जानिए क्यों भारतीय वैदिक पंचाग राष्ट्रीय कैलेंडर से उचित है ? Yogesh Mishra

भारतीय पंचांग सही है या राष्ट्रीय कैलेंडर

हमारा राष्ट्रीय कैलेंडर प्रोफेसर मेघनाद साहा जैसे समर्पित परमाणु वैज्ञानिक के सतत प्रयासों का फल है। उन्होंने हमारे कैलेंडर को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। प्रोफेसर साहा ने भारतीय पंचांगों और कैलेंडर सुधार की आवश्यकता पर ‘जर्नल ऑफ रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी’, ‘जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी’ और ‘साइंस एंड कल्चर’ जैसी प्रसिद्घ विज्ञान पत्रिकाओं में लेख लिख कर इस विषय की ओर सरकार और आम लोगों का ध्यान आकर्षित किया।

इन प्रयासों के परिणामस्वरूप 1952 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने एक कैलेंडर सुधार समिति गठित की। समिति को देश के विभिन्न प्रांतों में प्रचलित पंचांगों का अध्ययन करके सरकार को सटीक वैज्ञानिक सुझाव देने की जिम्मेदारी सौंपी गई ताकि पूरे देश में एक समान नागरिक कैलेंडर लागू किया जा सके। प्रो़ मेघनाद साहा इस कैलेंडर सुधार समिति के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।डॉ़ साहा ने प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर की असंगता पर सवाल उठाए कि विभिन्न महीनों में दिनों की संख्या अलग-अलग क्यों है ? फरवरी में 28 या 29 ही दिन क्यों हैं जबकि बाकी महीनों में 30 या 31 दिन रखे गए हैं? उन्हाने ईस्टर के त्योहार का उदाहरण देते हुए लिखा कि उसकी तिथि में 35 दिन की डांवाडोल स्थिति रहती है। ईस्टर 22 मार्च से 25 अप्रैल के बीच मनाया जाता है और साल-दर-साल तिथि बदलती रहती है।

इसी तरह पंचांगों में सबसे प्रमुख त्रुटि थी वर्ष की लंबाई। पंचांग प्राचीन ‘सूर्य सिद्घांत’ पर आधारित होने के कारण वर्ष की लंबाई 365. 258756 दिन की होती है। वर्ष की यह लंबाई वैज्ञानिक गणना पर आधारित सौर वर्ष से .01656 दिन अधिक है। प्राचीन सिद्घांत अपनाने के कारण ईस्वी सन् 500 से वर्ष 23.2 दिन आगे बढ़ चुका है। इसी कारण भारतीय सौर वर्ष ‘वसंत विषुव’ औसतन 21 मार्च के अगले दिन मतलब 22 मार्च से शुरू होने के बजाय 13 या 14 अप्रैल से शुरू होता है।

राष्ट्रीय कैलेंडर में प्रति चार वर्ष पश्चात एक लीप वर्ष होता है लेकिन 100 वर्ष पश्चात लीप वर्ष नहीं होता एवं 400 वर्ष पश्चात पुनः लीप वर्ष होता है। इस प्रकार वर्ष मान 365.2425 दिनों का होता है जो कि सायन वर्ष मान 365.2422 के बहुत करीब है इस प्रकार 3000 वर्षों बाद मात्र 1 दिन का अंतर आता है। कैलेंडर की तुलना में पंचांग में सूर्य, चंद्र आदि के राशि प्रवेश व तिथि, योग, करण आदि की गणना भी दी जाती है। राशि अर्थात् तारों के परिपे्रक्ष्य में जब हम ग्रहों को देखते हैं, तो वह उसकी निरयण स्थिति होती है। निरयण वर्ष मान 365.2563 दिनों का होता है जो कि सूर्य के एक राशि में प्रवेश से अगले वर्ष उसी राशि में प्रवेश का काल है। यह सायन वर्ष से .0142 दिन बड़ा है। इस प्रकार 100 वर्षों में 1.42 दिनों का अंतर आ जाता है इसीलिये पंचांग प्रति 100 वर्षों से कैलेंडर से लगभग डेढ़ दिन आगे खिसक जाता है। इस कारण मकर संक्रांति व लोहड़ी आदि की तारीख में अंतर आ जाता है और हिंदू पर्व, जो तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं, धीरे-धीरे आगे खिसकते जाते हैं।

