मंत्र की उत्पत्ति विश्वास से और सतत मनन से हुई है ! आदि काल में मंत्र और धर्म में बड़ा संबंध था ! प्रार्थना को एक प्रकार का मंत्र माना जाता था ! मनुष्य का ऐसा विश्वास था कि प्रार्थना के उच्चारण से कार्यसिद्धि हो सकती है ! इसलिये बहुत से लोग प्रार्थना को मंत्र समझते थे !
जब मनुष्य पर कोई आकस्मिक विपत्ति आती थी तो वह समझता था कि इसका कारण कोई अदृश्य शक्ति है ! वृक्ष का टूटना, मकान का गिर जाना, आकस्मिक रोग हो जाना और अन्य ऐसी घटनाओं का कारण कोई भूत या पिशाच माना जाता था और इसकी शांति के लिये मंत्र का प्रयोग किया जाता था !
जब भी आकस्मिक संकट बार-बार नहीं आते थे ! तो लोग समझते थे कि इसका समाधान सिद्ध मन्त्रों से होगा ! प्राचीन काल में वैद्य औषधि और मंत्र दोनों का प्रयोग साथ-साथ होता था ! ओषधि को अभिमंत्रित किया जाता था और विश्वास था कि ऐसा करने से वह अधिक प्रभावोत्पादक हो जाती है ! कुछ मंत्र प्रयोगकर्ता (ओझा) केवल मंत्र के द्वारा ही रोगों का उपचार करते थे ! यह इनका व्यवसाय था !
मंत्र का प्रयोग सारे संसार में किया जाता था और मूलत: इसकी क्रियाएँ सर्वत्र एक जैसी ही थीं ! विज्ञान युग के आरंभ से पहले विविध रोग विविध प्रकार के राक्षस या पिशाच माने जाते थे ! अत: पिशाचों का शमन, निवारण और उच्चाटन किया जाता था ! मंत्र में प्रधानता तो शब्दों की ही थी परंतु शब्दों के साथ क्रियायें भी लगी हुई थीं !
मंत्रोच्चारण करते समय ओझा या वैद्य हाथ से, अंगुलियों से, नेत्र से और मुख से विधि क्रियायें करता था ! इन क्रियाओं में त्रिशूल, झाड़ू, कटार, वृक्षविशेष की टहनियों और सूप तथा कलश आदि का भी प्रयोग किया जाता था !
रोग की एक छोटी सी प्रतिमा बनाई जाती थी और उस पर भी मत्रों का प्रयोग किया जाता था ! इसी प्रकार शत्रु की प्रतिमा बनाई जाती थी और उस पर मारण, उच्चाटन आदि प्रयोग किये जाते थे ! ऐसा विश्वास था कि ज्यों-ज्यों ऐसी प्रतिमा पर मंत्र प्रयोग होता है त्यों-त्यों शत्रु के शरीर पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता जाता है और शत्रु नष्ट हो जाता है !
पीपल या वट वृक्ष के पत्तों पर कुछ मंत्र लिखकर उनके मणि या ताबीज बनाये जाते थे ! जिन्हें कलाई या कंठ में बाँधने से रोगनिवारण होता, भूत प्रेत से रक्षा होती और शत्रु वश में होता था ! यह विधियाँ कुछ हद तक इस समय भी प्रचलित हैं ! संग्राम के समय दुंदुभी और ध्वजा को भी अभिमंत्रित किया जाता था और ऐसा विश्वास था कि ऐसा करने से विजय प्राप्त होती है !
ऐसा माना जाता था कि वृक्षों में, चतुष्पथों पर, नदियों में, तालाबों में और कितने ही कुओं में तथा सूने मकानों में ऐसे प्राणी निवास करते हैं जो मनुष्य को दु:ख या सुख पहुँचाया करते हैं और अनेक विषम स्थितियाँ उनके कोप के कारण ही उत्पन्न हो जाया करती हैं ! इनका शमन करने के लिये विशेष प्रकार के मंत्रों और विविधि क्रियाओं का उपयोग किया जाता था और यह माना जाता था कि इससे संतुष्ट होकर ये प्राणी व्यक्तिविशेष को तंग नहीं करते !
