आखिर “वैचारिक आंदोलन” करेगा कौन और किसके लिये ? Yogesh Mishra

( राष्ट्र हित में गंभीर चिंतन, कमेंट जरुर करें )

आंदोलन या तो आभाव से पैदा होता है या चिंतन से ! और इन दोनों से अलग हटकर जो आंदोलन पैदा होता है ! वह आंदोलन नहीं आंदोलन का भ्रम है ! जैसे भारत के दो बड़े आंदोलन एक “राम मंदिर” के नाम पर हुआ ! जिसमें “भगवान श्री राम” तंबू में बिठा दिए गये लेकिन इस आंदोलन से हिंदुओं का कोई भला नहीं हुआ और दूसरा बड़ा आंदोलन “कालाधन और भ्रष्टाचार” को लेकर हुआ ! जिसमें एक “भगवा व्यवसायी” ने “स्वदेशी उत्पाद का व्यवसाय” शुरू कर दिया और दूसरा देश की राजधानी का मुख्यमंत्री बन गया !

लेकिन इन दोनों से ही भारत के आम आवाम को कोई लाभ नहीं हुआ ! न तो देश में “भ्रष्टाचार” ही खत्म हुआ और न ही विदेशों में पड़ा हुआ “काला धन” ही वापस आया !

देश का दुर्भाग्य है कि देश की “वर्तमान शिक्षा व्यवस्था” ने लोगों के अंदर चिंतन करने का सामर्थ्य ही समाप्त कर दिया है ! जो मुट्ठी भर लोग चिंतन करने का सामर्थ्य रखते हैं ! उनके विचार समाज में न फैल पायें, इसके लिए “इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस” और “खुले विलासी बाजार” जो तकनीकी विकास के नाम पर योजनाबद्ध तरीके से भारत के अंदर फैलाया जा रहा है !

परिणाम यह है कि भारत का “युवा वर्ग” नये-नये इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (मोबाईल, टी0वी0 आदि) में उलझा हुआ है और जिन युवाओं ने कुछ धन कमा लिया है, वह खुले विलासी बाजार में सुख और विकास ढूंढ रहा है ! यह दोनों ही स्थिति सामाजिक सकारात्मक चिंतन के लिए घातक है !

समाज में जो अभावग्रस्त तबका है वह सुनियोजित आर्थिक आभाव उत्पन्न करने वाले मकड़जाल में फंस कर अपने मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्ष कर रहा है ! जिसमें जागरुक लोग अपने परिवार को पालने के लिये भोजन, भवन, स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था में ही परेशान हैं ! जो थोड़े लापरवाह हैं उनके लिए हर गली के नुक्कड़ पर एक शराब की दुकान और मीट की व्यवस्था कर दी गई है ! “शराब और मीट” पार्टी को प्रतिष्ठा से जोड़ दिया गया है ! जिसमें समाज का अभावग्रस्त तबका अपने जरुरत की चीजों को छोड़कर “शराब और मीट” की पार्टी देना अपने संपन्न होने की निशानी समझता है !

अब चर्चा करते हैं कि समाज में सकारात्मक चिंतन करने वालों के विचारों के प्रचार-प्रसार की ! समाज में विचारों को पहुंचाने के दो माध्यम हैं ! एक मीडिया दूसरा गोष्ठी ! मीडिया की स्थिति यह है कि चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया कोई भी सत्ता की नीतियों और विदेशी विनाशकारी बड़े व्यवसायिक संस्थानों का विरोध नहीं करना चाहती ! क्योंकि इन दोनों को ही मीडिया को चलाने के लिए सत्ता से लाइसेंस और विदेशी व्यवसायिक संस्थानों से विज्ञापन के नाम पर आर्थिक मदद मिलाती है ! लाइसेंस की स्थिरता और विज्ञापन के लालच में मीडिया कभी भी इनकी गलत और विनाशकारी नीतियों के विरुद्ध सकारात्मक राष्ट्रवादी चिंतन का प्रचार-प्रसार नहीं करती हैं !

दूसरा विषय है गोष्ठियों का ! गोष्ठियों को नियंत्रित करने के लिए कानून का मकड़जाल फैला दिया गया है ! सत्ता के “एल आई यू” और “इंटेलिजेंट विभाग” निरंतर होने वाली हर गोष्ठी पर अपनी रिपोर्ट सत्ता के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचाते रहते हैं ! जहां पर हर गोष्ठी की समीक्षा की जाती है ! यदि कोई गोष्ठी भले ही राष्ट्रहित में सत्ता की नीतियों के विरुद्ध हो तो उसके न होने देने के लिए अनेक तरह के कानूनी हथकंडे अपनाए जाते हैं !

