रावण की नाभि का रहस्य | क्या है इसका वास्तविक अर्थ | Yogesh Mishra

बताया जाता है कि रावण की नाभि में अमृत था ! जिस वजह से उसे कोई भी व्यक्ति युद्ध में परास्त नहीं कर सकता था ! जब भगवान श्रीराम ने रावण के साथ युद्ध किया तब राम ने जब उसके सिर व भुजा पर वार किया तब अनेक बार उसका सिर बार-बार कट कर नीचे गिरता था और वापस लग जाता था ! उसी तरह उसकी भुजा बार-बार काट कर नीचे गिर जाती थी और वापस लग जाती थी !

जिस पर विभीषण ने राम को यह सलाह दी कि जब तक राम रावण की नाभि पर वार नहीं करेंगे ! तब तक रावण को मारना असंभव है क्योंकि रावण के नाभि में अमृत है और उस अमृत के सूखे बिना रावण नहीं मर सकता है ! तब विभीषण की राय पर राम ने रावण की नाभि पर वार किया ! जिससे नाभि में स्थित अमृत सूख गया और रावण की मृत्यु हो गई !

इस कथा की सत्यता का विश्लेषण आज करेंगे ! जैसा कि पूर्व में कई लिखो में मैं बतला चुका हूं कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित “रामचरितमानस” एक नाटय ग्रन्थ है और यदि राम रावण के विषय में सत्य को जानना है तो आपको प्रमाणिक ग्रंथ के रूप में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित “रामायण” को ही प्रमाणित मानना चाहिए !

दृष्टांत है कि जब रावण घायल हो गया तब रावण के राजवैध आयुर्वेदाचार्य “सुषेण” ने रावण की नाभि में आयुर्वेदिक पद्धति से भगवान शिव के द्वारा दिये गये यंत्र से निर्मित “अमृत” नामक औषधि की स्थापना की क्योंकि हमारे संपूर्ण शरीर का केंद्र नाभि है ! अतः जब व्यक्ति का शरीर औषधि लेने में अक्षम होता है तब प्राचीन आयुर्वेद पध्यति में वैध नाभि के माध्यम से व्यक्ति के शरीर में औषधि का प्रवेश करवाया करते थे ! जैसे आजकल नसों में इंजेक्शन द्वारा औषधि का प्रवेश करवाया जाता है !

रामायण में संस्कृत श्लोक में वर्णित है कि-

मातलि वचः श्रुत्वा रामः श्रुत्वा रामः शीघ्रपराकमः।
पावकास्त्रेण संयोज्य नाभिंविव्याध राक्षसः चक्रव्यूह ।।

वर्णन आता है कि राम-रावण का युद्ध देखकर देव-गन्धर्व-किन्नरों ने कहा कि यह युद्ध समान नहीं है क्योंकि रावण के पास तो रथ है और राम पैदल युद्ध कर रहे हैं । अत: इन्द्र ने अपना रथ राम के लिए भेजा, जो इन्द्र के कवच, विशाल धनुष, बाण तथा शक्ति आदि से सुसज्जित था । जिसे इन्द्र का सबसे योग्य सारथी मिताली चला रहा था !

युद्ध के समय विनीत भाव से हाथ जोड़कर मातलि ने रामचंद्र से कहा कि वे रथ में स्थित दिव्य वस्तुओं को धारण व प्रयोग करें और जैसे महान इन्द्र दानवों का संहार करने के लिये करते हैं और रावण का वध करें । तब राम ने इंद्र के रथ तथा उसमें सुसज्जित दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग रावण के विरुद्ध युद्ध में किया !

क्योंकि रावण युद्ध कौशल के तहत नौ योद्धाओं से सुरक्षित एक चक्रव्यूह के केंद्र में था ! जिसमें रावण को आठ योद्धा घेरे हुये थे तथा एक योद्धा त्वरित क्षतिपूर्ति चक्रव्यूह के पीछे चलता था तथा चक्रव्यूह के बाह्य खण्ड में 21 योद्धाओं का जत्था गोलाकार चला करता था ! इस चक्रव्यूह रचना को चंद्राकर चक्रव्यूह रचना कहा गया है !

अतः राम के द्वारा प्रयोग किये गये इन्द्र के अस्त्र-शस्त्र जब रावण के चक्रव्यूह के किसी एक योद्धा को मार देते थे ! तो उस स्थान पर तत्काल बाह्य खण्ड का दूसरा योद्धा आगे बढ़कर उस चक्रव्यूह की क्षति की पूर्ति करता था ! इसी को कहा गया है कि राम रावण के जब सिर या भुजा को काट कर गिरा देते थे ! तो वह तत्काल पुनः जोड़ जाया करती थी अर्थात उस चक्रव्यूह में जब कोई योद्धा मारा जाता था तो दूसरा योद्धा रावण की रक्षार्थ तत्काल उस चक्रव्यूह में मरे हुए योद्धा के स्थान को ग्रहण कर लेता था !

जिससे राम युद्ध में काफी हतोत्साहित हो गए थे ! तब राम की विचलित मनोदशा को देख कर इंद्र के सारथी मिताली ने राम को कहा कि रथ में सुसज्जित इन दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से रावण के चक्रव्यूह के योद्धाओं को मारने के स्थान पर “पावक अस्त्र” से चक्रव्यूह के केंद्र में अर्थात नाभि स्थल पर जहाँ रावण स्वयं है ! उस स्थल पर वार कीजिए तब रावण का वध किया जाना संभव हो पाएगा अन्यथा नहीं !

क्योंकि रावण के चक्रव्यूह के योद्धाओं को आप मारते रहेंगे और उनके स्थान पर नए योद्धा स्थान लेते रहेंगे और यह युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा ! इंद्र के सारथी मिताली की सलाह पर राम ने इंद्र के रथ में सुसज्जित दिव्य “पावक अस्त्र” से रावण के चक्रव्यूह के नाभि स्थल अर्थात केंद्र पर किया ! जिससे रावण की चक्रव्यूह की संरचना टूट गई और रावण मारा गया ! युद्ध-समाप्ति के बाद राम ने मातलि को आज्ञा दी कि वह इन्द्र का रथ आदि लेकर वापस इन्द्र के पास लौट जाय !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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