आइये जानें कि सायन व नियरण गणना क्या होती है और दोनों में क्या अंतर है? पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य की परिक्रमा क्रांतिवृत्त पर लगाती है। लेकिन यह लगभग 23.40  झुकी रहती है। पृथ्वी के इस झुकाव के कारण ही गर्मी व सर्दी पड़ती हैं । झुकाव के कारण पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सीधे सामने आ जाता है वहां गर्मी हो जाती है। क्योंकि ऋतुएं, अयन व सूर्योदय आदि पृथ्वी के झुकाव के कारण होते हैं न कि पृथ्वी की परिक्रमा के कारण, अतः कैलेंडर सायन बनाया जाता है। पृथ्वी का भूमध्य वृत्त क्रांतिवृत्त के साथ एक रेखा पर काटता है, जिसका एक बिंदु वसंत विषुव व दूसरा शरद विषुव कहलाता है। यह रेखा पृथ्वी के अक्ष दोलन के कारण 50.3 प्रतिवर्ष की गति से पश्चिम की ओर खिसकती जाती है। पृथ्वी के पूर्ण 360 अंश चलने को निरयण और उसके पुनः उसी झुकाव में आने को सायन वर्ष कहते हैं।

इस कारण शरद विषुव पर पृथ्वी को पुनः आने में 360 अंश से लगभग 50 विकला  कम चलना पड़ता है। यह अंतर ही अयनांश कहलाता है। सायन कैलेंडर व निरयण पंचांग 23 मार्च 285 को एक थे। तदुपरांत आज 1730 वर्षों में लगभग 24 दिनों का अंतर आ गया है। अतः चैत्र मास, जो फरवरी व मार्च में आता था, अब मार्च व अप्रैल में पड़ता है। ज्येष्ठ मास मई की बजाय जून में पड़ता है और यही कारण है कि अत्यधिक गर्मी, जो ज्येष्ठ मास में पड़ती थी, अब वैशाख में ही पड़ जाती है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु भी, जो श्रावण व भाद्रपद में पड़ती थीं, अब आषाढ़़ व श्रावण में आती है। ऋतुएं सूर्य के कारण बनती हैं अतः सायन कैलेंडर के अनुसार ही सत्यापित होती हैं। निरयण पंचांग, राश्यानुसार होने के कारण, ऋतुओं के लिए पूर्ण ठीक नहीं बैठता है। कोई भी गणना, जो सूर्य पर आधारित होती है, ग्रेगोरियन कैलेंडर पर सत्य बैठती है व पंचांग में खिसकती जाती है।

इसी प्रकार है सूर्योदय व अयन गोल आदि। कैलेंडर के अनुसार 23 दिसंबर को सबसे छोटा दिन होता है व इसी दिन सूर्य उत्तरायण हो जाता है लेकिन पंचांग तिथि या प्रविष्टे के अनुसार सूर्य मकर राशि में नहीं होता। कभी (वर्ष 285 में) लोहड़ी या मकर संक्रांति सबसे छोटा दिन (23 दिसंबर) को होता था लेकिन आज नहीं होता। क्या हमें कैलेंडर निरयण कर देना चाहिए? या क्या पंचांग सायन कर देना चाहिए? उत्तर एक ही है-नहीं। दोनों अपने स्थान पर ठीक हैं। कैलेंडर आम जनता के लिए बना है उसका सायन होना ही ठीक है। इस कारण ऋतुएं व सूर्योदय आदि तारीख के अनुसार एक बने रहते हैं। पंचांग ज्योतिर्विदों के लिए है, उससे ग्रहों की स्थिति जानी जाती है। ग्रहों की स्थिति राश्यानुसार ही जानी जाती है अतः इस गणना का निरयण होना स्वाभाविक है। इसे सायन नहीं कर सकते। इसी कारण सभी पंचांग निरयण ही होते हैं। ग्रह स्पष्ट की सायन सारणियां मिलती हैं। लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि ग्रह सायन गणनानुसार राशि में चल रहे हैं। सभी ग्रह आकाश मंडल में (तारों के परिप्रेक्ष्य में) निरयण गति के अनुसार ही चलते हैं और ज्योतिष जो कि राशियों, नक्षत्रों पर आधारित है, पूर्णतया निरयण ही है। अतः जो गणनाएं की जा रही हैं, वे पूर्ण सत्य हैं, उन्हें गलत मानकर फेरबदल करने से केवल भ्रामक स्थितियां ही पैदा होती हैं।

ज्योतिष कि उपयोगिता फलित ज्योतिष से ही है यदि ज्योतिष का फलित इन गणनाओं से सही नहीं आता प्रतीत होता है, तो हमें फलित के सिद्धांत बदलने चाहिए न कि गणित के । फलित ज्योतिष पर गणित आश्रित नहीं हो सकता इसलिए गणित के आधार पर ही फलित ज्योतिष के सूत्रों में संशोधन होना चाहिए। हिंदू धर्म ग्रंथों में गणना व फलित के लिए विस्तृत सूत्र उपलब्ध हैं, जिनके आधार पर संशोधित गणित सूत्र पर ज्योतिष के फलित सिद्धांतों का निर्माण किया जा सकता है और फलित कथन के नये सूत्र प्रतिपादित कर इस समस्या का स्थाई समाधान निकाला जा सकता है।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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