पहले तो ऐसी गोष्ठियों को करने के लिए प्रशासन की आज्ञा ही नहीं मिलती और अगर आज्ञा मिल भी जाती है तो उस गोष्ठी में क्या कहा है, क्या नहीं कहा है ! इसका निर्धारण प्रशासनिक अधिकारी करते हैं और यदि आपने उन प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा से अलग हटकर कोई अपना स्वतंत्र विचार प्रस्तुत कर दिया तो प्रशासन आपके विरुद्ध विभिन्न धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करा देता है ! जिसके लिए अदालत में स्पष्टीकरण देते-देते आपकी पूरी जवानी नष्ट हो जाती है और इस कानूनी विवाद में पड़ने के बाद समाज भी आपसे संबंध समाप्त कर देता है !

एक गंभीर प्रश्न और भी है कि जिस देश के अंदर “राजीव दीक्षित” जैसे श्रेष्ठ विचारक के विचारों को भी बेच कर खाने की प्रवृत्ति हो ! उस देश में कोई भी “वैचारिक आंदोलन” भला कैसे खड़ा हो सकता है ! आन्दोलन तो त्याग और सम्वेदनाओं से खड़ा होता है ! जहां पर सब कुछ बेच खाने की प्रवृत्ति हो और “हवस” इस स्तर की हो कि पूरी दुनिया की अकूत दौलत मेरे पास आ जाए ! इस तरह के लालची समाज में जहां लोगों में न तो राष्ट्र और समाज के प्रति कोई संवेदना ही है और न ही त्याग करने का सामर्थ्य वहाँ “वैचारिक आंदोलन” भला कैसे खड़ा होगा !

इस संवेदना विहीन, स्वार्थी, लालची समाज में राजीव दीक्षित जैसे गंभीर विचारक ने जब अपना सब कुछ दाव पर लगा कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया तो इसी जागरूकता के प्रयास से विश्व की बड़ी-बड़ी षड्यंत्रकारी और विनाशकारी व्यवसायिक संस्थायें अनावश्यक रुप से राजीव दीक्षित की दुश्मन हो गई ! जिसका परिणाम यह हुआ की राजीव दीक्षित को असमय शरीर छोड़कर जाना पड़ा !

कुछ लोगों ने उनके विचारों को संग्रहित करके समाज में फैलाने का प्रयास किया ! तो पहले तो लोगों ने बिना सोचे-समझे इस राष्ट्रवादी चिंतन का विरोध किया फिर जब इस विचारधार को सामाजिक स्वीकार मिलने लगा ! तब स्वार्थी और धूर्त लोगों ने राष्ट्रभक्ति का मुखोटा ओढ़कर राजीव दीक्षित के विचारों का व्यवसाय शुरू कर दिया और इससे उन्होंने कुछ धन और प्रतिष्ठा तो जरुर अर्जित कर ली किंतु राष्ट्रीय आन्दोलन विफल हो गया और जो लोग ईमानदारी से राजीव दीक्षित के विचारों को आगे बढ़ाने की चेष्ठा कर रहे हैं उनको इन्हीं धूर्तों के कारण न तो समाज में कोई आर्थिक मदद मिलती है और न ही सहयोग प्राप्त होता है !

इसके बाद भी आज “राजीव” जैसे त्यागी समर्पित राष्ट्रप्रेमी विचारक के विचारों को आगे बढ़ाने में जो युवा शक्ति लगी हुई है ! उसे अपने ही परिवार और समाज का विरोध झेलना पड़ता है ! अब गंभीर प्रश्न यह है कि जिस राष्ट्र और समाज के लिए देश की युवा शक्ति अपना संपूर्ण ऊर्जा व जीवन दांव पर लगाकर कार्य कर रही है, जब उसे राष्ट्र और समाज की ही स्वीकृत नहीं मिल रही है ! तो राष्ट्र में कोई “राष्ट्रवादी वैचारिक आंदोलन” कैसे खड़ा होगा ! जबकि आपके आंदोलन को ध्वस्त करने के लिए सत्ता के साथ-साथ देशी-विदेशी ताकतें भी लगी हुई हैं ! इस चिंतन पर समीक्षा व कमेंट राष्ट्रहित में जरूर कीजिए !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …