वैष्णव आक्रांताओं द्वारा भारत की मूल प्रजाति शैव को पूरी तरह से वैष्णव बनाने के हजारों साल के प्रयास के बाद भी आज भारत में मूल शैव प्रजाति के लोग पाये जाते हैं !
यह लोग प्राकृतिक कच्चे मकानों में रहते हैं ! आज भी शैव जीवन शैली का ही भोजन करते हैं और शैव तप तंत्र आदि में समय देना इनकी अधिकतम प्राथमिकता है !
आज भी उत्तराखंड में कई ऐसी प्रजातियां हैं, जो वैष्णव संस्कृति से बहुत दूर पेशेवर रूप में शैव संस्कृतियों के गायन-वादन का ही काम किया करती हैं और हिमालय के जड़ीबुटियों का व्यापार करते हैं ! यही इनके जीविकोपार्जन का माध्यम है !
इन सभी प्रजातियों को गन्धर्व या उनके गोत्रों के नाम से भी जाना जाता है ! यह प्रजाति सर्वाधिक हिमालय के गन्धर्व क्षेत्र में आज भी रहती है ! शैव संस्कृतिक संरक्षण में इन जनजातियों का अपना विशिष्ट योगदान है !
इन्हीं में से एक जाति है “बादी” ! यह मुख्यतः उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल में रहने वाली पेशेवर गायन-वादन करने वाली जाति है ! इन्हें बादी या बेड़ा के नामों से भी जाना जाता है !
यह जाति खुद को भगवान शिव का वंशज बतलाती है ! इन्हें हिमालय का गन्धर्व भी कहा जाता है ! यह लोग अपने सिर पर शंकर की तरह की जटाएं रखते हैं और सिर के ऊपरी हिस्से पर जूड़े में बांधते हैं !
इनका मानना है कि संगीत की शिक्षा स्वयं भगवान महादेव ने इनके पूर्वजों को दी थी ! उन्ही के आदेश पर इनके पूर्वजों ने रावण के सहयोग से सामवेद की रचना कर उसका प्रचार प्रसार भी किया था ! इसी वजह से इस क्षेत्र में शिव अनुष्ठानों के अवसर पर बादियों और बादिनों द्वारा शिव-पार्वती के रूप में नृत्य गायन पूजा आदि की जाती है !
ये लोग मात्र पशुपालन और गायन नृत्य आदि करते हैं ! अन्य किसी भी तरह का व्यवसाय नहीं करते हैं ! इनके जीवकोपार्जन का माध्यम लोकगीत, लोकनाट्य,नृत्य आदि करके लोगों का मनोरंजन करना और लोककल्याण के लिए ‘लांग’ तथा बेड़ावर्त जैसे साहसिक अनुष्ठान आदि जीवन को जोखिम में डाल कर संपन्न करना है !
यह लोग जन्मजात और अनुवांशिक रूप से गीत और कविता की सहज प्रतिभा रखते हैं ! यह लोग सामाजिक एवं ऐतिहासिक घटनाक्रमों को गीत-संगीत में पिरो देने की भी अद्भुत प्रतिभा रखते हैं !
यह लोग प्रतिभाशाली आशुकवि होते हैं ! जो समाज के अच्छे-बुरे सामाजिक घटनाक्रमों पर पैनी नजर रखते हैं और ढोलक की थाप और घुंघरुओं की झंकार में इनका रोचक प्रस्तुतीकरण कर देते हैं !
बादीनें नृत्यकला में प्रवीण होती हैं ! त्यौहार, उत्सवों से लेकर शादी-ब्याह के मौके पर यह लोग अपने नृत्य से उल्लास का वातावरण बना देती हैं ! यह सौन्दर्य की धनी कलाप्रेमी हुआ करती हैं ! संगीत इनका व्यवसाय ही नहीं जीवन है ! यही इनकी योग साधना और जीवन का सारतत्व है ! इस जीवन शैली के पुरुष लोग लांग एवं बेड़ावर्त जैसे खतरनाक शैव अनुष्ठान भी करते हैं और अपना जीवन तक दांव पर लगा देते हैं ! यही साहस प्रदर्शन इनके वैवाहिक जीवन का आधार होता है !!