शाक्त देव और देवियाँ कई प्रकार की विपत्तियों के कारण समझे जाते थे ! यह भी माना जाता था कि भूत, पिशाच और डाकिनी आदि का उच्चाटन शाक्त देवों के अनुग्रह से हो सकता है ! इसलिये ऐसे देवों का मंत्रों के द्वारा आह्वान किया जाता था ! इनकी बलि दी जाती थी और जागरण किये जाते थे !
लेकिन आधुनिक इन सब का कोई महत्व नहीं रह गया है ! अब सुनसान स्थान पर वृक्ष हैं ही कितने, चतुष्पथों पर भरी भीड़, नदियों तालाबों में कोलाहल और कुयें बचे ही कितने हैं ! सूने मकानों में अब माफियाओं का कब्ज़ा है ! ऐसी स्थिति में अब मंत्र शक्ति द्वारा उपचार करने की बात का लोग उपहास करते हैं !
किंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है अनादि काल से प्रयोग किये जाने वाले मंत्रों में शक्ति नहीं थी ! बल्कि सत्य यह है कि गत 300 वर्षों से जो अति उद्योगीकरण बढ़ा है ! उसके परिणाम स्वरूप वातावरण में जो अशांत व विद्युत तरंगों का प्रयोग शुरु हुआ है ! यह जीव आत्माओं के सूक्ष्म शरीर के लिये अत्यंत कष्टकारी है ! इसलिये वह आत्मायें अपने प्रिय जनों से अलग दूर पहाड़ में जाकर निवास करती हैं ! इसलिये अब हमें उनका एहसास नहीं होता है !
लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ऐसा कहीं कुछ नहीं है ! आज भी बहुत से ऐसे स्थान हैं ! जहां पर इन ऊर्जा का आभास किया जा सकता है और वहां पर विज्ञान आज भी मौन है ! अभी तक मुझे ऐसा कोई भी वैज्ञानिक, डॉक्टर या इंजीनियर नहीं मिला जो व्यक्तिगत चर्चा के दौरान देव या पिशाच ऊर्जाओं को न मानता हो !
खासतौर पर किसका प्रयोग आजकल मेडिकल साइंस में मरीजों के शीघ्र लाभ के लिये किया जा रहा है ! उसी का परिणाम है कि विश्व के लगभग हर विकसित देश में जितने भी बड़े अस्पताल हैं ! उन सभी में गायत्री मंत्र महामृत्युंजय मंत्र जैसे प्रभावशाली मंत्रों का प्रयोग निरंतर धीमी स्वर में वाद्य यंत्रों द्वारा किया जा रहा है ! शास्त्रीय संगीत का भी प्रयोग रोगों की चिकित्सा में बहुत ही चमत्कारी परिणाम दे रहे हैं !
अत: प्राचीन काल में जब समाज में इतना प्रदूषण और कोलाहल नहीं था ! तब इस तरह की दिव्य ऊर्जाओं से व्यक्ति का रोज वास्ता पड़ता था ! इसलिये व्यक्ति ने उनके रोकथाम और नियंत्रण की व्यवस्था मंत्रों के माध्यम से कर रखी थी ! लेकिन मेरे निजी अनुभव में इस तरह के मंत्र पूरी तरह से प्रभावशाली होते हैं ! शर्त एक ही है कि मंत्रों का प्रयोग करने वाला व्यक्ति वह इसका जानकार हो ! उसने साधना की हो और वह व्यक्ति हृदय से किसी अन्य की मदद की इच्छा रखता हो ! तभी यह मन्त्र आज भी काम करते हैं ! यह मेरा अनुभव है ! मैं आये दिन इनके चमत्कार देखता हूँ !!