काशी भगवान शिव द्वारा स्थापित अनादि नगरी होने के बाद भी शिव भक्त रावण ने अपने संपूर्ण जीवन काल में कभी भी काशी यात्रा नहीं की !
जबकि वह प्राय: काशी के ऊपर से पुष्पक विमान द्वारा कैलाश पर्वत भगवान शिव के साक्षात दर्शन करने के लिए जाया करता था ! जबकि काशी अनेक शैव साधकों एवं शैव ग्रंथों के निर्माण का केंद्र रहा है !
इसका क्या कारण है, यह विषय अत्यंत विचारनीय है !
काशी में भगवान शिव मां भगवती के साथ वाम रूप में विराजते हैं ! काशी का बाबा विश्वनाथ मन्दिर दुनिया का इकलौता मंदिर है ! जहाँ भगवान शिव और मां भगवती के वाम रूप की पूजा होती है !
और रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त होने के साथ ही उनका पार्षद अर्थात सलाहकार भी था ! इसलिए वह भगवान शिव के दक्षिण मार्ग का उपासक था !
अर्थात रावण भगवान शिव के वाम मार्ग का उपासक नहीं था ! इसीलिए वह कभी भी अपने संपूर्ण जीवन काल में काशी नहीं गया !
यहां पर भगवान शिव का निवास श्मशान में है ! काशी अनादि तंत्र पीठ है ! जिसकी स्थापना स्वयं भगवान शिव ने वाममार्गी अघोर साधकों के लिये की थी ! इसिलये काशी में भगवान शिव के सभी वाममार्गी अघोर साधक ऊर्जा रूप में रहते हैं ! जैसे भूत, प्रेत, पिशाच, जिन्न, दैत्य, दानव, असुर आदि आदि !
ताज्जुब की बात यह है कि पूरे विश्व में काशी ही एक ऐसा नगर है, जहां भक्त भगवान शिव को आशीर्वाद देते हैं !
बाकी पूरी दुनिया में भक्त भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी आराधना करते हैं !
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है, दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं, दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं ! इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र भी कहा जाता है !
ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के समय भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों का तारण करते हैं ! अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता है ! चाहे वह कितना भी बड़ा वैष्णव भक्त क्यों न हो !
दूसरा वास्तु कारण यह भी है कि बाबा विश्वनाथ मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है ! जो वास्तु के अनुसार परम भक्त के लिए निषेध है ! क्योंकि दक्षिण मुखी मंदिर में बाबा विश्वनाथ अघोर मुखी होते है ! इसलिए यह स्थान अघोर साधकों के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है, पर रावण अघोर साधक नहीं था !
भौगोलिक दृष्टि से यह त्रिकंटक क्षेत्र था ! जहाँ उस समय मंदाकिनी नदी और गोदावरी नदी बहती थी ! इसीलिये काशी को गौदोलिया क्षेत्र भी कहा गया है ! जो भगवान शिव के त्रिशूल की तरह है !
इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं होगी । किन्तु यह गौदोलिया क्षेत्र दक्षिण मार्गी शैव साधकों के लिये श्रेष्ठ नहीं है ! इसी वास्तु विचार के कारण भी रावण कभी भी काशी यात्रा पर नहीं गया !
क्योंकि यह क्षेत्र गौदोलिया क्षेत्र है ! अत: इस क्षेत्र की यात्रा करने से भक्तों का ज्ञान विलुप्त हो जाता है ! इसीलिए आदि गुरु शंकराचार्य जो कि ज्ञानमार्गी साधक थे ! उन्होंने भी काशी यात्रा करने के बाद ज्ञान मार्ग को छोड़ दिया था और भक्ति मार्ग के समर्थक हो गये थे ! यही उनके असमय मृत्यु और पतन का कारण था !
जितने लोगों ने काशी का आश्रय लिया ! उन सभी को संसार में अपने जीवन काल में संघर्ष ही करना पड़ा ! लेकिन मृत्यु के बाद अभूतपूर्व सफलता और यश प्राप्त होता है ! यह सत्य है !
क्योंकि काशी के नगर कोतवाल भैरव जी महाराज हैं, जो कभी भी अनुशासनहीनता बर्दास्त नहीं करते हैं ! वह तुरन्त दण्ड देते हैं ! इसीलिये काशी वाममार्गी तीर्थ होने के कारण उनसे कभी भी साधकों को सकारात्मक वरदान प्राप्त नहीं हुआ है ! क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में कोई न कोई गलती कर ही देता है !
काशी भूतल पर होने पर भी पृथ्वी से संबद्ध नहीं है ! यह पृथ्वी पर यमलोक की तरह शिव का दण्ड विधान स्थल है ! यहाँ पाप करने वाले को जीवित रहते भैरव बाबा और मरणोपरांत मुक्ति से पहले आपके कर्म दण्ड भोगने के लिये अति भयंकर भैरवी यातना दण्ड देती हैं !
कभी कभी तो जीव को सहस्रों वर्षो तक रुद्र पिशाच बन कर आत्म शोधन करना पड़ता है ! फिर उसके उपरांत ही उसे मुक्ति मिलती है ! इसीलिये काशी में प्राण त्यागने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता है !
और शिव भक्त रावण मुक्ति मार्गी साधक था ! वह ब्राम्हण योनि से पतित होकर रूद्र पिशाच नहीं बनना चाहता था ! इसलिए रावण ने कभी भी काशी यात्रा नहीं की !!