ईश्वर की प्राप्ति के लिये किसी भक्ति की आवश्यकता नहीं है : Yogesh Mishra

वैष्णव ढोंगीयों ने ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम भगवान की भक्ति को बतलाया है ! इसीलिए वैष्णव लोग ईश्वर की प्राप्ति के लिए भगवान भजन पर बहुत दबाव बनाते हैं ! जबकि सच्चाई यह है कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए किसी भक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है !

इसके सैकड़ों प्रमाण सनातन धर्म के विभिन्न ग्रन्थों “उपनिषद” आदि में मिलते हैं ! इसी संदर्भ में आज हम मृत्यु के स्वामी यमराज और नचिकेता के संवाद का उदाहरण लेते हैं !

इस प्रसंग का वर्णन हिन्दू धर्म ग्रन्थ “कठोपनिषद” में मिलता है ! इसके अनुसार नचिकेता वाजश्रवस (उद्दालक) ऋषि के पुत्र थे ! एक बार उन्होंने विश्वजीत नामक ऐसा यज्ञ किया, जिसमें सब कुछ दान कर दिया जाता है ! दान के वक्त नचिकेता यह देखकर बेचैन हुआ कि उनके पिता स्वस्थ गायों के बजाये कमजोर, बीमार गाएं दान कर रहें हैं !

नचिकेता धार्मिक प्रवृत्ति का और बुद्धिमान था, वह तुरंत समझ गया कि मोह के कारण ही पिता ऐसा कर रहे हैं !

पिता के मोह को दूर करने के लिए नचिकेता ने पिता से सवाल किया कि वह अपने पुत्र को किसे दान देंगे ! उद्दालक ऋषि ने इस सवाल को टाला, लेकिन नचिकेता ने फिर यही प्रश्न पूछा !

बार-बार यही पूछने पर ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने कह दिया कि तुझे मृत्यु (यमराज) को दान करुंगा ! पिता के वाक्य से नचिकेता को दु:ख हुआ, लेकिन सत्य की रक्षा के लिए नचिकेता ने मृत्यु को दान करने का संकल्प भी पिता से पूरा करवा लिया ! तब नचिकेता यमराज को खोजते हुए यमलोक पहुंच गया !

यम के दरवाजे पर पहुंचने पर नचिकेता को पता चला कि यमराज वहां नहीं है, फिर भी उसने हार नहीं मानी और तीन दिन तक वहीं पर बिना खाए-पिए बैठा रहा ! यम ने लौटने पर द्वारपाल से नचिकेता के बारे में जाना तो बालक की पितृभक्ति और कठोर संकल्प से वह बहुत खुश हुए ! यमराज ने नचिकेता की पिता की आज्ञा के पालन और तीन दिन तक कठोर प्रण करने के लिए तीन वर मांगने के लिए कहा !

तब नचिकेता ने पहला वर पिता का स्नेह मांगा ! दूसरा अग्नि विद्या जानने के बारे में था ! तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था ! यम ने आखिरी वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया, लेकिन नचिकेता को मृत्यु का रहस्य जानना था !

अत: नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान जानते हुए नकार दिया ! अंत में विवश होकर यमराज ने जन्म-मृत्यु से जुड़े रहस्य बताईये !

नचिकेता का पहला प्रश्न था कि किस तरह शरीर से होता है ब्रह्म का ज्ञान व दर्शन?

मनुष्य शरीर दो आंखं, दो कान, दो नाक के छिद्र, एक मुंह, ब्रह्मरन्ध्र, नाभि, गुदा और शिश्न के रूप में 11 दरवाजों वाले नगर की तरह है, जो ब्रह्म की नगरी ही है ! वह मनुष्य के हृदय में रहते हैं ! इस रहस्य को समझकर जो मनुष्य ध्यान और चिंतन करता है, उसे किसी प्रकार का दुख नहीं होता है ! ऐसा ध्यान और चिंतन करने वाले लोग मृत्यु के बाद जन्म-मृत्यु के बंधन से भी मुक्त हो जाता है !

नचिकेता का दूसरा प्रश्न था कि आत्मा का स्वरूप क्या है ?

जो लोग आत्मा को मारने वाला या मरने वाला मानते हैं, वह असल में आत्मा को नहीं जानते और भटके हुए हैं ! उनकी बातों को नजरअंदाज करना चाहिए, क्योंकि आत्मा न मरती है, न किसी को मार सकती है !

यमदेव के अनुसार शरीर के नाश होने के साथ जीवात्मा का नाश नहीं होता ! आत्मा का भोग-विलास, नाशवान, अनित्य और जड़ शरीर से इसका कोई लेना-देना नहीं है ! यह अनन्त, अनादि और दोष रहित है ! इसका कोई कारण है, न कोई कार्य यानी इसका न जन्म होता है, न मरती है !

