कुछ विश्व प्रसिद्द डाक्टरों और वैज्ञानिकों का मत है कि क रोना वायरस की सैंपल टेस्टिंग के लिये जो “स्वॉब स्टिक” नाक के अंदर डाली जा रही है ! वह ‘ब्लड ब्रेन बैरियर’ को नष्ट कर रही है !
यह बात अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मन आदि के कई वैज्ञानिक और डाक्टरों ने कही है ! वह लोग कहते हैं कि “जब तक नाक में स्वॉब डालते हुए दबाव लगाया जाता है तो इससे उत्तकों की कई परतें टूट जाती हैं ! तब तक स्वॉब ब्लड ब्रेन बैरियर को हानि पहुंचता है !”
दरअसल, दिमाग़ के आसपास इसकी सुरक्षा के लिये कई स्तर की व्यवस्था होती है ! सबसे पहले दिमाग़ खोपड़ी में सुरक्षित रहता है ! इसके बाद दिमाग़ तरल पदार्थ और झिल्लियों में कैद रहता है !
दिमाग़ के आसपास बह रही खू़न की धमनियों में ब्लड ब्रेन बैरियर मौजूद होता है ! यह कई परतों वाली कोशिकाओं से बना होता है ! इसका काम खू़न में मौजूद हानिकारक अणुओं को दिमाग़ में पहुंचने से रोकना और ऑक्सीजन समेत अन्य पोषक तत्वों को जाने देना है !
किन्तु जब स्वॉब स्टिक को नाक के अंदर डालकर ब्लड ब्रेन बैरियर तक पहुंचाया जाता है, तो वह उस ब्लड ब्रेन बैरियर के कई परतों के उत्तकों में छेद करते हुये खून की नसों तक पहुंच जाता है ! तब जाकर वह सेम्पल ले पाता है ! जिससे ब्रेन ब्लड बैरियर नष्ट हो जाता है जो भविष्य में तरह तरह के दिमागी परेशानी का कारण बनता है !
जिसे वैज्ञानिक व डाक्टर “ब्रेन ब्लड बैरियर” कहते हैं, उसी को भारतीय साधना विज्ञान में आज्ञा चक्र कहा जाता है ! जो नाक के ऊपरी सिरे पर दोनों भवों के मध्य स्थित होता है ! इसका कुण्डलनी जागरण और सनातन साधना पद्ध्यती में महत्व पूर्ण स्थान है !
भगवान शिव का तृतीय नेत्र भी यही स्थित है ! अपने जीवित रहने और साधना में सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिये इसको सुरक्षित रखना हर मनुष्य की जिम्मेदारी है ! इसीलिये पुरुष इस स्थान पर तिलक लगाते हैं और स्त्रियां इसी स्थान पर बिंदी लगाया करती है !
क्योंकि यही से व्यक्ति “खेचरी साधना” द्वारा अमृत को प्राप्त कर अमृत्व को प्राप्त करता है ! यह बहुत ही कोमल स्थल होता है ! जब बच्चा अपने मां के गर्भ में होता है तो इसी स्थान को अपनी जिह्वा से रोक लेता है ! जिससे कि नाक के माध्यम से गर्भ का पानी बच्चे के फेफड़ों तक न भर जाये और जब बच्चे का जन्म होता है तो बच्चा सर्वप्रथम इसी स्थान से अपनी जिह्वा हटा कर जोर-जोर से रोता है ! जिससे जब उसके फेफड़ों में बार बार वायु का प्रवेश होता है, तो इस स्थान के ऊतक वायु के संपर्क में आकर एक झिल्ली का निर्माण करते हैं ! जो बाद में माँ का स्तनपान करने से और कठोर होती जाती है और जीवन भर यह झिल्ली ही मानव मस्तिष्क की बाहरी इन्फेक्शन से रक्षा करती है ! जिससे मानव चिकित्सा विज्ञान की भाषा में “ब्रेन ब्लड बैरियर” कहते हैं !
जिसे खेचरी साधना के द्वारा पुनः सक्रिय कर अमृत्व को प्राप्त किया जा सकता है ! इसीलिये अष्ट चक्रों में आज्ञा चक्र को छठा चक्र भी कहते हैं !
साधना द्वारा इस आज्ञा चक्र के सक्रीय जाने पर व्यक्ति सीधे प्रकृति के पांच तत्वों को निर्देश देने योग्य हो जाता है ! इसके सक्रीय होने के कारण ही व्यक्ति सृष्टि के पंचतत्वों पर सिद्धि प्राप्त कर लेता है और फिर ईश्वर द्वारा निर्मित पञ्च तत्व साधक की आज्ञा अनुसार संचालित होते हैं !
इस आज्ञा चक्र में ही मानव मस्तिष्क के मध्य स्थित “पीनियल ग्लैंड” की जीवनी शक्ति होती है ! अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो आज्ञा चक्र की सक्रिय ऊर्जा से ही पीनियल ग्लैंड संचालित होती है और यदि एक बार किसी भी व्यक्ति ने अपनी साधना द्वारा आज्ञा चक्र के माध्यम से अपने पीनियल ग्लैंड को सक्रिय कर लिया तो उस व्यक्ति को अष्ट सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं !
परकाया प्रवेश सिद्धि, वायु गमन सिद्धि, जल गमन सिद्धि, देवलोक गमन सिद्धि, काल गमन सिद्धि, पुनः जीवन सिद्धि आदि जैसे सैकड़ों गंभीर साधनाओं और सिद्धियों का मूल स्रोत यह आज्ञा चक्र ही है !
अतः साधना या मोक्ष की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को अपने आज्ञा चक्र को नष्ट नहीं होने देना चाहिये ! जिसे आधुनिक मानव चिकित्सा विज्ञान की भाषा में “ब्रेन ब्लड बैरियर” कहते हैं !!