सभी जानते हैं कि ह्रदय स्थान ही अनहद चक्र है ! पहले व्यक्ति बिना सिले कपड़े पहनता था ! अतः उसे हृदय स्थान पर किसी कवच को स्थापित करने में कोई असुविधा नहीं होती थी ! किन्तु पिछले डेढ़ सौ वर्षो से व्यक्ति सिले सिलाये वस्त्र पहनने लगा है ! अतः उसे ह्रदय स्थान पर रक्षा कवच आदि को धारण करने में असुविधा होती है !
इस हेतु प्राय: रक्षाबंधन के दिन व्यक्त रक्षा कवच ह्रदय स्थान के जगह अपने हाथ में धारण करने लगा ! जोकि नितांत गलत है ! क्योंकि हृदय स्थल ही अनाहत चक्र स्थल है ! जहां से समस्त शरीर की नाड़ियां सक्रिय होती हैं ! मस्तिष्क के आज्ञा चक्र बाद दूसरे नंबर अनाहत चक्र ही प्रमुख चक्र है ! अतः समस्त रक्षा कवच को सदैव अनाहत चक्र के ऊपर ही धारण करना चाहिये ! जिससे आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को वह कवच वहीं पर रोक कर नष्ट कर सके !
अनाहत चक्र में बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है ! यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है ! जिसके विकास से ईश्वरीय ऊर्जा हमारी रक्षा करती हैं और हमें यश, ज्ञान, स्वास्थ्य, सम्पर्क व धन प्रदान करती हैं !
आपको याद होगा कि कर्ण का भी प्राकृतिक रक्षा कवच हृदय स्थान पर ही स्थापित था ! इसके अतिरिक्त हृदय स्थान पर रक्षा कवच न पहनने के कारण लक्ष्मण को मेघनाथ ने मूर्छित कर दिया था ! अतः सनातन पद्धति में जितने भी रक्षा कवचों का निर्माण किया जाता है ! वह सभी हृदय स्थान अर्थात अनाहत चक्र पर ही धारण करना चाहिये ! ऐसा ही शास्त्र विधान देते हैं !
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अनाहत चक्र कैसे सिद्ध करें ? अनाहत चक्र के बारे मे विस्तार से जानिये । Yogesh Mishra