बतलाया जाता है कि ज्योतिष शास्त्रों में परम सत्य ईश्वर की वाणी संगृहीत की गई है ! हमारे ऋषि-मुनियों ने युगों तक गहन चिंतन कर इस ब्रह्मांड में उपस्थित ज्ञान के इन गूढ़ रहस्यों को संगृहीत किया और उपयोग किया था !
ज्योतिष के इन गूढ़ रहस्यों का अध्ययन कर न केवल मनुष्य मात्र लिये अपितु संपूर्ण विश्व के विकास के लिये किया जा सकता है ! यह अध्ययन चिकित्सा, निर्माण, औषधि, तकनीकि, प्रशासन, खगोल, कृषि, वनस्पति, पशु- पक्षी संरक्षण आदि आदि के क्षेत्र में किया जा सकता है !
ज्योतिष एक प्राचीनतम विज्ञान है ! जिसका उल्लेख वेदों में भी मिलता है ! ज्योतिष को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है ! प्रथम खगोल शास्त्र – जिसमें आकाश मंडल में विचरण करते हुए ग्रहों की स्थिति का शुद्ध आंकलन किया जाता है ! द्वितीय – इन आकाशीय पिण्डों का प्रभाव पृथ्वी एवं मनुष्य जाति पर कैसा पड़ता है ! इसका अनुमान लगाया जा सकता है !
खगोल शास्त्र को तो सभी वैज्ञानिक शुद्ध मानते हैं और इसकी शुद्धता को स्वीकार भी करते हैं और हो भी क्यों न आकाश में विचरण करते हुए ग्रह अद्वितीय समरूपता (एक समान गति और पथ) दर्शाते हैं ! हजारों लाखों सालों में भी उनकी गति या मार्ग में परिवर्तन नहीं आता है ! इन सभी ग्रह पिण्डों का प्रभाव हमारे व्यक्तित्व या भाग्य पर कैसा पड़ता है ? यह दर्शाने का कोई यंत्र सक्षम नहीं है !
केवल एक ज्योतिष सांख्यिकी ही हमें यह विचार करने पर मजबूर करती है कि इन सभी का प्रभाव हमारे शरीर पर कैसे पड़ता है ! क्योंकि पूर्ण ब्रह्मांड में अरबों पिण्डों में केवल एक शक्ति ‘‘गुरुत्वाकर्षण शक्ति’’ विद्यमान है ! जिससे सभी ग्रह बंधे होते हैं ! मानो एक सूत्र में पिरोये गये हैं जो निरंतर अपने केंद्र बिंदु के चारों ओर भ्रमण करते रहते हैं !
यही गुरुत्वाकर्षण शक्ति मनुष्य को भी भेदती है और हमारे जीवन को प्रभावित करती है ! हमारे ऋषियों-मुनियों ने इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति को हजारों-लाखों साल पहले पहचान लिया था और इस शक्ति का मनुष्य के जीवन पर पड़ने प्रभाव को ज्योतिष के माध्यम से प्रगट कर दिया था !
लेकिन आदिकाल में ज्ञान का आदान-प्रदान श्रुति और स्मृति के द्वारा होता था ! जो गुरु शिष्य परम्परा से एक से दूसरे को दिया जाता था ! अतः इसमें बहुत संभावनायें हैं कि एक से दूसरे तक श्रुति और स्मृति के द्वारा जाने वाले ज्ञान में त्रुटि आ गई हो !
दूसरे मध्यकाल में भारत में मुगल साम्राज्य रहा है, तदुपरांत अंग्रेजों का शासन रहा है ! इन दोनों कालों में इतिहास के अनुसार ज्योतिष के ग्रंथों को नष्ट किया गया ! इस कारण भी अब जो ज्योतिष का ज्ञान उपलब्ध है वह केवल अंश मांत्र है और नये शोधकार्य न हो पाने के कारण आज ज्योतिषीय फलादेश पूर्ण रूप से सटीक नहीं बैठते हैं !
इसमें सही ज्ञान के आभाव में इतनी अनिश्चितता आ गई है कि वैज्ञानिकों ने इसको पूर्ण रूप से ढकौसला ही मानना शुरु कर दिया है ! जिस प्रकार से चिकित्सा विज्ञान में निरंतर शोध कार्य हुये हैं और जनमानस का चिकित्सक पर विश्वास बढ़ा है ! इसी प्रकार ज्योतिष में भी निरन्तर शोध कार्य किये जाने चाहिये ! तभी जनमानस का इस पर विश्वास बढ़ेगा और इस महान् विज्ञान को मनुष्य के हित के लिए उपयोग किया जा सकेगा !
कुछ विश्वविद्यालयों में ज्योतिष पर शोध कार्य किये जा रहे हैं ! लेकिन अधिकांशत: वह केवल विभिन्न लेखकों का संकलन एवं आलोचनात्मक समीक्षा तक ही सीमित है ! कहीं भी इस प्रकार के शोधों का विवरण नहीं आता है कि विभिन्न ज्योतिषीय योगों की प्रमाणिकता पर कार्य हो रहा हो ! यहां तक कि रूचि के आभाव में ज्योतिष के आधार भूत नियमों को ज्यों का त्यों स्वीकार कर फलादेश कर दिया जाता है !
जैसे- मंगल को मेष व वृश्चिक का स्वामित्व प्राप्त है ! सप्तम भाव विवाह का भाव है और पंचम भाव संतान आदि का भाव होता है ! हमें चाहिए कि ज्योतिष के आधारभूत नियम, योग एवं उपायों पर शोध कर उनकी शुद्धता की परख कर लेनी चाहिये ! जिससे कि ज्योतिष की उपयोगिता आम जनता के लिये बनी रहे और समाज के विश्वास इस पर से न उठे !
ज्योतिष को केवल मनुष्य ही नहीं अपितु प्राकृतिक आपदाओं, कृषि व मौसम की पूर्व जानकारी के लिये भी उपयोग में लाया जा सकता है ! जिससे मनुष्य, समाज व राष्ट्र लाभान्वित हो सके !!