हमारे बहुत से साथी आज भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना चाहते हैं, लेकिन अपने अपने तरीके से ! कोई गोबर और गोमूत्र बेचकर भारत को विश्वगुरु बनाना चाहता है, तो कोई वेद, पुराण, उपनिषद आदि का ज्ञान देकर भारत को विश्वगुरु बनाना चाहता है !
जो पढ़ा लिखा वर्ग है, वह तकनीकी और विधि की शिक्षा देकर विश्वगुरु बनाना चाहता है, तो कोई पूरे विश्व को मानवता या अर्थशास्त्र का पाठ पढ़ाकर भारत को विश्वगुरु बनाना चाहता है !
लेकिन यह भारत को विश्व गुरु बनाने की इच्छा रखने वाले अपने इस उद्देश्य में पूरा प्रयास कर देने के बाद भी सफल नहीं हो पा रहे हैं !
तो क्या यह मान लिया जाये कि भगवान की इच्छा ही नहीं है कि भारत पुनः विश्व गुरु बने या दूसरे शब्दों में कहा जाये कि भगवान के जीवित रहते क्या भारत विश्व गुरु नहीं बन सकता ! इसलिए क्या चीन और रूस की तरह भगवान की हत्या अब जरूरी है !
इसका सीधा सा उत्तर है कि राजनीतिज्ञों ने तो भगवान की हत्या करके देश की सत्ता संभाल ली ! अर्थशास्त्रियों और उद्योगपति ने भी भगवान की हत्या करके देश की अर्थव्यवस्था संभाल ली और मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि में तो रोज घंटा घड़ियाल बजाकर भगवान की हत्या की ही जा रही है !
ऐसी स्थिति में जब भगवान की हत्या करने में इतने लोग पूरी तन्मयता से लगे हुये हैं, तब भी भारत विश्व गुरु नहीं बन पा रहा है तो जरूर इसके पीछे कोई और महत्वपूर्ण कारण होगा !
विस्तार से चिंतन करने पर यह पता चलता है कि हमारे भारत को परम्परागत तरीके से विश्व गुरु बनाने की कामना ही भारत के सर्वनाश का कारण है क्योंकि जिन आधार और ज्ञान पर हम भारत को विश्वगुरु बनाना चाहते हैं आज के विकसित दौर वह सब बुद्धि विलास से अधिक और कुछ नहीं है !
अगर भारत को यदि पुनः विश्वगुरु बनाना ही है तो हमें सबसे पहले भारत की नहीं विश्व की नब्ज़ को समझना होगा ! आखिर विश्व आज भारत से चाहता क्या है ?
इस पर किसी भी भारतीय ने अभी तक कोई शोध नहीं किया है बल्कि विश्व के सभी विकसित देशों को घृणा के भाव से ही देखकर उनका अपने अंतर्मन में उपहास ही किया है !
जैसे एक शिक्षक बालक के मन को समझे बिना अच्छा शिक्षक नहीं बन सकता ! ठीक उसी तरह विश्व के मन को समझे बिना भारत कभी भी विश्व गुरु नहीं बन सकता है !
यदि हमने विश्व के नब्ज़ को नहीं समझा तो भारत के सारे धर्म ग्रंथ मात्र पुरानी पुस्तकों से अधिक और कुछ नहीं है ! इसलिए मात्र इन धर्म ग्रंथों के दम पर भारत को विश्व गुरु बनाने की कल्पना नितांत अव्यावहारिक है !
इसलिए भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए न जातिगत आरक्षण की आवश्यकता है, न ही धर्म आधारित व्यवस्था के प्रचार-प्रसार की जरूरत है ! न किसी धर्म ग्रंथ की जरुरत है और न ही किसी आधुनिक अर्थशास्त्र की !
बल्कि भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए सबसे पहले हमें विश्व की मानसिकता को समझना होगा ! इसके बाद ही भारत धर्मगुरु बन पायेगा !!