जीवन में सभी संघर्षों का मूल विचारों का मतभेद है ! विचारों की उत्पत्ति संस्कारों से होती है ! संस्कार जन्म-जन्मांतर के चिंतन शैली पर आधारित हैं ! प्रकृति की यह व्यवस्था है कि कभी भी दो व्यक्तियों के संस्कार एक जैसे नहीं हो सकते ! अतः यह स्वाभाविक है कि कभी भी दो व्यक्तियों के मूल विचार एक जैसे नहीं हो सकते ! जो अधिक प्रभावशाली है वह अपने विचारों का अस्थाई प्रभाव दूसरे पर डालता है !
इस तरह से अस्थाई प्रभाव के तहत एक संगठन बनता है और उस संगठन के विकसित हो जाने के बाद क्योंकि मूल संस्कार सभी व्यक्ति के अलग-अलग हैं ! अतः उस संस्कारों के प्रभाव में कालांतर में संगठन में विवाद पैदा होता है ! जिससे संगठन बिखर जाता है !
इसीलिए जो बड़े चिंतक या विचारक होते हैं वह कभी भी कोई भी संगठन बनाने के पक्ष में नहीं होते ! वह मात्र अपना “विचार” विषयों की तरह प्रस्तुत करते हैं जिसको रुचिकर लगे वह स्वीकार करे और जिसे रुचिकर न लगे वह उन विचारों को अस्वीकार करने का अधिकार रखता है !
संस्कारों में परिवर्तन अचानक नहीं होता संस्कारों में परिवर्तन किसी श्रेष्ठ व्यक्तित्व के गुरु के सानिध्य में होता है ! जहां पर व्यक्ति को अपना संपूर्ण बौद्धिक समर्पण करना पड़ता है ! आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति “अपनी बुद्धि और दूसरे के धन” कम मानने को तैयार नहीं है !
ऐसी स्थिति में समाज के उत्थान के लिए बनाए जाने वाले बड़े-बड़े संगठन बिखर जाते हैं ! स्वस्थ और सात्विक संगठन धर्म और ईश्वर की मर्यादा में बना कर ही चलाए जा सकते हैं यह किसी भी व्यक्ति के नियंत्रण का विषय नहीं है !