विषय बहुत सामान्य सा है, लेकिन गंभीर है ! मनुष्य जानवर के मुकाबले उत्तरोत्तर क्रमबद्ध विकास करता है ! इसीलिए आज मनुष्य ने आज हर तरह के जीव-जंतु, पशु-पक्षियों पर अपना नियंत्रण बना लिया है !
इसी नियंत्रण की इच्छा से मनुष्य समूहों का निर्माण करता है और जब कोई भी व्यक्ति उनके समूह निर्माण की व्यवस्था में अवरोध पैदा करते हैं, तो मनुष्य उन्हें नष्ट कर देना चाहता है !
समूह निर्माण की व्यवस्था का एक नाम धर्म भी है और दूसरा नाम सत्ता है !
जब कोई भी विद्वान् व्यक्ति धर्म या सत्ता आधारित किसी भी समूह की व्यवस्था के लिए समस्या बन जाता है, तो धर्म का मुखिया या सत्ता का मुखिया उस व्यक्ति को नष्ट कर देना चाहता है ! इसीलिये आये दिन धार्मिक और राजनैतिक हत्याएं होती हैं !
फिर चाहे वह सुकरात हो, यीशु मसीह हो, कबीरदास हो या फिर आधुनिक दार्शनिक ओशो हो !
आखिर इन का दोष क्या है ? क्यों समाज इनके जीवित रहते हैं, इन्हें खत्म कर देना चाहता है और इन के मर जाने के बाद इनकी विचारधारा और दर्शन के आधार पर इनकी भक्ति करना शुरू कर देता है !
इसका मूल कारण एक ही है कि जिस समय यह लोग जीवित होते हैं ! उस समय धर्म और सत्ता की व्यवस्था चलाने वालों के लिए यह लोग अपनी विचारधारा के कारण समस्या बन जाते हैं, क्योंकि धर्म और सत्ता समाज के मन: स्थिति को नियंत्रित करके ही चलाई जा सकती है !
और यह विद्वान लोग समाज में जागरूकता फैलाकर धर्म और सत्ता के बंधन से व्यक्ति को मुक्त कर देना चाहते हैं, जो धर्म और सत्ता चलाने वाले समाज के ठेकेदारों को पसंद नहीं आता है !
ऐसे विद्वान दार्शनिकों की मृत्यु के उपरांत कुछ समय बाद जब समाज का बौद्धिक स्तर विकसित होता है, तब समाज के लोग इन विद्वानों की विचारधारा से प्रभावित होकर इनकी पूजा भक्ति करना आरम्भ कर देते हैं !
इसी वजह से सभी विश्व विख्यात दार्शनिक विद्वान अपनी सामान्य मृत्यु नहीं मरते हैं, बल्कि उन्हें समाज के ठेकेदारों द्वारा मारा जाता है !!