्य ! इनके ऋषि काश्यप हैं !
9:- तीर्थ
10:- आश्रम के ऋषि अवगत हैं !

इस तरह नागा अखाड़ा की स्थापना के उपरांत संपूर्ण भारत में एक ऐसा महायुद्ध हुआ ! जितने बौद्ध धर्म, जैन धर्म के साथ ही चार्वाक दर्शन को भी जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया ! क्योंकि इन सभी की उत्पत्ति भारत में ही हुई थी अत: उस समय भारत को ही प्रकृति ने महायुद्ध के लिये चुना !

ठीक इसी तरह संपूर्ण पृथ्वी के मध्य मिडिल ईस्ट क्षेत्र में जेरूसलम से उत्पन्न हुये दो आधुनिक धर्म क्रिश्चियनिटी और इस्लाम ने जब छल और बल के द्वारा संपूर्ण विश्व पर सनातन धर्म विरोधी मार्ग को अपनाकर अधर्म का पूर्व जोर प्रचार शुरू किया और सनातन धर्म को मानने वालों को अपना धर्म अपनाने के लिये बाध्य करना शुरू किया ! तो प्रकृति ने अपनी व्यवस्था के तहत पूरे ढाई हजार वर्ष के उपरांत पुनः मिडिल ईस्ट क्षेत्र जहां से दोनों आधुनिक धर्मों की उत्पत्ति और विस्तार हुआ है ! उसी क्षेत्र को तृतीय विश्व युद्ध के लिये चुना है !

यह सनातन धर्म के पुनः स्थापना का काल है ! यह प्रकृति की सामान्य व्यवस्था का अंश है कि सनातन धर्म विरोधी का सर्वनाश उसी स्थान पर होगा जहाँ से सनातन धर्म विरोधी धर्म का उदय होता है ! यह प्रकृति की व्यवस्था के तहत पूर्व सुनिश्चित है और इसी के लिये प्रकृति की सामान्य व्यवस्था में बुना गया ताना-बाना ही वर्तमान में तृतीय विश्व युद्ध का स्वरूप धारण कर रहा है ! अब निश्चित तौर से इस विश्व युद्ध की समाप्ति के उपरांत इस्लाम और क्रिश्चियनिटी दोनों ही धर्म आपस में लड़ कर समाप्त हो जायेंगे ! यह युद्ध लगभग 27 वर्ष तक चलेगा !

इस वर्ष एक ही ईस्वी सम्बत वर्ष में 6 ग्रहण का एक साथ पड़ना और मात्र 30 दिन के अंदर तीन ग्रहण का एक साथ पड़ना यह स्पष्ट संकेत है कि तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत इसी वर्ष होगी ! इसी तरह का संकेत प्रकृति ने महाभारत के युद्ध के पूर्व भी दिया था ! यह युद्ध सनातन धर्म की पुनः स्थापना के लिये ही होगा !

प्रकृति की यह सामान्य व्यवस्था है कि सनातन धर्म के विरुद्ध जिस क्षेत्र से जब-जब जो-जो महाशक्तियां उभरकर सनातन धर्म को नुकसान पहुंचाती हैं ! प्रकृति उसी क्षेत्र में लगभग हर 2500 वर्ष के उपरांत महायुद्ध आयोजित करती है ! जिसमें सनातन धर्म को क्षति पहुंचाने वाली शक्ति का सर्वनाश हो जाता है ! यही सनातन धर्म के पुनः स्थापना के इतिहास का सारांश है ! जिस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में तृतीय विश्व युद्ध के लिये प्रकृति ने ही मिडिल ईस्ट क्षेत्र को चुना है ! जहाँ तृतीय विश्व युद्ध सुनिश्चित है !!

तृतीय विश्व युद्ध किस क्षेत्र में होगा ! यह क्षेत्र पोस्टर में दिया गया है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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