शहरी शिक्षित बेरोजगारों के साथ धोका धड़ी क्यों ?

साल 2019 के आम चुनाव में रोजगार का अभाव सबसे मुख्य मुद्दा बनता नजर आ रहा है ! पिछले कुछ महीनों से बेरोजगारी की समस्या और इससे संबंधित आंकड़े लगातार आ रहे हैं ! केंद्र सरकार ने 2015 के बाद बेरोजगारी दर के आंकड़े जारी नहीं किये हैं ! जो कि जारी करना उसकी नैतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी है !

साल 2017 में स्थापित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की रिपोर्ट तैयार होने के बावजूद इसे प्रकाशित नहीं किया गया ! बिजनेस स्टैंडर्ड में इस रिपोर्ट के कुछ आंकड़ों के आने पर पता चला कि 2017-18 में बेरोजगारी दर बढ़कर 45 साल में सबसे अधिक 6 !1 प्रतिशत हो गयी है ! शहरों में यह और अधिक 7 !8 हो चुकी है ! उच्च शिक्षितों में यह दर बढ़कर 20 प्रतिशत हो गयी है ! हर पांच शिक्षित युवा में एक बेरोजगार है ! भारत के लिए यह बहुत चिंताजनक विषय है ! कम आय वाले असंगठित और अनियमित रोजगार की समस्या तो है ही !

एक तरफ जहां बेरोजगारी और असुरक्षित, असंगठित रोजगार की समस्या तीव्र रूप ले रही है, वहीं दूसरी तरफ शहरों में सार्वजनिक सेवाओं का सख्त अभाव दिखता है और पर्यावरण की स्थिति भी बिगड़ती जा रही है ! क्या इन समस्याओं का एक साथ कोई हल निकल सकता है? शहरी रोजगार गारंटी योजना के जरिये यह मुमकिन है !

करीब एक दशक पहले पूरे देश में मनरेगा लागू करने के बाद भारत ने, सीमित रूप में ही सही, रोजगार की गारंटी का सिद्धांत स्वीकार कर लिया !

पिछले कुछ सालों में मनरेगा में बजट की कमी और तीव्र केंद्रीकरण के चलते मजदूरों को लगातार लंबित भुगतान और कम मजदूरी जैसी परेशानियों को झेलना पड़ा है ! फिर भी, मनरेगा ने गरीबों की आय बढ़ाने, गावों में लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने, लैंगिक व जाति-आधारित गैरबराबरी घटाने, पर्यावरण सुधारने तथा कुआं-तालाब जैसे सामूहिक संसाधनों को सुदृढ़ करने में सफलता पायी है ! साथ ही, ग्रामसभा को सक्षम करके अति गरीब नागरिकों की लोकतांत्रिक ढांचे में उम्मीद जगाने में मनरेगा का बड़ा योगदान हो सकता है !

शहरी रोजगार गारंटी योजना कुछ हद तक मनरेगा से प्रेरित हो सकती है, लेकिन इसे शहर के अनुकूल एक अलग रूप लेना होगा ! एक ऐसी ही योजना के बारे में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय स्थित सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट ने भी प्रकाशित की है ! सुझाव यह है कि शुरुआत में यह योजना दस लाख से कम आबादी वाले छोटे शहरों में लागू की जा सकती है !

भारत में तकरीबन 4,000 ऐसे छोटे शहर हैं ! कई प्रकार के कार्य इस योजना के अंतर्गत किये जा सकते हैं ! जैसे, साधारण लोक-निर्माण कार्य यानी सड़क, फूटपाथ, पुल अदि का निर्माण और मरम्मत, शहरी पर्यावरण सुधार यानी नदी, तालाब, जंगल, बंजर जमीन और अन्य सार्वजनिक जगहों का कायाकल्प, देखभाल, सफाई, वृक्षारोपण, पार्क और अन्य हरित जगहों का निर्माण, शहरी कृषि और ऐसे कई अन्य काम इस योजना में सुझाये गये हैं !

गावों के मुकाबले शहरों में भिन्न-भिन्न हुनर वाले और उच्च शिक्षा प्राप्त लोग अधिक होते हैं, इसलिए योजना में इसका ख्याल रखा गया है ! इसके अंतर्गत दिहाड़ी मजदूरों से लेकर मिस्त्री, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, पेंटर, कारपेंटर और अन्य कई कुशल कारीगरों के लिए काम का प्रावधान है ! शहर का कोई भी नागरिक साल में सौ दिन का काम पा सकता है, जिसके लिए 500 रुपये रोज की दर सुझायी गयी है ! इसे हर साल महंगाई के हिसाब से बढ़ाया जायेगा !

उच्च शिक्षित बेरोजगार युवा सार्वजनिक अस्पताल, विद्यालय, दफ्तर आदि में अप्रेंटिस (हेल्पर या इंटर्नशिप) का काम पा सकते हैं ! साथ ही पर्यावरण और सार्वजनिक सेवाओं की स्थिति का सर्वेक्षण करना, इससे संबंधित लिखा-पढ़ी का काम और अन्य निगरानी तथा प्रशासनिक कामों में भी उनकी भागीदारी हो सकती है ! हर बेरोजगार उच्च शिक्षित युवा को साल में करीब पांच महीने यह काम मिल सकता है !

इन कामों के लिए प्रति माह 13,000 वेतन मिलेगा ! इस तरह शहरी बेरोजगार युवाओं को काम का अनुभव मिलेगा, कौशल बढ़ाने का मौका मिलेगा, योजना में भागीदारी का सर्टिफिकेट भी मिलेगा, जिसके आधार पर निजी क्षेत्र में नौकरी मिलने में भी आसानी हो सकती है !

छोटे शहरों में नगर पंचायतें और नगर पालिका आदि आर्थिक व अन्य संसाधनों के अभाव का सामना करती रहती हैं ! इस योजना के जरिये इन संस्थाओं में भी जान फूंकी जा सकती है ! शहरी रोजगार गारंटी के तहत जो लोग काम करेंगे, वे नगर पालिका के नियमित स्टाफ की जगह नहीं ले सकते और न ही रिक्त स्थान भर सकते हैं, लेकिन उनके काम में मदद जरूर कर सकते हैं ! प्रस्तावित योजना लगभग तीन से पांच करोड़ लोगों को लाभ पहुंचा सकती है ! इस योजना में कुल खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 1 !7 से 2 !7 प्रतिशत तक होगा, ऐसा अनुमान है !

पारदर्शिता और जवाबदेही को ध्यान में रखते हुए सूचना अधिकार कानून की धारा-4 का पालन होगा ! हर वार्ड में, साल में कम-से-कम चार बार सामाजिक अंकेक्षण और जन-सुनवाई के जरिये लोगों द्वारा प्रशासन और विधायकों पर निगरानी रखने का प्रस्ताव है ! इसमें शिकायत निवारण के कानून को लागू करने का प्रस्ताव भी है, जिससे आम आदमी का मनोबल बढ़ेगा और उसकी लोकतांत्रिक भागीदारी में उन्नति होगी !

राजनीति में आज जब ‘न्यूनतम आय’ का सवाल गरमाया हुआ है, यही मौका है कि शिक्षित रोजगार गारंटी के जरिये आज शिक्षित बेरोजगार आय के गारंटी की बात हो और इस रोजगार गारंटी का सिद्धांत शहरों में भी लागू किया जाये ! इसके लिये राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी विधि वत संघर्ष कर रही है ! जिससे शिक्षित बेरोजगार युवाओं के स्वाभिमान की रक्षा की जा सके !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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