कलंक या बदनामी किसी भी इंसान के लिए सबसे बुरा वक्त कहा जा सकता है । कई बार जीवन में आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे होते हैं फिर भी जब कालचक्र की गति विपरीत होती है तो आप उसके निशाने पर आ ही जाते हैं। आप तो किसी के बारे में अच्छा सोचते हैं और अच्छा करते भी हैं किंतु वही इंसान आपके बारे में गलत धारणा बना लेता है | यह स्थिती भयावह है क्योंकि ऐसी स्थिति से पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है।
ऐसी स्थितियों का सर्वाधिक जनक ग्रह “शनि” है | प्रायः शनि की साढ़ेसाती या ढैया में सर्वाधिक प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलते हैं । यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली के अनुसार वह साढ़ेसाती अथवा ढैया की चपेट में है तो ऐसे में उसे प्रायः बिना वजह कलंक, बेवजह बदनामी का सामना करना ही पड़ता है।
इसके अलावा कुंडली के अन्य विभिन्न ग्रह योग भी किसी जातक को ग्रहों की दोषपूर्ण स्थिति में उस व्यक्ति को अपयश का भागी बना सकते हैं । खासतौर पर प्रेम-प्रसंग में अपयश एक ऐसा विषय है जो अक्सर दोष युक्त ग्रह स्थिति होने पर जीवन में उपस्थित हो जाता है। ऐसे जातक को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए एवं मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। कुछ खास किस्म के ज्योतिषीय योगों के बारे में जो किसी को भी प्यार में बदनामी दे सकते हैं । प्राय: शनि का दोष किसी जातक को प्रेम-प्रसंग में बदनाम करवा सकता है। अगर कुंडली के पंचम भाव में शनि स्थित हो और उसके साथ किसी अन्य क्रूर ग्रह की युति अथवा दृष्टि हो तो ऐसे जातक को प्यार में बदनाम होना पड़ सकता है।
दूसरी स्थिति राहु अथवा केतु की बुरी दशाओं में आती है जब व्यक्ति मतिभ्रम का शिकार बनता है | अपने को श्रेष्ठ समझने लगता है और परिणामस्वरूप उसके द्वारा अक्सर गलतियां ही होती हैं। राहु और केतु जब किसी क्रूर या पापी ग्रह के साथ होते हैं तो ऐसे में उनका बुरा प्रभाव अधिक भयावह रूप से सामने आता है |
ऐसे ही अपयश या बदनामी देने वाले दर्जनों ग्रह योग होते हैं | जैसे कि यदि नवमांश कुंडली में शुक्र और मंगल की युति किसी भी राशी में बने तो भी बदनामी योग बनता है | ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम – प्रणय का कारक मानते हैं | और मंगल को उत्तेजना का कारक कहा जाता हैं | जब भी प्रेम और उत्तेजना कि युति योगी तो बदनामी योग का निर्माण होगा |
यदि कुंडली में 5,7,11,12 भाव में क्रूर या दुष्ट ग्रहों की युति या द्रष्टि संबंध बने तो बदनामी योग का उपयोग व्यावसायिक कार्यो में होता है और यदि कुंडली में 5,8,12 भावेशो की युति या द्रष्टि संबंध बने तो बदनामी या लांछन का प्रबल योग भी बनता है | क्यों कि अष्टम भाव बदनामी का भाव होता हैं और यदि इस योग में 1,5,6,8,12 व् शनि की युति भी हो जाये तो जातक किसी कोर्ट केस में उलझ जाता है |
साथ ही राहू और शुक्र की युति विरोधी सेक्स के प्रति तीव्र आकर्षण और गुप्त संबंधों का निर्देश देते हैं | राहू के साथ शुक्र के जुड़े होने से जातक को अपने चरित्र में सयंम बनाये रखने के लिये स्वयं से संघर्ष करना पड़ता है |
इसी तरह अन्य आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यवसायिक, क़ानूनी आदि मामलों में बदनामी, लालछन, कलंक आदि योगों के लिये अन्य भावेश और ग्रह फलों का भी अध्ययन अनिवार्य है | बस आवश्यकता है जातक के जन्म के समय के स्पष्ट जानकारी और उसके सटीक विशलेषण की और इन आरोपों से बचने के लिये शास्त्र सम्मत सही पध्यति से उपाय कर के बचा भी जा सकता है |