यदि कोई व्यक्ति आत्मा-परमात्मा के ज्ञान को नहीं जानता है तो उसे कैसे फल भोगना पड़ते हैं?

जिस तरह बारिश का पानी एक ही होता है, लेकिन ऊंचे पहाड़ों पर बरसने से वह एक जगह नहीं रुकता और नीचे की ओर बहता है, कई प्रकार के रंग-रूप और गंध में बदलता है ! उसी प्रकार एक ही परमात्मा से जन्म लेने वाले देव, असुर और मनुष्य भी भगवान को अलग-अलग मानते हैं और अलग मानकर ही पूजा करते हैं ! बारिश के जल की तरह ही सुर-असुर कई योनियों में भटकते रहते हैं !

नचिकेता का तीसरा प्रश्न था कि परमात्मा का वास हृदय में क्यों माना जाता है ?

मनुष्य का हृदय ब्रह्म को पाने का स्थान माना जाता है ! यमदेव ने बताया मनुष्य ही परमात्मा को पाने का अधिकारी माना गया है ! उसका हृदय अंगूठे से बंद मुट्ठी की माप का होता है ! जिसका सीधा सम्बन्ध ब्रह्मान्द्र से होता है ! जिसे ह्रदय से ही गति मिलती है !
इसलिए अपने हृदय में भगवान का वास माना जाता है ! (किसी भी बाह्य मूर्ति या कर्मकाण्ड में नहीं) इस तरह हमारे हृदय में ब्रह्म विराजमान हैं ! इसलिए दूसरों की बुराई या घृणा से दूर रहना चाहिए !

ब्रह्म प्राकृतिक गुणों से एकदम अलग हैं, वह स्वयं प्रकट होने वाले देवता हैं ! इनका नाम वसु है ! वह ही मेहमान बनकर हमारे घरों में आते हैं ! यज्ञ में पवित्र अग्रि और उसमें आहुति देने वाले भी वसु देवता ही होते हैं ! इसी तरह सभी मनुष्यों, श्रेष्ठ देवताओं, पितरों, आकाश और सत्य में स्थित होते हैं ! जल में मछली हो या शंख, पृथ्वी पर पेड़-पौधे, अंकुर, अनाज, औषधि हो या पर्वतों में नदी, झरने और यज्ञ फल के तौर पर भी ब्रह्म ही प्रकट होते हैं ! इस प्रकार ब्रह्म प्रत्यक्ष देव हैं !

आत्मा निकलने के बाद शरीर में क्या रह जाता है?

जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो उसके साथ प्राण और इन्द्रिय ज्ञान भी निकल जाता है ! मृत शरीर में क्या बाकी रहता है, यह नजर तो कुछ नहीं आता, लेकिन वह परब्रह्म उस शरीर में रह जाता है, जो हर चेतन और जड़ प्राणी में विद्यमान हैं !

मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों और कौन सी योनियां मिलती हैं ?

यमदेव के अनुसार अच्छे और बुरे कामों और शास्त्र, गुरु, संगति, शिक्षा और व्यापार के माध्यम से देखी-सुनी बातों के आधार पर पाप-पुण्य होते हैं !

इनके आधार पर ही आत्मा मनुष्य या पशु के रूप में नया जन्म प्राप्त करती है ! जो लोग बहुत ज्यादा पाप करते हैं, वह मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त अन्य योनियों में जन्म पाते हैं ! अन्य योनियां जैसे पेड़-पौध, पहाड़, तिनके आदि !

क्या है आत्मज्ञान और परमात्मा का स्वरूप?
मृत्यु से जुड़े रहस्यों को जानने की शुरुआत बालक नचिकेता ने यमदेव से धर्म-अधर्म से संबंध रहित, कार्य-कारण रूप प्रकृति, भूत, भविष्य और वर्तमान से परे परमात्म तत्व के बारे में जिज्ञासा कर की !

यमदेव ने नचिकेता को ‘ऊँ’ को प्रतीक रूप में परब्रह्म का स्वरूप बताया ! उन्होंने बताया कि अविनाशी प्रणव यदि आत्म केन्द्रित होकर अनादि ऊंकार का स्मरण करे तो उसे परमात्मा का स्वरूप स्वत: प्राप्त होता है !

ऊंकार ही परमात्मा को पाने के सभी आश्रयों में सबसे सर्वश्रेष्ठ और अंतिम माध्यम है ! अत: इस तरह सिद्ध होता है कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए किसी भी भजन, पूजन, व्रत, अनुष्ठान, कर्मकांड आदि की कोई आवश्यकता नहीं है ! यह सभी कुछ वाह्य आडंबर मात्र हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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