रावण को वैष्णव लेखकों ने बनाया था खलनायक ! जानिए रावण का वास्तविक चरित्र !

वैष्णव अनुयाई के ब्राह्मण पिता विश्रवा और शैव अनुयाई की राक्षसी माता कैकसी का पुत्र रावण तेजस्वी और तपस्वी पुत्र था ! कालांतर में रावण ने सशक्त सैन्य बल एकत्र करके देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया और अपने पूर्वजों की लंकानगरी पर पुन: अपना आधिपत्य प्राप्त कर लिया ! साथ ही कुबेर का पुष्पक विमान भी हस्तगत कर लिया ! पाताल लोक में रहते हुए रावण ने अपने पिता से वेदों और शास्त्र-आगम-पुराण आदि का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया, साथ उसने वैष्णव अनुयाई में प्रचलित धार्मिक क्रियाओं और संस्कारों को भी आत्मसात किया !

ज्योतिष, नृत्य, संगीत, चित्रकला, युद्धकला में भी रावण पारंगत था ! रावण ने अपने कौशल और साहस से वैभवपूर्ण विशाल साम्राज्य स्थापित किया ! आदि कवि वाल्मीकि ने रामायण में रावण के ऐसे उदात्त चरित्र को मानवीय गुणों से संपन्न चित्रित किया था ! यद्यपि रावण शैव अनुयाई का था, तथापि वह वैष्णव संस्कारों से पूर्ण सुसंस्कृत था ! इसलिए वाल्मीकि ने राम की तरह रावण को भी एक ऐतिहासिक महापुरुष माना है !

रावण के ऐसे उदात्त गुणों से अभिभूत जैन धर्मावलंबियों ने भी श्रीकृष्ण के समान रावण को भी तीर्थंकर की श्रेणी में स्थापित किया है, वहीं बौद्ध धर्म के महायानियों ने भी रावण को महासत्व बोधिसत्व से अलंकृत किया है ! रावण में शैवत्व के होने के कारण उसका शरीर कृष्ण वर्ण का था और शरीर लंबा-चौड़ा पूर्ण विकसित व स्वस्थ्य था !

जब हनुमान ने अंतपुर में काले विशाल दैत्याकार शरीर वाले रावण को शय्या पर सोते देखा तो डर गए थे ! जबकि स्वंय हनुमान ने सिंहासन पर दिव्य वस्त्र-अलंकारों से सुसज्जित रावण को सिंहासन पर बैठे देखकर उसके भव्य व्यक्तित्व की प्रशंसा की थी ! रावण के ऐसे आकर्षण स्वरूप की वाल्मीकि ने कामदेव से तुलना की थी !

वस्तुत: वाल्मीकि ने सुंदरकांड में रक्ष संस्कृति के अनुयाई राज रावण के ऐश्वर्य, पराक्रम और उसकी यशोकीर्ति की प्रशंसा की है ! रावण द्वारा बनाई गई लंकानगरी सुवर्ण से बनी हुई थी ! लंका के गगनचुंबी महल, पुष्पक विमान, बहुमूल्य वस्त्र अलंकारों से सुसज्जित लंका के प्रजाजन ये सभी रावण के अतुल ऐश्वर्य को प्रदर्शित करते हैं !

साथ ही रावण की राजनीतिक शक्ति भी इतनी प्रबल थी कि उसने अपने पराक्रम से कई राज्यों को पराजित कर अपने साम्राज्य को चारों ओर विस्तृत कर लिया था ! इस प्रकार रावण उत्कृष्ट गुणों से परिपूर्ण अतिविद्वान, सुसंस्कृत, शूरवीर, कूटनीतिक बुद्धि से परिपूर्ण, विविध कलाओं में प्रवीण, कुशल प्रशासक महापुरुष था !

वाल्मीकि ने जैसे रावण के चरित्र को उभारा है, उसी प्रकार रावण के रक्ष संस्कृति का संस्थापक होने के कारण उसके समाज और संस्कृति का भी वर्णन किया जाता है ! रामायण के संदर्भों से स्पष्ट है कि शैव संस्कृति के अनुयाई मातृ-प्रधान सत्ता थी इसलिए रावण शैव संस्कृति का पोषक और संरक्षक था ! लंकानगरी की संपन्नाता के वर्णन से वहां के प्रजाजन कितने सुखी और संपन्न थे इसकी झलका दिखाई देती है !

