भगवान शिव का नाम लेते ही शिव के विश्वसनीय गण भैरव जी महाराज का नाम स्वत: ही जवान पर आ जाता है ! भैरव का पर्याय एक विशेष नस्ल का हिमालय का भोटिया कुत्ता माना जाता है ! जो कैलाश मानसरोवर क्षेत्र से लेकर तिब्बत, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश आदि पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है !
यह नस्ल सामान्यतया मैदानी क्षेत्र में नहीं होती है और अति शिकार के कारण यह नश्ल अब पर्वतीय क्षेत्रों से भी विलुप्त होने के कगार पर है ! कहीं कहीं इन्हें पढ़े लिखे लोग “हिमालयी मास्टिफ” भी कहते हैं !
आज भी आप हिमालय के लगभग सभी शिवालय के आसपास इस विशेष नस्ल के भोटिया कुत्ते को देख सकते हैं ! शुद्ध नस्ल का यह भोटिया कुत्ता तो बहुत बर्फीले क्षेत्र में मिलेगा ! किन्तु जहां तक मनुष्य की सामान्य पहुंच है वहां तक भोटिया कुत्ते की मिक्स नश्ल मिल ही जाती है !
इस कुत्ते की खासियत यह है कि यह अनादि कुत्ता है ! इसके उदगम का कोई पता नहीं है ! यह शिव भक्तों को बहुत जल्दी पहचान लेता है ! रामायण काल हो या महाभारत काल हर जगह हर काल के धर्म ग्रंथों में इस काले रंग के भोटिया कुत्ते का वर्णन आता है !
रावण जब भी कैलाश पर्वत जाता था तो भगवान शिव के गण भैरव के आसपास रावण ने अनेक बार इस विशेष नस्ल के भोटिया कुत्ते को देखा है ! इसी तरह महाभारत में भी वर्णन आता है कि जब युधिष्ठिर की पत्नी और चारों भाई मर गये तो युधिष्ठिर को स्वर्गारोहण तक ले जाने वाला जीव यह भोटिया कुत्ता ही था !
मैंने तो अपने निजी अनुभव में भी कई बार देखा है कि जब मैं किसी बहुत शांत जगह पर शिवाला दर्शन करने के लिये जाता हूं तो मुझे प्राय: यह भोटिया कुत्ते नजर आ जाते हैं ! जो सामान्यतया वैष्णव मंदिरों के आस पास नहीं दिखते हैं !
यह भोटिया कुत्ते दिन में स्वभाव से बहुत शांत होते हैं ! ज्यादा हस्तक्षेप न तो करते हैं और न ही पसंद करते हैं किंतु शाम ढलते ही इनका खूंखार रूप दिखाई देने लगता है ! फिर तो यदि बाघ या तेंदुआ भी आ जाये तो यह अकेले उससे लड़ने का साहस रखते हैं और यदि संयोग से दो भोटिया कुत्ते एक साथ हों तो बाघ या तेंदुआ का मरना सुनिश्चित है !
ऐसी अनेक घटनाएं प्राय: पहाड़ों पर देखने को मिलती हैं ! इस भोटिया कुत्ते को भगवान शिव के गण भैरव जी ने शैवों की वैष्णव आक्रांता से रक्षा के लिये विशेष रूप से तैय्यार किया था !
इसीलिए शैव आज भी इन पर सबसे अधिक विश्वास करते हैं और इसके विपरीत वैष्णव इन से उतनी ही नफरत करते हैं क्योंकि यह वैष्णव आक्रांता को उनके उद्देश्य में सफल नहीं होने देते थे !!