मणि कोई हीरा, पन्ना, माणिक आदि पत्थर नहीं है । मणि में छिपे हुये सूक्ष्म शक्ति ही उसकी पहचान है ! जिसको परखना इतना सहज नहीं । हमारे ऋषियों, मुनियों, मनीषियों ने मणियों की इस दिव्य ऊर्जा को पहचान लिया था और उसका मनुष्य के लिए कैसे उपयोग किया जा सकता है, इसको भी उन्होंने जान समझ लिया था !
मनुष्य के भाग्य ऊर्जा एक तरंग के रूप में होती है ! यह अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग स्तर की होती है ! जिस की गणना जन्म के समय के ग्रह गोचर स्थिति से किया जाता है ! जिनके भाग्य के ऊर्जा की तरंग जितनी अधिक तीव्र और विकसित होती है ! उनका भाग्य प्रबल कहा जाता है !
और जिन व्यक्तियों में भाग्य के ऊर्जा की तरंग धीमी और अविकसित अवस्था में होती है ! उनको भाग्यहीना कहा जाता है ! प्राय: भाग्यहीना व्यक्ति द्वारा किये जाने वाला हर पुरुषार्थ असफल होता है ! इसीलिये भाग्यहीन व्यक्ति जब किसी भी कार्य में हाथ लगाता है, तो उसे उस कार्य में पार्यप्त लाभ प्राप्त नहीं होता है ! क्योंकि सभी का पुरुषार्थ भाग्य की शक्ति से ही फलित होता है ! ऐसी स्थिति में हमारे ऋषियों ने भाग्य की ऊर्जा को बढ़ाने के लिये अनेक प्रयोग बतायें हैं !
जिनमें साधना, अनुष्ठान, जप, तप आदि अनेक तरह के विधान हैं ! लेकिन कलयुग में क्योंकि मनुष्य की शारीरिक और बौद्धिक क्षमता कम होती है, अतः उस स्थिति में प्राय: साधना, अनुष्ठान, जप, तप वह परिणाम नहीं देते जिसकी मनुष्य को अपेक्षा होती है ! ऐसी स्थिति में अपने भाग्य की ऊर्जा को बढ़ाने के लिये ऋषियों द्वारा खोजे गये अन्य विकल्पों पर भी विचार करना चाहिये ! जिसमें मणि की ऊर्जाओं का सहारा लेना भी सर्वथा उचित है !
आज हम बात कर रहे हैं “पयोधि मणि” की ! यह भूगर्भ में एक लंबे काल अवधि तक पड़े रहने के उपरांत विकसित होती है और समुद्र के अंदर होने वाली हलचल से धीरे-धीरे यह समुद्र की सतह पर आ जाती है ! यह मणि क्योंकि लंबे समय तक समुद्र के गर्भ में रहती है ! अतः इसके अंदर प्राकृतिक ऊर्जा का संचार अत्यधिक मात्रा में होता है ! जब यह मणि हमारे शरीर से निरंतर संपर्क में रहती है तो हमारे शरीर के अंदर भी अनेक तरह की दिव्य ऊर्जाओं को संचालित करने लगती है !
और ऊर्जाओं को निरंतर बल जब व्यक्ति को प्राप्त होने लगता है ! तब धीरे-धीरे हमारे भाग्य की ऊर्जा भी शक्तिशाली होने लगती है और जब भाग्य की ऊर्जा व्यक्ति की शक्तिशाली हो जाती है तो व्यक्ति का भाग्य सुसुप्त अवस्था से जागृत हो सक्रीय अवस्था में परिवर्तित होने लगती है !
फिर व्यक्ति भाग्य की शक्ति से अपने पुरुषार्थ को फलीभूत कर लाभ प्राप्त करने लगता है ! इस स्थिति में आहार-विहार-विचार के सयम से व्यक्ति आश्चर्यजनक परिणामों को प्राप्त कर लेता है ! जो उसने पहले कभी भी प्राप्त नहीं किये थे ! अतः यदि कोई भी व्यक्ति अपने अंदर भाग्य के ऊर्जा की कमी महसूस करता है तो उसे “पयोधि मणि” अवश्य धारण करना चाहिये ! स्वयं भगवान विष्णु भी इसे धारण करते थे ! इसमें शक्ति अत्यधिक होती है इसलिये इसे सोच समझ कर ही धारण करना चाहिये !!