सुवर्ण से बनी पूरी लंकानगरी, वहां के सुंदर भव्य गगनचुंबी महल, नृत्य, संगीत, चित्रकारी आदि ललित कलाओं से मनोरंजन, वहां के क्रीड़ागृह राजसी बाग-बगीचे, नाना बहुमूल्य अलंकारों से सजी सुंदर महिलाएं ये सभी प्रमाण हैं कि रक्ष संस्कृति के अनुयाई जंगली और बर्बर नहीं थे बल्कि एक सुसंस्कृत शैव संस्कृति के अनुयाई थी !

रावण की सभा बौद्धिक संपदा के संरक्षण की केंद्र थी ! उस काल में जितने भी श्रेष्‍ठजन थे, बुद्धिजीवी और कौशलकर्ता थे, रावण ने उनको अपने आश्रय में रखा था ! रावण ने सीता के सामने अपना जो परिचय दिया, वह उसके इसी वैभव का विवेचन है ! अरण्‍यकाण्‍ड का 48वां सर्ग इस प्रसंग में द्रष्‍टव्‍य है !

उस काल का श्रेष्‍ठ शिल्‍पी मय, जिसने स्‍वयं को विश्‍वकर्मा भी कहा, उसके दरबार में रहा ! उसकाल की श्रेष्‍ठ पुरियों में रावण की राजधानी लंका की गणना होती थी – यथेन्‍द्रस्‍यामरावती ! मय के साथ रावण ने वैवाहिक संबंध भी स्‍थापित किया ! मय को विमान रचना का भी ज्ञान था !

कुशल आयुर्वेदशास्‍त्री सुषेण उसके ही दरबार में था जो युद्धजन्‍य मूर्च्‍छा के उपचार में दक्ष था और भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली सभी ओषधियों को उनके गुणधर्म तथा उपलब्धि स्‍थान सहित जानता था ! शिशु रोग निवारण के लिए उसने पुख्‍ता प्रबंध किया था ! स्‍वयं इस विषय पर ग्रंथों का प्रणयन भी किया !

श्रेष्‍ठ वृक्षायुर्वेद शास्‍त्री उसके यहां थे जो समस्‍त कामनाओं को पूरी करने वाली पर्यावरण की जनक वाटिकाओं का संरक्षण करते थे – सर्वकाफलैर्वृक्षै: संकुलोद्यान भूषिता ! इस कार्य पर स्‍वयं उसने अपने पुत्र को तैनात किया था ! उसके यहां रत्‍न के रूप में श्रेष्‍ठ गुप्‍तचर, श्रेष्‍ठ परामर्शद और कुलश संगीतज्ञ भी तैनात थे ! अंतपुर में सैकड़ों औरतें भी वाद्यों से स्‍नेह रखती थीं !

उसके यहां श्रेष्‍ठ सड़क प्रबंधन था और इस कार्य पर दक्ष लोग तैनात थे तथा हाथी, घोड़े, रथों के संचालन को नियमित करते थे ! वह प्रथमत: भोगों, संसाधनों के संग्रह और उनके प्रबंधन पर ध्‍यान देता था ! इसी कारण नरवाहन कुबेर को कैलास की शरण लेनी पड़ी थी ! उसका पुष्‍पक नामक विमान रावण के अधिकार में था और इसी कारण वह वायु या आकाशमार्ग उसकी सत्‍ता में था : यस्‍य तत् पुष्‍पकं नाम विमानं कामगं शुभम् ! वीर्यावर्जितं भद्रे येन या‍मि विहायसम् !

उसने जल प्रबंधन पर पूरा ध्‍यान दिया, वह जहां भी जाता, नदियों के पानी को बांधने के उपक्रम में लगा रहता था : नद्यश्‍च स्तिमतोदका:, भवन्ति यत्र तत्राहं तिष्‍ठामि चरामि च !

अर्थात रावण सर्व प्रिय एवं कुशल शासक था ! उसे वैष्णव लेखकों ने विलयन बना दिया खास तौर पर गोस्वामी तुलसी दास ने ! जिसको बढ़ावा सरजू क्षेत्रीय कथा वाचकों ने अपने निजी लाभ के लिये खूब दिया !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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